M-Sand Contruction : सरकार की मैन्युफैक्चर्ड रेत को बढ़ावा देने की नीति, ग्रीन बिल्डिंग में एम-सेंड का इस्तेमाल। नदी का आंचल नहीं, अब पहाड़ का सीना होगा छलनी।
M-Sand Contruction : अब एम-सेंड का जमाना है। यानी मैन्युफैक्चर्ड रेत। इसके लिए पहाड़-पत्थर का रुख किया जा रहा है। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में ही सरकारी से लेकर निजी निर्माणों में 20 फीसदी तक इसकी हिस्सेदारी हो चुकी है। नगर निगम मुख्यालय की ग्रीन बिल्डिंग में 60 फीसदी इसी एम-सेंड का उपयोग किया गया है। गौरतलब है कि, इसे लेकर राज्य स्तर पर अलग से नीतियां बनाई जा रही हैं।
मैन्युफैक्चर्ड रेत, जिसे एम-सेंड भी कहा जाता है, कृत्रिम रूप से निर्मित रेत है। इसे कठोर ग्रेनाइट पत्थरों या चट्टानों को विशेष मशीनों द्वारा कुचलकर तैयार किया जाता है। इसकी बनावट और गुणवत्ता प्राकृतिक नदी रेत के समान होती है। यह निर्माण कार्यों में बेहतर मजबूती और टिकाऊपन प्रदान करती है।
भोपाल के आसपास एम-सेंड के 17 प्लांट स्थापित हो चुके हैं। प्रदेशभर में इनकी संख्या 75 के करीब है। हालांकि इसके लिए ग्रेनाइट पत्थरों की बाहर से आपूर्ति कराई जाती है। जिले में बलुआ, बेसाल्ट व लाइन स्टोन ज्यादा है। भोपाल में रेत के रोजाना 150 ट्रक की मांग है। माह में दो करोड़ रुपए की कमाई इससे होती है।
एम-सेंड 30 रुपए प्रति घन मीटर तक मिलती है, जबकि सामान्य रेत की दर 50 रुपए घन मीटर है। प्रति घन मीटर करीब 15 से 20 रुपए का लाभ होने से इसका कारोबार तेजी से बढ़ रहा है।
इस संबंध में एमपीआरडीसी के सीईओ आर.के सिंह का कहना है कि, हमारे प्रोजेक्ट में कम से कम 50 से 60 फीसदी तक एम-सेंड का उपयोग कर रहे हैं। इसे धीरे-धीरे बढ़ाया जा रहा है। चुनाई तो इससे करते ही हैं, अब प्लास्टर में भी इसका उपयोग बढ़ाया जा रहा है।