MP News: याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने पाया कि सात फेरे नहीं हुए, अग्नि को साक्षी नहीं बनाया गया और संपूर्ण विवाह प्रक्रिया धोखे से कराई गई।
MP News: हाईकोर्ट ने महत्त्वपूर्ण निर्णय देते हुए ग्वालियर फैमिली कोर्ट के उस आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें आर्य समाज के विवाह प्रमाण-पत्र के आधार पर एक महिला को सेवानिवृत्त कंपनी कमांडेंट की पत्नी माना गया था। अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल प्रमाण-पत्र विवाह का वैधानिक आधार नहीं हो सकता। हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 7 के अनुसार सप्तपदी तथा वैदिक रीतियों के पालन का प्रमाण होना अनिवार्य है।
75 वर्षीय रामस्वरूप (परिवर्तित नाम) ने बेटे के लिए विवाह का विज्ञापन अखबार में दिया था। इसी दौरान 45 वर्षीय रानी (परिवर्तित नाम) से संपर्क हुआ। महिला उन्हें 26 मार्च 2012 को लोहामंडी स्थित आर्य समाज मंदिर ले गई। वर माला पहनाकर विवाह प्रमाण-पत्र बनवा लिया। इसके बाद महिला ने यह प्रमाण-पत्र सेवा पुस्तिका में जमा कर स्वयं को पत्नी के रूप में दर्ज करा लिया। रिटायर्ड कमांडेंट की इससे पहले दो शादियां हुई थी और दोनों पत्नियों का निधन हो चुका था।
याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने पाया कि सात फेरे नहीं हुए, अग्नि को साक्षी नहीं बनाया गया और संपूर्ण विवाह प्रक्रिया धोखे से कराई गई। इसलिए विवाह को अमान्य घोषित करते हुए फैमिली कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया गया। निर्णय के बाद सेवा पुस्तिका से महिला का नाग हटाने की प्रक्रिया प्रारंभ हुई।
महिला ने स्वयं को पत्नी बताते हुए सेवानिवृत्त कमांडेंट की पेंशन, प्रॉपर्टी और अन्य संपत्तियों में हिस्सा मांगा। इसकी जानकारी मिलने पर कमांडेंट कुटुंब न्यायालय पहुंचे, जहां सुनवाई के बाद फैमिली कोर्ट ने महिला का पत्नी का दर्जा बरकरार रखा। इसी निर्णय को चुनौती देते हुए कमांडेंट हाईकोर्ट पहुंचे, लेकिन मुकदमे के दौरान ही उनका निधन हो गया। इसके बाद मामले को उनके बेटे ने आगे बढ़ाया।