दक्षिण अफ्रीका ने इस सीरीज़ को एक ही स्क्रिप्ट पर खेलकर भारत को पूरी तरह बेबस कर दिया और हैरानी की बात यह है कि भारतीय टीम हर बार उसी जाल में फंसती चली गई। कप्तान ऋषभ पंत और कोच गौतम गंभीर को इसका कोई अंदाज़ा ही नहीं था।
India vs South Africa Test Series: दक्षिण अफ्रीका ने भारत का उन्हीं के घर पर 2-0 से सूपड़ा साफ करते हुए इतिहास रच दिया है। इसी के साथ दक्षिण अफ्रीका ने भारतीय सरजमीं पर 25 साल बाद सीरीज अपने नाम की। इस सीरीज में भारतीय टीम पूरी तरह से असहाय नज़र आई। जिस विकेट पर भारतीय बल्लेबाज संघर्ष करते थे, वहीं अफ्रीका ने दोनों पारियों में मिलाकर 600 से ज्यादा रन बनाए और 20 विकेट भी लिए।
दक्षिण अफ्रीका ने हर टेस्ट मैच में एक ही स्क्रिप्ट अपनाई है। वे टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करते थे और 500 से ज्यादा रन बनाने की कोशिश करते थे। अंधेरा होते ही पारी घोषित कर देते और फिर उसे रोशनी में तीन विकेट निकालते। और जब अगले दिन खेल शुरू होता, तो भारतीय टीम पहले ही दबाव में होती थी। हर टेस्ट मैच मानो कॉपी-पेस्ट जैसा लगता था। यही उन्होंने पिछले महीने पाकिस्तानी दौरे पर भी किया था। जहां उन्होंने 1-1 से सीरीज ड्रा कराई थी।
अपने अंतरराष्ट्रीय करियर के आखिरी चरण में फ़ाफ डु प्लेसिस ने 2019 के भारत दौरे पर सबसे कठिन परीक्षा झेली, जहां भारत ने दक्षिण अफ्रीका को 3-0 से हराकर क्लीन स्वीप किया था। इस दौरे ने डु प्लेसिस के करियर को बड़ा झटका दिया और अगली सीरीज में कप्तानी करने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
उस दौरे में दक्षिण अफ्रीका के उपकप्तान टेंबा बावुमा थे। बावुमा ने भारतीय परिस्थितियों का अच्छे से मूल्यांकन किया, अलग-अलग सेशन में भारतीय पिच कैसे बरताव करती हैं। इन सब बातों को उन्होंने गहराई से समझा। 2022 में कप्तानी संभालने के बाद बावुमा ने टेस्ट क्रिकेट को महत्व दिया और एक मैच-विनर्स की टीम तैयार की। जिसने बुधवार को गुवाहाटी में भारतीय टेस्ट क्रिकेट की नींव हिलाकर रख दी। 2-0 की यह क्लीन स्विप दक्षिण अफ्रीका की 21वीं सदी में भारत में पहली सीरीज़ जीत है।
अगर कोई कोलकाता टेस्ट की बदहवासी को अलग भी रख दे, तो भी इस जीत का 408 रन का अंतर इस टीम की बढ़ती ताक़त का स्पष्ट संकेत है। एक ऐसी ताक़त जो ग्रेम स्मिथ की 'इनविंसिबल' दक्षिण अफ्रीकी टीम की याद दिलाती है, जिन्होंने 2012 से 2014, 21 महीनों तक आईसीसी टेस्ट चैंपियनशिप मेस पर कब्ज़ा जमाए रखा था।
इस करारी हार से गौतम गंभीर की कोचिंग वाली भारतीय टीम के लिए सबसे कड़वा सबक यही है कि टेस्ट क्रिकेट में सफलता की बुनियाद बेहद साधारण होती है। खिलाड़ियों की भूमिकाएं स्पष्ट होनी चाहिए, चयन में स्थिरता और खिलाड़ियों का आपसी तालमेल अच्छा होना चाहिए। दक्षिण अफ्रीका के ड्रेसिंग रूम में ये तीनों चीजें साफ-साफ नजर आईं। उनकी टीम में हर खिलाड़ी को पता था कि उसकी भूमिका क्या है, कौन से नंबर पर उसे खेलना है, और टीम उस पर कितने समय तक भरोसा रखेगी। नतीजा यह हुआ कि दबाव के समय भी उनके बल्लेबाज और गेंदबाज एक-दूसरे के खेल को पूरक बनाते दिखे।
दूसरी तरफ भारतीय टीम पिछले एक डेढ़ साल से ठीक उल्टी राह पर चल रहा है। लगातार बदलते संयोजन, बल्लेबाजी क्रम में म्यूजिकल चेयर्स, और हर हार के बाद नई-नई प्रयोग की होड़ ने खिलाड़ियों के आत्मविश्वास को बार-बार झटका दिया। जब खिलाड़ी को यह पता ही न हो कि अगले टेस्ट में उसकी जगह पक्की है या नहीं, तो वह लंबी पारी या लगातार अच्छी गेंदबाजी कैसे दे सकता है?
