Study Abroad: भारत से बड़ी संख्या में लोग हर साल विदेश पढ़ाई के लिए जाते हैं। 2024 में कनाडा शीर्ष गंतव्य रहा, जहां 4.27 लाख भारतीय छात्र पहुंचे। भारत में आने वाले हर एक विदेशी छात्र के मुकाबले 28 भारतीय छात्र विदेश जा रहे हैं।
नीति आयोग की ताजा रिपोर्ट ने भारत के उच्च शिक्षा परिदृश्य और उससे जुड़े आर्थिक प्रभावों को लेकर गंभीर चेतावनी दी है। रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2024 में भारत दुनिया में अंतरराष्ट्रीय छात्रों का सबसे बड़ा सोर्स देश बन गया है। इस दौरान 13.35 लाख से अधिक भारतीय छात्र उच्च शिक्षा के लिए विदेश गए, जो किसी भी देश से सर्वाधिक है। चिंता की बात यह है कि भारत में आने वाले हर एक विदेशी छात्र के मुकाबले 28 भारतीय छात्र विदेश जा रहे हैं। नीति आयोग ने इसे बड़े पैमाने पर ब्रेन ड्रेन का संकेत बताया है, जहां बेहतर शिक्षा, करियर अवसर और वैश्विक अनुभव की तलाश में प्रतिभाशाली युवा देश से बाहर जा रहे हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय छात्रों की पहली पसंद अब भी अंग्रेजी भाषी विकसित देश बने हुए हैं। 2024 में कनाडा शीर्ष गंतव्य रहा, जहां 4.27 लाख भारतीय छात्र पहुंचे। इसके बाद अमरीका (3.37 लाख), ब्रिटेन (1.85 लाख), ऑस्ट्रेलिया (1.22 लाख) और जर्मनी (43 हजार) का स्थान रहा। यूरोप भी तेजी से आकर्षक बन रहा है। रिपोर्ट में यह भी रेखांकित किया गया है कि भारत के पास 18 से 23 वर्ष आयु वर्ग के करीब 15.5 करोड़ युवाओं की विशाल आबादी है, जो इस प्रवृत्ति को और तेज कर रही है।
| देश | छात्रों की संख्या |
| कनाडा | 4.27 लाख |
| अमरीका | 3.37 लाख |
| ब्रिटेन | 1.85 लाख |
| ऑस्ट्रेलिया | 1.22 लाख |
| जर्मनी | 43 हजार |
विदेशी शिक्षा का सीधा असर आउटवर्ड रेमिटेंस में तेज बढ़ोतरी के रूप में सामने आया है। आरबीआई की लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम के तहत शिक्षा के लिए विदेश भेजी जाने वाली राशि 2014 में 975 करोड़ रुपए थी, जो 2024 में बढ़कर करीब 29,000 करोड़ रुपए हो गई, यानी लगभग 30 गुना वृद्धि। रिपोर्ट के अनुसार, कनाडा, अमरीका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया में पढ़ने वाले करीब 8.5 लाख छात्रों ने 2023-24 में उच्च शिक्षा पर भारी खर्च किया।
| वर्ष | राशि (करोड़ रुपए) |
| 2014 | 975 |
| 2024 | 29,000 |
रिपोर्ट में राज्यों का भी जिक्र है। वर्ष 2020 के आंकड़ों के अनुसार, छात्रों को विदेश भेजने में आंध्रप्रदेश सबसे आगे रहा, इसके बाद पंजाब और महाराष्ट्र का स्थान रहा। वहीं, भारत में आने वाले विदेशी छात्रों की संख्या बेहद कम है, जो मुख्य रूप से नेपाल, अफगानिस्तान, अमरीका, बांग्लादेश और यूएई से आते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि घरेलू उच्च शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने, स्कॉलरशिप बढ़ाने और रिसर्च अवसर उपलब्ध कराए बिना यह ट्रेंड भारत के लिए आर्थिक और बौद्धिक—दोनों तरह से नुकसानदेह साबित होगा।