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Gurmukh Singh Success Story: 6 बार मिली नाकामी, फिर भी नहीं टूटे हौसले, सिपाही गुरमुख सिंह ऐसे बने आर्मी ऑफिसर

Gurmukh Singh Army Success Story: कल तक जो करते थे सैल्यूट, आज खुद बन गए साहब। 12वीं पास गुरमुख सिंह ने 7वीं कोशिश में कैसे पास की IMA परीक्षा? पढ़ें प्रेरणादायक सफर।

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Dec 14, 2025
Lt Gurmukh Singh Army (Image: Gemini)

Gurmukh Singh Army: देहरादून स्थित इंडियन मिलिट्री एकेडमी (IMA) के ऐतिहासिक चेटवुड हॉल के सामने शनिवार को जब पासिंग आउट परेड खत्म हुई, तो वहां मौजूद सैकड़ों चेहरों के बीच एक चेहरा ऐसा था, जिसकी आंखों में सिर्फ खुशी नहीं, बल्कि 14 साल की तपस्या के पूरा होने का सुकून था। यह चेहरा 32 साल के गुरमुख सिंह का था।

यह कहानी किसी आम कैडेट की नहीं है। यह कहानी एक ऐसे जिद्दी इंसान की है जिसने सेना में एक सिपाही के तौर पर सफर शुरू किया और आज अपनी मेहनत के दम पर आर्मी ऑफिसर बनकर ही दम लिया है।

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ऐसे हुई सफर की शुरुआत

गुरमुख का सफर आसान नहीं था। 12वीं पास करते ही वे भारतीय सेना में बतौर सिपाही भर्ती हो गए थे। घर की जिम्मेदारियां और देश सेवा का जज्बा उन्हें फौज में ले आया, लेकिन उनके मन में एक सपना हमेशा पल रहा था, कंधों पर वो दो सुनहरे सितारे देखने का जो एक ऑफिसर की पहचान होते हैं।

ड्यूटी सख्त थी, लेकिन इरादे उससे भी ज्यादा पक्के थे। फौज की नौकरी के साथ-साथ उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। सिपाही की वर्दी में रहते हुए उन्होंने ग्रेजुएशन किया, पोस्ट-ग्रेजुएशन की डिग्री ली और बी.एड भी पूरा किया।

जब 6 बार हाथ लगी निराशा

सफलता की राह में रोड़े बहुत आए। गुरमुख ने ऑफिसर बनने के लिए एक-दो नहीं, बल्कि कई बार परीक्षाएं दीं। उन्होंने 3 बार ACC (आर्मी कैडेट कॉलेज) का एग्जाम दिया, लेकिन फेल हो गए। हिम्मत नहीं हारी, फिर SCO (स्पेशल कमीशन ऑफिसर) एंट्री के जरिए 2 बार कोशिश की, वहां भी नाकामी हाथ लगी।

कुल मिलाकर 6 बार उन्हें असफलता का मुंह देखना पड़ा। कोई और होता तो शायद किस्मत को कोसकर बैठ जाता लेकिन गुरमुख ने अपनी किस्मत खुद लिखने की ठानी थी।

लद्दाख की ठंड और पिता का भरोसा

गुरमुख बताते हैं, "कई बार मेरी पोस्टिंग लद्दाख जैसे मुश्किल बॉर्डर इलाकों में रही। वहां ड्यूटी के बाद पढ़ने का वक्त निकालना और फोकस करना बहुत मुश्किल होता था। कई बार हताशा होती थी।"

लेकिन इस मुश्किल वक्त में उनके पिता सूबेदार मेजर (रिटायर्ड) जसवंत सिंह उनकी ढाल बने। जब भी गुरमुख फेल होकर पिता को फोन करते, तो पिता बस एक ही बात कहते, "बेटा, तुम कर सकते हो। एक बार और कोशिश करो।"

7वीं कोशिश और सफलता

आखिरकार, 7वीं कोशिश में उनकी मेहनत रंग लाई। गुरमुख सिंह ने न सिर्फ परीक्षा पास की, बल्कि मेरिट लिस्ट में अपनी जगह पक्की की। शनिवार को जब उनके पिता और मां कुलवंत कौर ने उनकी वर्दी पर सितारे लगाए तो वह पल देखने लायक था।

लेफ्टिनेंट गुरमुख सिंह को आर्मी एयर डिफेंस (AAD) कोर में कमीशन मिला है। वे कहते हैं, "मैं एक जवान रहा हूं, इसलिए मुझे पता है कि फौज कैसे काम करती है और जवानों को क्या चाहिए। मैं अब एक बेहतर लीडर बन सकूंगा।"

गुरमुख की यह कहानी देश के हर उस युवा के लिए एक सबक है जो एक-दो बार फेल होने पर ही उम्मीद छोड़ देता है।

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