ऐतिहासिक जीत के बाद बावुमा ने कहा, "किसी भी संगठन या टीम में देखें, हर कोई यह जानना चाहता है कि उसकी भूमिका क्या है। हर कोई जानना चाहता है कि उससे क्या अपेक्षा की जा रही है। एक कप्तान के तौर पर कभी-कभी गेंदबाज़ के हाथ से गेंद लेना बहुत मुश्किल होता है। बल्लेबाज़ी में भी यही बात दिखती है। हर कोई योगदान दे रहा है। हमारे पास वे खिलाड़ी नहीं हैं जो 150 जैसे बड़े स्कोर बनाएं, लेकिन हमारे चार-पांच खिलाड़ी 60 और 70 रन की अहम पारियां खेल देते हैं।"
बावुमा बेहतरीन कप्तान के साथ - साथ अच्छे लीडर भी हैं। उनकी सोच बेहद साफ और सरल है। शायद यही वजह है कि दक्षिण अफ्रीका की टीम उनके नेतृत्व में इतना अच्छा प्रदर्शन कर रही है। 12 टेस्ट मैचों के बाद भी यह विश्व टेस्ट चैंपियनशिप विजेता कप्तान अब तक एक भी मुकाबला नहीं हारा है। जो टेस्ट इतिहास में किसी कप्तान की सबसे सफल शुरुआत है।
दक्षिण अफ्रीका की इस ऐतिहासिक जीत के असली नायक वे खिलाड़ी रहे जिनसे भारत को शायद ही इतने बड़े खतरे की उम्मीद थी। दूसरी पारी में साइमन हार्मर ने अपनी सटीक ऑफ-स्पिन से 6 विकेट चटकाकर भारतीय बल्लेबाजी की कमर तोड़ दी। पहली पारी में मार्को जानसन ने आग उगलती गेंदों से 6 विकेट झटके और 93 रनों की लगभग शतकीय पारी खेलकर साबित किया कि वे सिर्फ गेंदबाज नहीं, मैच-विनर ऑलराउंडर हैं। नंबर-3 पर प्रमोट किए गए युवा ट्रिस्टन स्टब्स ने दोनों पारियों में 49 और 94 रन ठोककर दिखा दिया कि सही मौका मिले तो वे कितने खतरनाक हो सकते हैं।
फिर था उपकप्तान ऐडन मार्करम का मैदान पर कमाल, एक ही टेस्ट में 9 कैच लपककर उन्होंने विश्व रिकॉर्ड बना डाला और भारतीय बल्लेबाजों को बार-बार पवेलियन की राह दिखाई। और तो और, घरेलू क्रिकेट में लगभग अनसुना नाम सेनुरन मुथुसामी ने पहली पारी में 105 रनों का अप्रत्याशित शतक जड़कर सबको हैरान कर दिया।
ये सभी प्रदर्शन कोई संयोग नहीं थे। दक्षिण अफ्रीकी खिलाड़ियों ने गुवाहाटी की धीमी और टर्निंग पिच को बेहतरीन ढंग से पढ़ा, उसकी कमजोरियों को समझा और अपनी ताकत को उन पर थोपा। वहीं भारतीय टीम घर में भी घरेलू परिस्थितियों का फायदा उठाने में नाकाम रही। यही अंतर था, एक टीम ने परिस्थितियों को अपना हथियार बनाया, दूसरी टीम उसी में उलझकर रह गई। ये सभी गुवाहाटी में भारत की करारी हार के आर्किटेक्ट साबित हुए।