गोंडा

इस शक्तिपीठ में असाध्य नेत्र रोगों से मिलती है मुक्ति, नवरात्र पर लाखों श्रद्धालु करते हैं मां के दर्शन

Chaitra Navratra 2018 : गोंडा जिले की तरबगंज तहसील में स्थित है मां वाराही देवी/उत्तरी भवानी का मंदिर, जानें- कथा व महात्म...

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Mar 18, 2018

गोंडा. वैसे तो एक वर्ष में चार नवरात्र होते है, जिसमें दो नवरात्र ही मुख्य माने जाते हैं। इनमें चैत्र नवरात्र का विशेष महत्व है। क्योंकि हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र नवरात्र से ही नये साल का शुभारंभ होता है। चैत्र नवरात्र आज से शुरू हो गये हैं। नवरात्र में जो भक्त सच्ची भक्ति भाव के साथ मां को दिल से पुकारते हैं, मां की पूजा, अर्चना और व्रत रखते हैं। माता उनके सभी कष्ट हर लेती है और मनोवांछित फल प्रदान करती है।

नवरात्र का पर्व देश भर में अपार श्रद्धा एवं भक्ति के साथ मनाया जाता है। अलग-अलग जगहों पर अपने-अपने ढंग से नवरात्र का पर्व मनाया जाता है। जैसे गुजरात में गरबा-डांडिया, पंजाब में मां का जगराता, बंगाल में धूप आरती और उत्तर प्रदेश में गेहूं के जवारे के बीच कुंभ स्थापना के बाद स्नेह सहित मां की आरती होती है। सभी भक्त ध्यान मग्न हो, अपने जीवन के दुखों को भुलाकर मस्ती में मस्त होकर, मां का गुणगान करते हैं। देश भर में नवरात्र भले ही अलग-अलग तरह से मनाया जाता हो, लेकिन सबके मूल में मां को खुश करना ही होता है।

मां के इस दरबार में अंधों को मिलती है रोशनी
देश भर में माता के तमाम मंदिर हैं, जहां दर्शन मात्र से अनके दुखों से छुटकारा मिल जाता है। नवरात्र के पावन पर्व पर हम आपको मातारानी के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताते हैं, जहां सच्चे मन से जाने भर से आपके समस्त कष्ट कट जाते हैं। यह अद्भुत स्थान है उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में, जिसे उत्तरी भवानी के नाम से जानते हैं। श्रद्धालुओं का मानना है कि शक्ति स्वरूपिणी माता वाराही देवी के दर्शन मात्र से अंधे लोगों की आंखों में रोशनी आ जाती है। यहां 1800 साल पुराने विशालकाय बरगद के वृक्ष से निकलने वाले दूध को आंखों में डालने से यह चमत्कार होता है।

पौराणिक मंदिर और 18 सौ साल पुराना वटवृक्ष
उत्तरी भवानी पौराणिक मन्दिर के बारे में एक बहुत बड़ी प्राचीन मान्यता है कि यहां 18 सौ साल पुराने विशाल वटवृक्ष का दूध डालने से आंखों से सम्बन्धित हर तरह की बीमारियां स्वतः दूर हो जाती हैं और आंखों में रोशनी आ जाती है। मां भगवती के स्थान पर बरगद का विराट वृक्ष है। यह वटवृक्ष करीब 500 मीटर क्षेत्र में चारों तरफ से पृथ्वी को छूते हुए वाराही देवी की पौराणिकता व महत्वा का प्रत्यक्ष साक्षी आज भी बना हुआ है। देवी की इस अपार महिमा के चलते नेत्र विकारों से छुटकारा पाने के लिए यहां भारी संख्या में देवी भक्तों का जमावड़ा लगता है। श्रद्धालु अपनी अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए अलग-अलग राज्यों से आते हैं। वैसे प्रत्येक सोमवार व शुक्रवार को मन्दिर में भारी भीड़ उमड़ती है।

