दे दी हमें आजादी: हनुमानदास ने जैविक खेती की शुरुआत साल 2010 में की। आज वह कोई भी सामान बाजार से नहीं लाते। कृषि के साथ 25 देशी नस्ल की गायों का पालन करते हैं। खेत में सोलर सिस्टम, फव्वारा पद्धति से सिंचाई की व्यवस्था है।
बीकानेर के कपूरसर गांव के हनुमानदास स्वामी जैविक खेती का बड़ा उदाहरण बनकर उभरे हैं। किसान की बाजार पर निर्भरता कम करने के साथ उसे आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं।
कृषि में अंधाधुंध रसायनिक खाद और कीटनाशकों का उपयोग करने से पैदावार बढ़ने से ज्यादा परेशानियां बढ़ रही हैं। नकली खाद-बीज, पेस्टीसाइड उसकी भूमि को बंजर बना रही है। लूणकरनसर क्षेत्र के कपूरीसर में सात एकड़ का जैविक फार्म हनुमानदास की जैविक और प्रकृति आधारित कृषि की तपोभूमि के रूप में देखा जाता है।
वे अन्य किसानों को रसायनिक खेती से आजादी दिलाने के लिए भी काम कर रहे हैं। साथ ही लोगों को जहर मुक्त कृषि उत्पाद उपलब्ध करवा रहे हैं। कृषि उपज भी बाजार बेचने नहीं जाना पड़ता। जैविक गेहूं, चना, मूंग, मोठ, बाजरा, सरसों, सब्जी, मौसमी-किन्नू सबके खरीदार खेत में आते हैं। अपने फार्म पर बर्मी कम्पोस्ट, गोबर-गोमूत्र से घन जीव अमृत, बायोलॉजिक वेक्टीरिया से मल्टीप्लाई कर कृषि कम्पोनेंट तैयार करते हैं।
देश के महानगरों खासकर पंजाब के बठिंडा, चंडीगढ़ और जयपुर, हनुमानगढ़ आदि जगह ऑर्गेनिक रेस्टोरेंट के संचालक यहां आकर कृषि उत्पाद खरीदते हैं। दुबई में भी उनके ऑर्गेनिक उत्पाद भेजे जाते रहे हैं। अब अन्य किसानों के मुकाबले तीन से चार गुणा मुनाफा कमा रहे हैं। 50 हजार किसानों को जैविक खेती सिखा चुके हैं।
जैविक कृषि से ही किसान आत्मनिर्भर बनेगा। इसी से आने वाली नस्लें बचेंगी। रासायनिक कृषि घातक है।
— हनुमानदास स्वामी