Madan Mohan Death Reason: मदन मोहन-लता मंगेशकर का रिश्ता किसी से छिपा नहीं है। यही कारण है कि मदन मोहन के निधन पर मशहूर गायिका खूब रोईं थीं।
Madan Mohan Birth Anniversary: मशहूर म्यूजिक कंपोजर मदन मोहन को भुलाया नहीं जा सकता। इंडस्ट्री में उनका योगदान सराहनीय है। अपने करियर में उन्होंने 97 फिल्मों के लिए करीब 700 से अधिक गाने कंपोज किए। कहा जाता है कि फिल्मों में गजल को असली पहचान दिलाने वाले वही थे। यही वजह है कि लता मंगेशकर उन्हें प्यार से ‘गजल का शहजादा’ कहती थीं।
‘ये दुनिया ये महफ़िल मेरे काम की नहीं…’ जैसे दिल को छू जाने वाले गीत को उन्होंने ही कंपोज किया था। आज उनके जाने को पूरे 50 साल हो चुके हैं। 14 जुलाई 1975 को, शराब की लत के कारण उनका निधन हो गया था। उस आखिरी सफर में उन्हें कंधा देने वालों में राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, राजेंद्र कुमार और धर्मेंद्र जैसे बड़े सितारे शामिल थे।
मदन मोहन का पहला फिल्मी गाना लता मंगेशकर की आवाज में रिकॉर्ड हुआ था। किस्मत का खेल देखिए, वो गाना फिल्म में लिया ही नहीं गया। लेकिन यही शुरुआत उनकी दोस्ती को उम्रभर का रिश्ता बन गई। जब उनकी पहली फिल्म ‘आंखें’ बनी, तो उसमें लता जी का एक भी गाना नहीं था। यह बात लता जी को बहुत खल रही थी।
लेकिन फिल्म रिलीज होने के कुछ दिन बाद मदन मोहन की मुलाकात लता मंगेशकर से हुई। वे उन्हें सीधे अपने घर ले गए। घर पहुंचते ही उन्होंने अलमारी से एक राखी निकाली और कहा, “आज रक्षाबंधन है, मेरी कलाई पर राखी बाँध दो।”
इसके आगे उन्होंने कहा, “जब हम पहली बार मिले थे, तब हमने भाई-बहन का ही गाना गाया था। आज से तुम मेरी छोटी बहन और मैं तुम्हारा मदन भैया। वादा करता हूं, अब मेरी हर फिल्म में तुम्हारी आवाज जरूर गूंजेगी।”
उस दिन से लता और मदन मोहन का रिश्ता सिर्फ संगीत तक सीमित नहीं रहा, बल्कि भाई-बहन की गहरी मोहब्बत में बदल गया।
मदन मोहन के जाने के सालों बाद, उनके बेटे संजीव कोहली ने घर की एक अलमारी खोली। उसमें कुछ धुनें सुरक्षित रखी हुई थीं, ये वो धुनें थीं जिन्हें मदन मोहन जीते-जी कभी इस्तेमाल नहीं कर पाए थे।
संजीव कोहली ने उन धुनों को संवारा और यश चोपड़ा को सुनाया। यश जी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपनी फिल्म ‘वीर-जारा’ (2004) में लेने की बात कही।
गीतों के बोल जावेद अख्तर ने लिखे, लेकिन जब बारी आई आवाज की, तो सबकी नजरें एक ही नाम पर ठहर गईं और वो थी लता मंगेशकर। आखिर, भाई से किया वादा वो कैसे भूलतीं? जी हां- लता जी ने उन धुनों को अपनी आवाज दी। कहते हैं, रिकॉर्डिंग के दौरान वो कई बार रो पड़ीं क्योंकि हर सुर उन्हें अपने मदन भैया की याद दिलाता था।
‘वीर-जारा’ की इन गजलों ने एक बार फिर साबित कर दिया कि अच्छा संगीत कभी पुराना नहीं होता और उसी फिल्म के लिए, मदन मोहन को मरणोपरांत IIFA अवॉर्ड फॉर बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर दिया गया।