Prevent cancer by changing lifestyle : कैंसर, शब्द सुनते ही हर किसी के मन में डर और चिंता पैदा होती है। यह एक ऐसी बीमारी है जो न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक और भावनात्मक स्तर पर भी व्यक्ति को प्रभावित करती है। 4 फरवरी को मनाए जानें वाले विश्व कैंसर दिवस के अवसर पर हमने बात की डॉ. पंकज जैन प्रोफेसर एवं फिजिशियन कोटा मेडिकल कॉलेज, राजस्थान से ।
World Cancer Day 4 February : कैंसर जैसी बीमारी का नाम सुनते ही हर किसी के जेहन में एक ही बात उभर कर आती है कि अब तो बचना मुश्किल है एवं पैरों तले जमीन खिसकती सी लगने लगती है, और हो भी ना क्यों, कैंसर विश्व भर में मृत्यु का अग्रणी कारण है एवं डबल्यूएचओ के अनुसार सन 2020 में लगभग 10 मिलियन मौतें और छ: में से एक मौत कैंसर के कारण हुई है वहीं दुनिया भर में कैंसर के 19.2 मिलियन नए केस दर्ज किए गए है। बहुतायत से निदान किए जानें वाले कैंसर में स्तन कैंसर, फेफड़ों , बडी आंत, मलाशय एवं प्रोस्टेट ग्रंथि का कैंसर शामिल है।
डॉ. पंकज जैन ने कहा ज्यादातर लोग कैंसर को अपनी नियति मानकर तकदीर को कोसते हैं जबकि इसके लिए हम स्वयं एवं हमारी जीवन शैली भी किसी हद तक जिम्मेदार है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा इसके बारे में एक थ्योरी भी दी गई है कि पश्चिमीकरण के चलते निम्न मानव विकास सूचकांक वालें देशों में तेजी से सामाजिक व आर्थिक बदलाव आए है जिनके चलते कैंसर से जुडे जोखिम कारकों में बढ़ोतरी हुई है, फलस्वरूप संक्रमण से जुड़े कैंसर का खतरा तो कम हुआ है किन्तु प्रजनन, खान पान एवं हारमोनल जोखिमों से जुड़े कैंसर बढ़े हैं । इन जोखिम कारको में मुख्यतया तंबाकू एवं तंबाकू से संबंधित उत्पाद, शराब का सेवन, मोटापा, फाइबर युक्त आहार की कमी एवं शारीरिक गतिविधियों का अभाव शामिल है। लगभग एक तिहाई कैंसर से संबंधित मौतें उपरोक्त वर्णित जोखिम कारकों के चलते ही होती है।
कुछ प्रकार के संक्रमण भी कैंसर हेतु उत्तरदायी है जिनमे पेपीलोमा वायरस, एचआइवी वायरस,, 'हिपेटाइटीस बी, सी वायरस, एवं एच पाइलोरी संक्रमण प्रमुख है। एक प्रतिष्ठित जर्नल में प्रकाशित शोध के अनुसार सन् 2018 में संपूर्ण विश्व में निदान किए गए कैंसर में से लगभग 13% कैंसर के लिए ये संक्रमण ही ज़िम्मेदार है। हिपेटाइटिस वायरस लिवर कैंसर जबकि पेपीलोमा वायरस,महिलाओ के सरवाइकल कैंसर का प्रमुख कारण है।
डॉ. पंकज जैन ने कहा आहार संबंधी कुछ कारक भी कैंसर का कारण बनते है। उनमें स्मोक्ड फिश आमाशय कैंसर, डाइटरी फाइबर की कमी व बीफ़ से आंतो के कैंसर एवं उच्च वसा युक्त आहार से स्तन कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
कैंसर के अन्य कारणों में अल्ट्रा वॉयलेट विकिरणे, रेडिएशन, वायु व जल प्रदूषण, कीटनाशक, कुछ दवाइयाँ जैसे एस्ट्रोजन प्रमुख है।
भारत में कैंसर मरीज़ो की शुरुआती स्क्रीनिंग एवं उपचार प्रबंधन की सुविधाएं अत्यन्त ही सीमित है। दो तिहाई से अधिक कैंसर मरीज निदान के समय उच्च विकसित एवं लाइलाज स्तर पर पहुंच चुके होते हैं। ऐसे में उपयुक्त रणनीति बनाने की आवश्यकता है जो आमजन में कैंसर, कैंसर जनित जोख़िम कारकों एवं कैंसर का पता लगाने के लिए शुरुआती स्क्रीनिंग हेतु जागरूकता पैदा कर सके। इसी परिकल्पना को ध्यान में रखते हुए प्रतिवर्ष 4 फरवरी को विश्व कैंसर दिवस मनाया जाता है जिसकी थीम इस वर्ष "यूनाइटेड बाय यूनिक" है, जो कैंसर के खिलाफ लड़ाई में व्यक्तिगत, रोगी-केंद्रित देखभाल की महत्वपूर्ण भूमिका को परिभाषित करती है। यह प्रत्येक व्यक्ति की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कैंसर उपचार को अनुकूलित करने के महत्व पर भी प्रकाश डालती है।
