Maliput Melodies Film : "मालिपुट मेलोडीज" एक आदिवासी गांव में शूट की गई फिल्म है। इस फिल्म के किरदार भी रिश्तेदार हैं। फिल्म के निर्देशक और निर्माता ने पत्रिका के साथ इंटरव्यू में इस फिल्म के बनने की कहानी को बताया है।
गोवा/पणजी."घाट-घाट पर पानी बदले कोस कोस पर वाणी…" और इस लाइन में आगे जोड़ते हुए कहा जाए- "गांव-गांव में है जितने लोग उतनी है कहानी।" ये बात "मालिपुट मेलोडीज" (Movie Maliput Melodies) ओडिया एंथोलॉजी फिल्म पर सटीक बैठती है। ये एक ऐसी मूवी है जिसको पूरे गांव ने मिलकर बना दिया। इस फिल्म के किरदार असल में चाचा-चाची, दादा-दादी, भैया-दीदी, जीजा-साली हैं। चलिए इसके बनने की पूरी कहानी को फिल्म को निर्माता कौशिक दास और निर्देशक विशाल पटनायक से जानते हैं। पत्रिका के रवि कुमार गुप्ता के साथ बातचीत में फिल्म के बनने की कहानी को बताया है।
इफ्फी गोवा 2025 में भारतीय पैनोरमा के लिए चुनी गई एकमात्र ओडिया फीचर फिल्म "मालिपुट मेलोडीज" है। इसकी आधिकारिक स्क्रीनिंग भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में की गई। ये उन 25 बेस्ट फिल्मों (जिसमें मेनस्ट्रीम सिनेमा की 5 फिल्में शामिल हैं) में से है जिनको 400 से अधिक फिल्मों से चुना गया है।
कौशिक दास कहते हैं कि "मालिपुट मेलोडीज" एक फीचर एंथोलॉजी फिल्म है। इसकी कहानी ओडिशा के कोरापुट जिले के एक छोटे से गांव मालिपुट की है। इस फिल्म की शूटिंग भी इसी गांव और कोरापुट के कुछ स्थानों पर की गई है। फिल्म के कई मनोरम नेचुरल दृश्यों को देखकर शायद यकीन करना मुश्किल हो सकता है। मैं भुवनेश्वर से हूं पर जब शूटिंग के लिए गया तो वहां का नजारा देखकर दंग रह गया।
निर्देशक विशाल पटनायक जयपुर/जेपोर (ओडिशा) ने स्क्रिनिंग के सवाल-जवाब सत्र के दौरान बताया, इस फिल्म के 80 प्रतिशत किरदार करने वाले जान-पहचान के लोग हैं। कोई चाचा-चाची, बुआ, जीजा-साली आदि हैं। जब सबको पता चला कि मैं फिल्म बनाने जा रहा हूं तो सब रोल के लिए कहने लगे। कोई नाराज ना हो जाए इसलिए सबको रोल दे दिया। बता दें, निर्देशक विशाल युवा है और जयपुर (ओडिशा) के रहने वाले हैं।
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कौशिक दास कहते हैं, रोल दे तो दिया पर सबसे एक्टिंग कराना मुश्किल काम था क्योंकि, कोई भी कैमरा के सामने काम नहीं किया था। इसलिए सबको ट्रेनिंग दी गई। करीब 2.5 साल में सबकुछ तैयार हो गया। हालांकि, इसमें 20 प्रतिशत तक थियेटर वाले कलाकार भी हैं। जिनकी वजह से भी लोगों को ट्रेनिंग देने में मदद मिली।
कौशिक कहते हैं, फिल्म गांव में शूट की गई और कलाकार भी सब जान-पहचान के थे। इसके बावजूद भी ढाई साल में करीब 50 लाख रुपए तक खर्च हो गए तब जाकर ये फिल्म तैयार हुई। अभी तक 7 से अधिक फिल्म बना चुका हूं। अभी कुछ फिल्मों पर काम चल रहा है। साथ ही कोशिश है कि हम गांव की कहानियों को इस तरह लेकर आएं और दुनिया को सिनेमाई भारत दिखाएं।
"मालिपुट मेलोडीज" एक फीचर एंथोलॉजी फिल्म है। इसमें 4 अलग-अलग एक ही गांव की कहानी है। पहली कहानी- कान का फूल (झुमका), दूसरी कहानी- रंगमाटी (पलायन की कहानी), तीसरी कहानी- वाद्यकार (ढोल बजाने वाले) और अंतिम कहानी है- ब्याह घर। पहली कहानी पिता-पुत्री के प्रेम थी, इस कहानी ने दर्शकों को बांधे रखा और आगे ले जाने का काम किया। पर दर्शकों को सबसे अधिक आनंद चौथी कहानी में आया। इस पर खूब तालियां बजीं।