वाराही देवी की कथा
सरयू व घाघरा के पवित्र संगम पर पसका सूकरखेत स्थित भगवान वाराह का एक विशालतम मन्दिर है। संगम जाने वाले श्रद्धालु भगवान वाराह के दर्शन के बाद मां वाराही देवी उत्तरी भवानी के भी दर्शन करते हैं। मान्यतानुसार पूर्व काल में भगवान वाराह ने सूकर के रूप में पृथ्वी के जितने भू-भाग पर लीलाएं की थीं, वही स्थान वाराह धाम सूकरखेत के नाम से प्रचलित हुआ। पुराणों के अनुसार, एक बार हिरणयाक्ष्य नामक दैत्य द्वारा पृथ्वी को समुद्ध में डूबो दिये जाने पर ब्रहमा जी की नाक से अंगूठे के बराबर एक सूकर प्रकट हुआ। जिसने देखते-देखते बहुत बड़ा विशाल रूप धारण कर लिया और समुद्र से बाहर निकलकर सर्व प्रथम वह जिस भू भाग में बाहर आया वह क्षेत्र आज के युग में अवध क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। तत्पश्चात उसने घुर-घुराते हुए पृथ्वी मे जितने भू-भाग की जमीन को खोद डाला वह भाग घाघरा नदी के नाम से जानी जाती है। उसी घुरघुराहट के नाते से इस नदी का नाम घाघरा पड़ा। सूकर के इस घुर-घुराहट से तीनो लोको मृत्युलोक, स्वर्गलोक और पताल लोक के प्राणी, ऋषि-मुनी व देवता अचम्भित होकर एकाएक पशुकः-पशुकः बोल पड़े। वह स्थान पसका के रूप में जाना जाता है। वहां भगवान वाराह का प्राचीन मन्दिर आज भी तमाम स्मृतियों को समेटे हुए पूर्व काल का प्रत्यक्षदर्शी बना हुआ है।

श्रीमद्भागवत पुराण में वाराही देवी का उल्लेख
पुजारी राघवराम बताते हैं कि पसका सूकरखेत में अवतरित भगवान वाराह की विशेष स्तुति के फलस्वरूप वहां से कुछ ही दूरी पर मुकुन्दपुर नामक गांव में धरती से देवी भवानी वाराही के रूप में अवतरित हुईं, तब भगवान विष्णु के नाभि कमल पर विराजमान ब्रहमा और मनसतरूपा ने उन्हें सर्वप्रथम देखने के पश्चात जोर-जोर से बोल पड़े अवतरी भवानी-अवतरी भवानी अर्थात जगत जननी जगदम्बा का अवतार हुआ है। प्राचीन मान्यता के अनुसार तमाम मनोकामना की पूर्ति औेर खासकर नेत्र सम्बन्धी बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए वर्ष के दोनों नवरात्रि में श्रद्धालु भक्त वहां पहुंचकर मां भगवती की स्तुति करते हैं। श्रीमद्भागवत के तृतीय खण्ड में भगवान वाराह की कथा और स्तुति में वाराही देवी का विशेष उल्लेख मिलता है। जो इस स्थान की महत्वा व पौराणिकता की पुष्टि करता है। मां भगवती देवी उत्तरी भवानी धर्म, अर्थ, काम , मोक्ष सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करती हैं। दुर्गा स्तुति में 12 वें श्लोक मे मां भगवती स्वयं कहती है कि मैं अपने भक्तो को सभी बाधाओं से मुक्त करके धन पुत्र ऐश्वर्य प्रदान करती हूं। देवी वाराही जगदम्बा ने महिषासुर के वध के दौरान कहा था कि मनुष्य जिन मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए मेरी स्तुति करेगा वह निश्चित रूप से पूर्ण होगी।

नवरात्र पर लाखों श्रद्धालु करते हैं माता के दर्शन
उत्तर भवानी का मंदिर गोंडा जिला मुख्यालय से करीब 27 किलोमीटर पश्चिम दक्षिण कोने पर स्थित है। माता का यह स्थान तरबगंज तहसील के मुकुन्दपुर गांव में वाराही देवी/उत्तरी भवानी के नाम से फेमस है। इस पौराणिक स्थान पर नवरात्र के अवसर पर विशाल मेला लगता है। मेले में देश व प्रदेश के कोने-कोने से लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।

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Updated on:
18 Mar 2018 08:28 am
Published on:
18 Mar 2018 08:09 am
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