H-1B वीजा जिसे अमेरिका में काम करने के लिए विदेशी पेशेवरों को दिया जाता है, उसके नियमों में संभावित बदलाव की चर्चा ने भारत के टॉप संस्थानों IIT और IIM के प्लेसमेंट सीजन को लेकर चिंता बढ़ा दी है। खासतौर पर उन छात्रों के बीच जो इंटरनेशनल जॉब्स, खासकर US कंपनियों में नौकरी की तैयारी कर रहे हैं।
H-1B visa rules 2025: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीजा कार्यक्रम में बदलाव की घोषणा की थी। इस फैसले ने भारत के उच्च शिक्षा और रोजगार परिदृश्य में भूचाल ला दिया है। हजारों भारतीय छात्रों के लिए, यह फैसला उनके उस "अमेरिकी सपने" को तोड़ सकता है जिसने लंबे समय से उनकी आकांक्षाओं को परिभाषित किया है। कई छात्र, खासकर जो अपने अंतिम वर्ष में हैं और नौकरीपेशा बनने की उम्मीद कर रहे हैं, अब विदेश में अपनी संभावनाओं को लेकर सोच में पड़ गए हैं।
बिट्स पिलानी के ग्रुप वाइस चांसलर और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली के पूर्व निदेशक रामगोपाल राव का कहना है कि, एच-1बी वीजा धारकों के ज्यादा संख्या में वापस लौटने और विदेश जाने वाले लोगों की संख्या कम होने से, भारत की अर्थव्यवस्था और आईटी कंपनियों के राजस्व पर समग्र प्रभाव जटिल होगा। हालांकि, एक अच्छी बात यह हो सकती है कि भारत में आउटसोर्सिंग में वृद्धि होगी, जिससे घरेलू स्तर पर नए अवसर पैदा होंगे। नए नियमों के तहत खासकर उन छात्रों को नुकसान हो सकता है जो बिना फेलोशिप के अमेरिका जाते हैं।
अगर H-1B वीजा प्रक्रिया जटिल और महंगी हुई, तो अमेरिकी कंपनियां कम भारतीय छात्रों को ऑफर दे सकती हैं।
छात्र अब भारत में मौजूद MNCs या स्टार्टअप्स की ओर ज्यादा आकर्षित हो सकते हैं।
अगर विदेशी ऑफर कम हुए तो प्लेसमेंट पैकेज का एवरेज भी गिर सकता है।
कुछ कंपनियां भारतीय छात्रों को भारत में ही नौकरी देकर वीजा की जटिलता से बच सकती हैं।
कई भारतीय हालिया अमेरिकी वीजा नीतियों से निराश हैं, लेकिन जो छात्र पहले से ही अमेरिका में हैं और इस साल स्नातक हो रहे हैं, वे अब स्वदेश लौटने पर विचार कर सकते हैं। भारत के कार्यबल पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ सकता है।नए एच-1बी वीजा से कम संख्या में प्रस्थान और अधिक संख्या में रिटर्न के कारण भारत के मध्य-स्तरीय तकनीकी कार्यबल पर दबाव बढ़ जाएगा, जबकि विदेश में अधिकांश भूमिकाएं विशेष प्रतिभाओं द्वारा भरी जाएंगी। संयुक्त राज्य अमेरिका में आईटी कंपनियों के राजस्व में मंदी का अनुभव हो सकता है - मध्यम आकार की कंपनियों की तुलना में बड़ी कंपनियों के इससे बेहतर तरीके से निपटने की संभावना है।