जयपुर

Rajasthan: राजस्थान में 1,357 ऑनलाइन ब्लैकमेलिंग केस, सजा सिर्फ 4 में, जांच व्यवस्था पर उठे सवाल

राजस्थान में ऑनलाइन ब्लैकमेल के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है, लेकिन सजा की दर बेहद चिंताजनक बनी हुई है। दो साल में दर्ज 1,357 मामलों में केवल चार मामलों में सजा मिल पाई है।

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Dec 29, 2025
प्रतीकात्मक तस्वीर

जयपुर। राजस्थान में ऑनलाइन ब्लैकमेलिंग के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, लेकिन इनमें सजा मिलने की दर चिंताजनक रूप से कम है। 1 सितंबर 2023 से 31 अगस्त 2025 तक कुल 1,357 मामले दर्ज किए गए, लेकिन केवल चार मामलों में ही अदालत ने दोष सिद्ध किया। यह अंतर साइबर अपराधों की जांच और अभियोजन प्रक्रिया में गंभीर खामियों की ओर इशारा करता है। ये आंकड़े राज्य सरकार ने विधानसभा में किशनपोल विधायक अमीन कागजी के सवाल के जवाब में प्रस्तुत किए थे।

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नागौर में सबसे ज्यादा मामले

कुल 1,357 मामलों में से 682 मामलों में पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की है, 391 मामलों में अंतिम रिपोर्ट (एफआर) दी गई, जबकि 284 मामलों में अभी जांच जारी है। इस दौरान पुलिस ने 929 आरोपियों को गिरफ्तार किया। जिलावार आंकड़ों पर नजर डालें तो नागौर में सबसे ज्यादा 100 मामले दर्ज हुए हैं। इसके बाद सीकर में 68, जालोर में 63, जयपुर दक्षिण में 62 और भरतपुर में 62 मामले सामने आए।

अब हर जिले में साइबर पुलिस तैनात

वहीं, सबसे कम मामले कोटा ग्रामीण में केवल दो दर्ज हुए, जबकि डूंगरपुर में दो साल की अवधि में सिर्फ तीन मामले सामने आए। सरकार का कहना है कि साइबर अपराधों पर रोक लगाने के लिए गृह विभाग और पुलिस मुख्यालय की ओर से लगातार दिशा-निर्देश जारी किए जा रहे हैं।

प्रत्येक जिले में अलग साइबर पुलिस स्टेशन स्थापित किए गए हैं, जिनकी जिम्मेदारी डीएसपी स्तर के नोडल अधिकारियों को सौंपी गई है। जवाब में यह भी बताया गया कि स्टाफ, बजट और कार्यप्रणाली से जुड़ी जानकारी अलग से उपलब्ध कराई गई है। इन आंकड़ों पर विधायक अमीन कागजी ने कहा था कि यह बड़ी विफलता को दर्शाता है। केवल मामले दर्ज कर लेना पर्याप्त नहीं है। जब 1,357 मामलों में से सिर्फ चार में सजा हुई है, तो यह जांच और अभियोजन प्रक्रिया की गंभीर असफलता है।

फोरेंसिक देरी से कमजोर पड़ते हैं केस

डीआईजी साइबर क्राइम विकास शर्मा ने कहा कि सजा की दर बढ़ाने के लिए पुलिस लगातार प्रयास कर रही है। कानूनी और साइबर विशेषज्ञों का मानना है कि तेज सुनवाई, डिजिटल साक्ष्यों का बेहतर प्रबंधन और पुलिस व अभियोजन के बीच जवाबदेही तय किए बिना साइबर अपराधों पर प्रभावी नियंत्रण संभव नहीं है।

साइबर अपराध विशेषज्ञ मुकेश चौधरी ने बताया कि सजा कम होने की मुख्य वजह डिजिटल सबूतों की कमजोर सुरक्षा, फोरेंसिक जांच में देरी और विशेष साइबर प्रशिक्षण की कमी है। उन्होंने कहा कि जब डिवाइस सही तरीके से जब्त नहीं किए जाते, तो मेटाडेटा और आईपी एड्रेस जैसे अहम सबूत नष्ट हो जाते हैं।

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ऐसे में आरोपी और उसकी ऑनलाइन गतिविधियों के बीच तकनीकी कड़ी साबित नहीं हो पाती, जिससे मामले कमजोर पड़ जाते हैं। तेज साइबर जांच, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स के साथ रियल-टाइम समन्वय और अलग साइबर अभियोजकों की व्यवस्था के बिना केवल गिरफ्तारियां सजा में नहीं बदल पाएंगी।

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