COVID-19 Nasal Vaccine : एशिया में कोरोना के मामले फिर से बढ़े, भारत में भी 257 नए केस. स्वास्थ्य विभाग JN.1 वेरिएंट पर नज़र रख रहा है. अब वैज्ञानिकों ने कोरोना का एक नया, सुरक्षित और असरदार नाक वाला टीका खोजा है, जो वायरस को शरीर में घुसने से पहले ही रोक सकता है.
New COVID-19 Alternative : पिछले कुछ हफ़्तों से एशिया में कोरोना के मामले फिर से बढ़ने लगे हैं खासकर हांगकांग, सिंगापुर और थाईलैंड में, भारत में भी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, सोमवार, 19 मई तक 257 नए मामले सामने आए हैं.
स्वास्थ्य विभाग इस पर पैनी नज़र रख रहा है, खासकर JN.1 वेरिएंट पर जो ओमिक्रॉन का ही एक प्रकार है और पूरी दुनिया में फैल रहा है. महामारी के दौरान टीकाकरण ने वायरस को रोकने में बहुत मदद की थी.
अब वैज्ञानिकों ने कोरोना के पारंपरिक टीकों का एक नया और उम्मीद भरा विकल्प खोजा है. उनका मानना है कि यह ज्यादा सुरक्षित, ज्यादा असरदार हो सकता है और वायरस को वहीं रोक सकता है जहां से वह शरीर में घुसता है यानी नाक में ही.
अभी जो ज्यादातर टीके लगते हैं जैसे कोरोना के टीके, वे बांह में इंजेक्शन के जरिए दिए जाते हैं. ये टीके शरीर के अंदर जाकर हमारी इम्यूनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता) को बढ़ाते हैं.
लेकिन Yale University के वैज्ञानिकों ने एक नई रिसर्च की है, जिसके नतीजे 'Nature Immunology' नाम की पत्रिका में छपे हैं. इसमें उन्होंने पाया है कि नाक से दी जाने वाली वैक्सीन (जिसे 'नेज़ल वैक्सीन' कहते हैं) ज्यादा फायदेमंद हो सकती है, खासकर उन बीमारियों के लिए जो सांस के जरिए फैलती हैं, जैसे कि कोरोना.
निशाना बिल्कुल सही जगह: इंजेक्शन वाली वैक्सीन पूरे शरीर में काम करती है, लेकिन नाक वाली वैक्सीन सीधे वहीं काम करती है जहाँ से वायरस शरीर में घुसता है – यानी नाक और गले के रास्ते में. इससे वायरस को वहीं रोका जा सकता है, जहाँ से उसका हमला शुरू होता है.
बूस्टर की ज़रूरत नहीं? इस रिसर्च में यह भी सामने आया है कि नाक वाली वैक्सीन बूस्टर के तौर पर देने पर, बिना किसी "एडजुवेंट" (जो टीके के असर को बढ़ाने वाले तत्व होते हैं) के भी सांस की नली में मज़बूत रोग प्रतिरोधक क्षमता पैदा कर सकती है. इसका मतलब है कि यह ज़्यादा सुरक्षित हो सकती है और इसे बनाने में भी आसानी हो सकती है.
सीधे शब्दों में कहें तो, नाक वाली वैक्सीन शरीर के एंट्री पॉइंट पर ही वायरस को रोकने में ज्यादा कारगर हो सकती है, जबकि इंजेक्शन वाली वैक्सीन पूरे शरीर को सुरक्षित करती है.
इस रिसर्च की मुख्य वैज्ञानिक, येल स्कूल ऑफ मेडिसिन (YSM) में इम्युनोबायोलॉजी की प्रोफेसर अकिको इवासाकी कहती हैं, "हमारी स्टडी से पता चलता है कि कैसे एक छोटा सा वायरल प्रोटीन ही हमारे सांस के रास्ते में वायरस के खिलाफ रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा सकता है.
वह आगे बताती हैं, "इन आँकड़ों से ये बात सामने आती है कि नाक में डालने वाले स्प्रे में मौजूद वायरल प्रोटीन, वायरस के शरीर में घुसने वाली जगह पर ही, यानी नाक में ही, सुरक्षित तरीके से वायरस के खिलाफ़ इम्यूनिटी बढ़ाने में मदद कर सकता है.
वैज्ञानिकों ने देखा कि नाक वाली वैक्सीन कोरोना से लड़ने में ज़्यादा असरदार हो सकती है. उन्होंने चूहों पर प्रयोग किया: पहले इंजेक्शन से आम कोरोना वैक्सीन दी, फिर नाक से 'बूस्टर' वैक्सीन दी.
इस नई 'प्राइम एंड स्पाइक' रणनीति में, पहले इंजेक्शन से शरीर को तैयार किया जाता है और फिर नाक से दी गई बूस्टर वैक्सीन सीधे सांस के रास्ते में, जहाँ से वायरस शरीर में घुसता है, मज़बूत इम्यूनिटी बनाती है.सबसे खास बात ये है कि नाक वाले बूस्टर को 'एडजुवेंट' (टीके का असर बढ़ाने वाला केमिकल) की ज़रूरत नहीं पड़ती, जिससे साइड इफेक्ट का खतरा कम होता है. आम कोरोना वैक्सीन नाक और फेफड़ों में ज़्यादा IgA (एक तरह की एंटीबॉडी) नहीं बनाती, इसलिए लोग फिर भी संक्रमित हो सकते हैं. पर नाक वाला बूस्टर IgA का स्तर बढ़ाता है, जिससे वायरस को शरीर में घुसने से पहले ही रोका जा सकता है.
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