MP News: 50 साल में भोपाल शहर के छह मास्टर प्लान बने, लेकिन महज दो ही लागू हो पाए। इस समय भी हम 20 साल पुराने यानी 2005 तक के लिए बनाए मास्टर प्लान के अनुसार चल रहे हैं।
MP News: 50 साल में भोपाल शहर के छह मास्टर प्लान बने, लेकिन महज दो ही लागू हो पाए। इस समय भी हम 20 साल पुराने यानी 2005 तक के लिए बनाए मास्टर प्लान के अनुसार चल रहे हैं। 1975 में पहला प्लान 1991 के लिए बना था, जबकि 1997 में 2005 तक के लिए मास्टर प्लान बना। दोनों में हरियाली बचाने कुछ प्रावधान रहे, लेकिन इसके बाद जितने भी प्लान बने वे हरियाली में निर्माण की राह ही खोलते रहे हैं। शहर कंक्रीट का जंगल बन गया। बारिश का पानी जमीन में नहीं उतर पा रहा है। भोपाल का मास्टर प्लान क्यों नहीं बन पा रहा? हर आम और खास के मन में ये सवाल एक बार तो उठता ही है। चार मास्टर प्लान रद्द कर दिए और अब 2047 यानी अगले 23 साल के लिए प्लान बनाया जा रहा…क्या ये हरियाली बचाएगा? ये बड़ा सवाल है।
1991 का मास्टर प्लान तत्कालीन आयुक्त नगर तथा ग्राम निवेश एमएन बूच के नेतृत्व में बनाया गया था। इस प्लान का 1994 में इसे बनाना शुरू किया गया था। इसमें शहर की सीमा से लेकर बढ़ते ट्रैफिक और अन्य जनउपयोगी सुविधाओं, भविष्य की जरूरतों व अनुपयोगी भूमि का स्पष्ट उल्लेख किया था। इसे एक आदर्श प्लान कहा जा सकता था।
1997 में टीएंडसीपी के तत्कालीन डायरेक्टर पीवी देशपांडे ने तैयार कराया था। 2005 के प्लान ने शहर किनारे वनक्षेत्र समेत कई छोटे जंगल बताकर यहां अर्द्ध सार्वजनिक भू उपयोग से वनभूमि में निर्माण की राह प्रशस्त की। इसके बाद बड़ा तालाब एफटीएल से 50 मीटर में मनोरंजन के नाम पर मैरिज गार्डन की राह बनाई। 13 फीसदी ही हरियाली का क्षेत्र यहां रहा।
योजना में हरियाली क्षेत्र 10 फीसदी ही तय किया। यह योजना बीपी कुलश्रेष्ठ और एसएस राठौर ने बनाई थी। वनभूमि में भी निजी जमीनों पर निर्माण करने, यहां कई सड़कों के साथ लैक फ्रंट डेवलपमेंट के तहत तालाबों में निर्माण की राह खोली। शासन को इस योजना पर अतिम निर्णय लेना था, लेकिन इसे रदद कर 2031 तक के प्लान की घोषणा कर दिया गया।
इस योजना का ड्रॉफ्ट संयुक्त संचालक सुनिता सिंह और एसएन मिश्रा ने तैयार कराया था। इसमें मिक्स लैंड यूज पर फोकस इस प्लान में ग्रीनरी के बीच निर्माण की यह खोली। कैचमेंट तक में नालों से 150 मीटर दूरी पर निर्माण तय किया। केरवा, कलियासोत वनभूमि में 5-4 लेन सड़कें तय की। ग्रीनरी महज सात फीसदी ही रही। आबादी का गलत अनुमान जारी रहा।
शहरी सीमा में केरवा, कलियासोत, कोलार तक का 6000 हेक्टेयर का वनक्षेत्र हमारा ताज था। 1991 का मास्टर प्लान को सहेजने का प्रयास भी हुआ। प्लानिंग एरिया 24000 हेक्टेयर था और सीमा मिसरोद से कोकता, बैरागढ़ के भौरी तक ही थी। पूरा वनक्षेत्र संरक्षित रखा था। केरवा डैम से लगे हुए 150 हेक्टेयर के क्षेत्र को सुरक्षित रखा था। कोलार, चूनाभट्टी, शाहपुरा तक में लो-डेंसिटी व लो लाइन क्षेत्र तयकर आबादी के घनत्व को सीमित किया था। अब ग्रीनरी बेहद कम है। हमें हमारी सांसो को लेकर गंभीर होने की जरूरत है।- चौरसिया, आर्किटेक्ट