किडनी ट्रांसप्लांट मामले में जेल में बंद बांग्लादेशी नागरिकों की जमानत याचिका पर सुनवाई में देरी होने पर राजस्थान हाईकोर्ट ने नाराजगी जाहिर की है। कोर्ट ने कहा कि 'विदेशी नागरिकों को भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।'
जयपुर। हाईकोर्ट ने किडनी ट्रांसप्लांट केस में गिरफ्तार बांग्लादेशी नागरिकों के मामले में कहा कि संविधान में भारतीय ही नहीं, विदेशी नागरिकों को भी त्वरित ट्रायल की गारंटी प्राप्त है। किसी व्यक्ति को बिना कानूनी प्रक्रिया उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने सुनवाई में देरी पर नाराजगी जताते हुए कहा कि ऐसे मामलों की सुनवाई में तेजी आनी चाहिए।
हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट चार सप्ताह में चार्ज बहस पर सुनवाई की तारीख तय करे। वहीं स्पष्ट किया कि सरकारी गवाह को बयान दर्ज हुए बिना जमानत पर रिहा नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को बयान दर्ज होने के बाद जमानत के लिए पुन: प्रार्थना पत्र पेश करने की छूट दी है।
न्यायाधीश अनूप कुमार ढंड ने बांग्लादेश निवासी नुरूल इस्लाम व एम. डी. अहसानुल कोबिर की जमानत याचिका को निस्तारित करते हुए यह आदेश दिया। याचिका में कहा कि पुलिस ने जयपुर के जवाहर नगर थाने में पिछले साल मानव अंग तस्करी और किडनी प्रत्यारोपण को लेकर मामला दर्ज कर याचिकाकर्ताओं सहित अन्य आरोपियों को 23 अप्रैल 2024 को गिरफ्तार किया।
आरोप पत्र पेश होने के बाद अन्य आरोपियों को जमानत मिल गई, लेकिन याचिकाकर्ताओं को सरकारी गवाह होने के कारण जमानत नहीं मिल पा रही। आरोप तय नहीं होने के कारण यह समस्या आ रही है। याचिका में जमानत पर रिहा करने का आग्रह किया गया।
दूसरी तरफ, अतिरिक्त महाधिवक्ता राजेश चौधरी ने जमानत का विरोध करते हुए कहा कि मानव अंग तस्करी और किडनी प्रत्यारोपण गिरोह का खुलासा कर आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। बांग्लादेशी फर्जी दस्तावेजों के आधार पर यहां रक्त संबंधी और रिश्तेदार नहीं होने के बावजूद किडनी प्रत्यारोपण करा रहे थे। सरकारी गवाह बने आरोपी को बयान दर्ज होने या ट्रायल पूरी होने तक जमानत नहीं दी जा सकती। आरोपियों को जमानत मिलने पर वे पक्षद्रोही हो सकते हैं और फरार होने की आशंका रहेगी।