Bastar Dussehra: विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा में माँ दंतेश्वरी की डोली दंतेवाड़ा से जगदलपुर के लिए रवाना। मंदिर प्रांगण श्रद्धालुओं से भरा, डोली यात्रा की भव्य और भक्तिमय शुरुआत।
Bastar Dussehra: विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा में शामिल होने के लिए दंतेवाड़ा से माँ दंतेश्वरी की डोली और छत्र पारंपरिक विधि-विधान के साथ जगदलपुर के लिए रवाना हो गई। हर साल की तरह इस बार भी डोली यात्रा की शुरुआत अत्यंत भव्य और भक्तिमय तरीके से हुई, जिसमें श्रद्धालुओं की भीड़ मंदिर प्रांगण में उमड़ पड़ी।
डोली यात्रा की शुरुआत से पूर्व मां दंतेश्वरी की विशेष पूजा-अर्चना की गई। परंपरा के अनुसार दंतेवाड़ा पुलिस जवानों ने सलामी देकर माता को नमन किया। नगर के राजा बोधराज देव को माता ने परंपरा अनुसार नगर की जिम्मेदारी सौंपकर डोली यात्रा की विधिवत शुरुआत की। इस अवसर पर मंदिर प्रांगण श्रद्धालुओं से खचाखच भरा रहा और हर ओर ‘जय माता दंतेश्वरी’ के उद्घोष गूंजते रहे।
डोली यात्रा के दौरान ग्रामीण और श्रद्धालु माता के स्वागत के लिए जगह-जगह सजावट करते हैं और फूलों की वर्षा करते हैं। महिलाओं और बच्चों की बड़ी संया भी यात्रा में शामिल होती है। माता की डोली देखकर श्रद्धालु भाव-विभोर हो जाते हैं और जयकारे लगाते हैं। यात्रा में शामिल पुजारियों और सेवाकार्यों का भी विशेष योगदान रहता है, जो डोली यात्रा को पारंपरिक और धार्मिक मान्यता के अनुरूप संपन्न कराने में जुटे रहते हैं।
Bastar Dussehra: बस्तर दशहरा न केवल 75 दिनों तक मनाया जाने वाला विश्व का सबसे लंबा उत्सव है, बल्कि यह देवी दंतेश्वरी की परंपराओं के साथ बस्तर की समृद्ध संस्कृति और आस्था को जीवंत रखने का माध्यम भी है। इस पर्व में स्थानीय परंपराओं, सांस्कृतिक धरोहर और धार्मिक आस्था का अद्भुत मिश्रण देखने को मिलता है। डोली यात्रा के दौरान छत्तीसगढ़ की लोक कला, संगीत और परंपराओं का भी अनुभव होता है।
75 दिनों तक चलने वाले इस अनोखे पर्व में मां की डोली और छत्र के साथ जिया पुजारी, मांझी, पेरमा, जयता, सेवादार और समाज के प्रमुख प्रतिनिधि भी यात्रा में शामिल हुए। डोली यात्रा पारंपरिक मार्ग से होकर कारली, गीदम, बास्तानार, किलेपाल, कोड़ेनार और तोकापाल होते हुए जगदलपुर पहुंचेगी। हर पड़ाव पर श्रद्धालु माता का भव्य स्वागत करेंगे और विधिवत पूजा-अर्चना की जाएगी।