कैंसर जैसी भयावह त्रासदी की अच्छी बात यह है कि इससे संबंधित जोखिम कारकों को दरकिनार करके एवं साक्ष्य आधारित रोकथाम रणनीति को लागू करके 30 से 50% तक कैंसर से बचाव किया जा सकता है। कैंसर से बचाव के लिए व्यक्तिगत स्तर पर जीवन शैली में कुछ परिवर्तन कर अच्छी आदतों को अपनाना होगा। तंबाकू व तंबाकू से बने उत्पादो एवं शराब के सेवन को ना करना होगा। फाइबर युक्त संतुलित पौष्टिक आहार के साथ शरीर के वजन को स्थिर रखने के लिए शारीरिक व्यायाम को तरजीह दे। हेपेटाइटिस व पेपिलोमा वाइरस के लिए आवश्यक टीकाकरण अवश्य कराएं। अल्ट्रावायलेट विकिरणों, रेडिएशन, घर व बाहर के वायु प्रदूषण से बचे।
विधायी उपायों में तंबाकू, बीड़ी, सिगरेट की बिक्री प्रमोशन पर नियंत्रण, उत्पादों एवं विज्ञापनो में स्वास्थ्य संबंधी चेतावनी, उत्पादों में शामिल सभी हानिकारक तत्वों का विस्तृत विवरण, इन उत्पादों पर अधिक कर, ब्रिकी पर प्रतिबंध, सार्वजनिक एवं कार्य स्थलों पर धूम्रपान पर रोक शामिल है। भारत में ज्यादातर राज्य सरकारों द्वारा बंद जगहों जैसे सिनेमा हॉल, बस, शैक्षणिक संस्थानों एवं अस्पतालो में धूम्रपान निषिद्ध करने हेतु कानून प्रख्यापित किए गए हैं।
कैंसर से बचाव की मुख्य व अंतिम कड़ी आम जन में इसके प्रति जागरुकता एवं समय पर स्क्रीनिंग की महत्ता को स्थापित करना है। कैंसर शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य ही लोगो को कैंसर के जल्द निदान व उपचार के प्रति प्रेरित करना है। इसके लिए लोगों को कैंसर के शुरुआती चेतावनी लक्षणों के लिए शिक्षित करना होगा जैसे कि
- स्तन में गांठ या ठोस एरिया विकसित होना
- मस्से या तिल में हाल ही में कुछ बदलाव
- आंत्र की आदतों में अप्रत्याशित परिवर्तन
- लगातार कफ या आवाज में कर्कशता आना
- मासिक धर्म में अत्यधिक रक्तस्त्राव
- शरीर में किसी भी अंग से स्क्तस्त्राव
- बिना किसी कारण के वजन का घटना
- लंबे समय से घाव या फोडे का ठीक नहीं होना।
यदि कोई चेतावनी लक्षण नहीं है तो ऐसे में कैंसर स्क्रीनिंग एक ऐसा औजार है, जो कैंसर के जल्द निदान में सहायक होता है। सर्वाइकल कैंसर, स्तन कैंसर व लंग कैंसर आसानी से समय पर स्क्रीनिंग से शुरुआती स्टेज पर ही पता लगाए जा सकते हैं। मौजूदा दिशा निर्देशों के अनुसार महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर कैंसर की स्क्रीनिंग पैप स्मीयर टेस्ट द्वारा 30 वर्ष की उम्र से शुरू कर देनी चाहिए एवं इसके बाद हर 3 वर्ष में होती रहनी चाहिए । स्तन कैंसर के लिए स्तन का स्व परीक्षण ही सर्वोत्तम स्क्रीनिंग टूल है, क्योंकि चिकित्सक के बजाय स्वंय से ही इसका शुरुआती दौर में पता लग पाता है। इसी तरह की स्क्रीनिग अन्य विभिन्न प्रकार के कैंसर हेतु भी उपलब्ध है।
कैंसर इतनी भी खतरनाक बीमारी नहीं है, बस जरूरत है, जरा सी सावधानी की, जोखिम कारकों से बचने की, कैंसर के शुरुआती संकेतो को समझने की एवं समय पर स्क्रीनिंग की क्योंकि ज्यादातर कैंसर में जल्द निदान से ठीक होने की अच्छी उम्मीद रहती है। फिजिशियन एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर तैनात चिकित्सकों को भी सचेत रहना होगा क्योकि कैंसर का मरीज़ सर्वप्रथम इसी स्तर पर परामर्श लेता है। तो आइए एक जुट होते हैं, कैंसर रोकथाम की इस मुहिम में, ताकि कैंसर से होने वाली बीमारी और मृत्यु को काफी हद तक कम किया जा सके।
डा. पंकज जैन
एसोसिएट प्रोफेसर एवं फिजिशियन
मेडिकल कॉलेज, कोटा