Career Advice: देश में विद्यार्थियों की आत्महत्या के बढ़ते मामले चिंताजनक है। आइए, जानते हैं कि असिस्टेंट प्रोफेसर राकेश जैन ने इस पर क्या कहा। उन्होंने छात्रों को करियर संबंधित एडवाइज भी दिए।
Career Advice: देश में विद्यार्थियों की आत्महत्या के बढ़ते मामले चिंताजनक है। यह भारत की अघोषित त्रासदी की तरह है। इसलिए समस्या के समाधान पर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है। सवाल यह है कि आखिर कोई विद्यार्थी आत्महत्या करने के बारे में सोचता ही क्यों है? ये कहना है गीतांजलि इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्निकल स्टडीज के असिस्टेंट प्रोफेसर राकेश जैन का।
दरअसल, कई छात्र हैं जिन्हें तय समय और सीमित संसाधन में अपना बेस्ट देना होता है। नीट परीक्षा हो या जेईई या फिर यूपीएससी छात्रों को कम सीट, कट-ऑफ, नेगेटिव मार्किंग आदि कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। यही कारण है कि भारतीय छात्रों पर बेहतर करने का दबाव बढ़ता जा रहा है। साथ ही आजकल राज्य और राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा में कई गड़बड़ी और पेपर लीककी घटनाएं आम हो चली हैं। कई आंकड़ें बताते हैं कि पिछले कुछ सालों में छात्रों की आत्महत्या के मामले बढ़े हैं। छात्रों के बीच बढ़ते आत्महत्या (Student Suicide) के मामले को लेकर असिस्टेंट प्रोफेसर राकेश जैन ने अपनी प्रतिक्रिया दी।
उन्होंनेराजस्थान पत्रिका को बताया कि आत्महत्या करने वाले विद्यार्थी भी जीना चाहते हैं, लेकिन अपनी समस्याओं का समाधान नहीं पाकर अधिकांश आत्मघाती छात्र अपने इरादों के बारे में चेतावनी देते हैं जैसे धमकी देना या खुद को घायल करने या आत्महत्या की इच्छा के बारे में बात करना। गूगल, यूट्यूब या दूसरे सर्च इंजन से खुद को मारने के तरीकों की तलाश करना, मरने के बारे में बात करना या लिखना। ज्यादातर लोग ऐसे विद्यार्थियों के व्यवहार को नहीं समझ पाते या वे उन्हें गंभीरता से नहीं लेते।
राकेश जैन ने कहा कि इस समस्या को बॉलीवुड की फिल्म (Bollywood Film) थ्री ईडियट्स ने दर्शायाा था। उन्होंने कहा कि यह फिल्म हमें यह सीख देती है कि अगर व्यक्ति अपनी पसंद और क्षमता के अनुसार लक्ष्य चुने तो वो सफल हो सकता है। लेकिन फिर भी लोग समझना नहीं चाहते और देखादेखी या किसी के दबाव में लक्ष्य निर्धारित कर लेते हैं।
वहीं कोचिंग और ट्यूशन के बढ़ते कल्चर को लेकर कहा कि अभिभावक बच्चों पर जबरन कोचिंग का भार डाल देते हैं। पहली बार बाहर जाकर कोचिंग करने वाले विद्यार्थी को संबल की जरूरत होती है। कई विद्यार्थी पहली बार घर से दूर रह रहे होते हैं। उनका परिवार और दोस्तों से मिलना जुलना भी कम हो पाता है। बाहर रहने वाले विद्यार्थी आजादी तो महसूस करते हैं, लेकिन उनका कई तरह की मुश्किलों और तनावों से सामना होता है। विद्यार्थियों को अपने आप को साबित करने का तनाव होता है। साथ ही नए वातावरण में अपने आप को ढालना, नए दोस्तों से समायोजन करना, अच्छी आदत और बुरी आदत में खुद के विवेक से अंतर करने जैसी चुनौतियां भी होती हैं।
छात्र दो मोर्चों पर लड़ रहा होता है, एक है माता-पिता की अपेक्षा और दूसरा अपने आप को दूसरे से बेहतर साबित करने की अभिलाषा। आमतौर पर माता-पिता अपने बच्चों की तुलना दूसरे बच्चों से करने लगते हैं, जिसके कारण जीवन के शुरुआती चरण में ही वे बच्चे निराशा में डूब जाते हैं। अपने बच्चे की दूसरों से तुलना करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि हर बच्चे की अपनी क्षमता और ऊर्जा होती है। हर बच्चे का अपनी क्षमता के हिसाब से लक्ष्य होना चाहिए।
उन्होंने छात्रों को सीख दी कि समर्पण और कड़ी मेहनत से वह हासिल करें जो आप वास्तव में अपने जीवन में चाहते हैं। अभिभावकों से कहा कि बच्चों को उनकी छिपी प्रतिभा के अनुरूप आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें। उनकी क्षमता को पहचानकर उससे अपेक्षा रखने पर ही उन्हें पूरा किया जा सकता है। हर विद्यार्थी डॉक्टर या इंजीनियर नहीं बन सकता। विद्यार्थी की क्षमता और रुचि ही उसका करियर निर्धारित करती है। करियर निर्माण के दौरान बी प्लान जरूर रखना चाहिए। जरूरी नहीं है कि जो आपने अपना लक्ष्य निर्धारित किया है, उसमें सफल ही हो जाएं। विफलता की स्थिति में दूसरा लक्ष्य बनाकर जुट जाएं, सफलता जरूर मिलेगी।