Lung Cancer: आमतौर पर लोग इसे सिर्फ धूम्रपान से जोड़ते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि कई बार ऐसे लोग भी इसकी चपेट में आ जाते हैं जिन्होंने कभी सिगरेट तक नहीं छुई। आइए जानते हैं कि इससे जुड़ी कौन-कौन सी बातें आपके लिए जानना जरूरी हैं।
Lung Cancer: फेफड़ों का कैंसर, ये शब्द सुनते ही मन में डर और असमंजस पैदा होता है। इलाज की नई-नई तरक्कियों के बावजूद यह आज भी सबसे खतरनाक और जानलेवा कैंसर में से एक है। आमतौर पर लोग इसे सिर्फ धूम्रपान से जोड़ते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि कई बार ऐसे लोग भी इसकी चपेट में आ जाते हैं जिन्होंने कभी सिगरेट तक नहीं छुई। तब सवाल उठता है "आखिर ऐसा कैसे हुआ?"असल में, हमारा रहन-सहन, खानपान, आसपास का माहौल और छोटी-छोटी आदतें फेफड़ों की सेहत पर गहरा असर डालती हैं। यही वजह है कि अब यह बीमारी सिर्फ स्मोकर्स तक सीमित नहीं रही, बल्कि एक लाइफस्टाइल डिसीज बनती जा रही है।
सिगरेट, बीड़ी, सिगार या फिर "लाइट" और "फिल्टर्ड" वर्ज़न सभी में 70 से भी ज्यादा जहरीले केमिकल होते हैं जो सीधे फेफड़ों पर हमला करते हैं। लंबे समय तक स्मोकिंग करने वालों में फेफड़ों के कैंसर का खतरा 30% तक बढ़ जाता है, जबकि नॉन-स्मोकर्स के लिए ये खतरा 1% से भी कम होता है।स्मोकिंग छोड़ने के 5 साल के भीतर ही रिस्क कम होना शुरू हो जाता है और समय के साथ लगातार घटता है। निकोटीन की लत छोड़ना मुश्किल हो सकता है, लेकिन कैंसर से लड़ना उससे कहीं ज्यादा मुश्किल है।
अगर आप स्मोक नहीं करते, तो भी सुरक्षित नहीं हैं। परिवार का कोई सदस्य, ऑफिस का सहकर्मी या सार्वजनिक जगहों पर दूसरों का धुआं आपके फेफड़ों को उतना ही नुकसान पहुंचा सकता है। रिसर्च बताती है कि सेकंडहैंड स्मोक से नॉन-स्मोकर्स में भी फेफड़ों के कैंसर का खतरा लगभग 24% तक बढ़ जाता है। खासकर बच्चों के लिए ये बेहद हानिकारक है।
बड़ी-बड़ी सड़कों से उठता धुआं, फैक्ट्रियों का धुआं और कचरा जलने से उठने वाले कण ये सब हमारी हर सांस के साथ फेफड़ों में पहुंच जाते हैं। लंबे समय तक ऐसी हवा में जीना फेफड़ों में सूजन और सेल डैमेज का कारण बनता है, जिससे कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल, प्रदूषण कम करने वाली नीतियों को सपोर्ट करना और सौर ऊर्जा जैसे विकल्प अपनाना न सिर्फ हमारे बल्कि आने वाली पीढ़ियों के फेफड़ों को भी सुरक्षित कर सकता है।
फेफड़ों की सेहत सिर्फ सांस लेने से नहीं, बल्कि खाने से भी जुड़ी है। हरी सब्जियां, मौसमी फल और एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर आहार फेफड़ों की कोशिकाओं को रिपेयर करने में मदद करता है। दूसरी ओर, ज्यादा शराब और पोषण की कमी शरीर की नैचुरल हीलिंग कैपेसिटी को कमजोर कर देती है।
फेफड़े सिर्फ अंग नहीं हैं, ये हमारी जिंदगी की धड़कन हैं। फेफड़ों का कैंसर एक दिन में नहीं होता, बल्कि सालों की लापरवाही और खराब आदतों से धीरे-धीरे बढ़ता है।आज से ही बदलाव शुरू करें ।