Financial Freedom: फाइनेंशियल फ्रीडम पाने के लिए पहले आपको अपनी आवश्यक्ताओं और चाहतों के अंतर को समझना होगा। वित्तीय आजादी का मतलब बड़ा सैलरी पैकेज नहीं है।
Financial Freedom: कितना पैसा कमा लूं कि मैं अपनी जिंदगी आराम से गुजार सकूं, पर्सनल फाइनेंस की भाषा में इसे कहते हैं फाइनेंशियल फ्रीडम हासिल करना। कोई कहेगा 1 करोड़, कोई 2 करोड़। मगर, ये सवाल जितना सीधा लगता है, जवाब उतना आसान नहीं है, क्योंकि ये हमारी भावनाओं, इच्छाओं और जरूरतों से जुड़ा है, जिसकी वजह से हम एक फिनिश लाइन नहीं खींच पाते।
इसी विषय पर चार्टर्ड अकाउंटेंट नितिन कौशिक ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक पोस्ट लिखा, जिसमें उन्होंने इस मानसिकता के बारे में बताया जो लोगों को आर्थिक रूप से सुरक्षित महसूस किए बिना लगातार ऊंची कमाई के लक्ष्यों के पीछे भागने के लिए उकसाती है।
कौशिक अपने X पोस्ट में लिखते हैं कि जो लोग साल का 40 से 50 लाख रुपये कमाते हैं, वो भी अक्सर अपनी वित्तीय स्थिति को लेकर परेशान रहते हैं। ज्यादातर लोग ये सोचते हैं कि वो अपनी जिंदगी सुकून से तब गुजारेंगे, जब सालाना इनकम 1 करोड़ रुपये हो जाएगी, लेकिन जब वो इस लक्ष्य को हासिल कर लेते हैं तो उनका लक्ष्य चुपचाप ही दोगुना हो जाता है। यानी अब वो 2 करोड़ रुपये कमाना चाहते हैं। कौशिक इस हालात को समझाते हुए लिखते हैं 'परेशानी यह नहीं है कि कोई कितना कमाता है, बल्कि यह है कि वो अपनी वित्तीय संतुष्टि को कैसे परिभाषित करता है।'
दरअसल, किसी व्यक्ति के लिए इतना पैसा कमा लेना कि उसे फाइनेंशियल फ्रीडम मिल जाए, वो संख्या क्या है, वो रकम क्या है, इस सवाल का जवाब पाना मुश्किल होता है। क्योंकि समय के साथ वो लक्ष्य आगे खिसकता जाता है, क्योंकि समय के साथ आपकी इच्छाएं भी बढ़ती जाती हैं। कौशिक अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए लिखते हैं 'ऐसा इसलिए होता है कि कोई हमें ये नहीं सिखाता है कि वो 'काफी' है क्या? हम सिर्फ अपना लक्ष्य बढ़ाते जाते हैं। जबकि हकीकत यह है कि 'काफी' कोई आकड़ा नहीं है, जिसके पीछे भागा जाए।'
कौशिक यह समझाने की कोशिश करते हैं कि हम जो कमाते हैं और जो खर्च करते हैं, अगर एक ही दिशा में एक ही लक्ष्य की तरफ नहीं चल रहे हैं तो फिर चिंताएं खत्म नहीं होती है। वो कहते हैं कि जब आपकी लाइफस्टाइल, शांत दिमाग और कैश फ्लो एक साथ मिलकर चलते हैं, तब पैसा आपको कंट्रोल करना बंद कर देता है और आपके लिए काम करता है। सच्ची वित्तीय आजादी ज्यादा से ज्यादा कमाने में नहीं है, इससे कभी हासिल भी नहीं होगी, बल्कि अपनी निजी जरूरतों को समझने और एक स्थिर जीवनशैली से आती है, जिसमें जरूरी नहीं कि आप सामाजिक दबाव या अपनी गैर-जरूरी इच्छाओं की पूर्ति के लिए खर्च करें, बल्कि तब खर्च करें, जब उसकी वाकई जरूरत हो। इसके लिए आपको Need और Want में अंतर को समझना होगा। अगर आप ये समझ जाते हैं तो आप इस बात से मुक्त हो जाते हैं कि अगले साल आपकी सैलरी कितनी बढ़ेगी, उसके अगले साल कितनी बढ़ेगी।