Jaipur Diwali 2025: सिंदूरी शाम के आगाज के साथ ही दीयों और आधुनिक लाइट्स की झिलमिलाहट जयपुर को कैनवास में बदल देती है। जहां हर रोशनी एक कहानी कहती है और हर दीपक उम्मीद जगाता है।
जयपुर। सिंदूरी शाम के आगाज के साथ ही दीयों और आधुनिक लाइट्स की झिलमिलाहट जयपुर को कैनवास में बदल देती है। जहां हर रोशनी एक कहानी कहती है और हर दीपक उम्मीद जगाता है। दीपावली पर पिंकसिटी का परकोटा फिर से जीवंत हो उठता है। हैरिटेज की दीवारों से लेकर ऊंची-ऊंची इमारतों तक जब झालरें रोशनी बिखेरती हैं। पांच दिवसीय दीपोत्सव के दौरान जौहरी बाजार, बड़ी चौपड़, छोटी चौपड़, त्रिपोलिया बाजार, किशनपोल और चांदपोल बाजार में होने वाली आकर्षक सजावट न केवल परंपरा का प्रतीक है, बल्कि शहर की पहचान भी बन चुकी है।
18वीं शताब्दी में सवाई जयसिंह द्वितीय ने इसकी शुरुआत की। तब गोविंददेवजी मंदिर, सिटी पैलेस, शहर के बाजार व पार्क घी के दीपकों से जगमग होते थे। जयपुर फाउंडेशन संस्थापक अध्यक्ष सियाशरण लश्करी ने बताया कि शहर में साल 1949 तक घी के दीपकों से रोशनी होती रही, इसके बाद बाजारों में लाइटिंग शुरू हो गई। करीब 4 दशक से बाजारों में सामूहिक सजावट हो रही है, जिसे देखने देश-दुनिया से सैलानी आते हैं। त्रिपोलिया बाजार, जौहरी बाजार, किशनपोल, चौड़ा रास्ता, सिरहड्योढ़ी, छोटी-बड़ी चौपड़ पर घी के दीपकों से रोशनी की जाती थी। यह रोशनी भैया दूज तक तीन दिन होती थी। तब जयपुर की दिवाली देखने तत्कालीन राजा-महाराजा और ब्रिटिश शासक भी आते थे।
वक्त के साथ दीपावली सजावट ने आधुनिकता का रंग ओढ़ लिया है। अब हर बाजार अलग थीम के लिए मशहूर है। सामूहिक सजावट में हैरिटेज, स्वदेशी, तिरंगा सहित अलग-अलग थीम दी जा रही है। छोटी चौपड़ पर हवामहल, गजनेर पैलेस, यूजियम, पुष्प विमान, मेट्रो, लाइव ट्रेन, मैसूर पैलेस, राम दरबार, टाइटैनिक जहाज और डिज्नी लैंड जैसे आकर्षक स्वागत द्वार बन चुके हैं। जौहरी बाजार व्यापार मंडल महामंत्री कैलाश मित्तल ने बताया कि सबसे पहले परकोटे के बाजारों में सामूहिक सजावट शुरू हुई, जो 45 साल से होती आई है। जयपुर व्यापार महासंघ अध्यक्ष सुभाष गोयल ने बताया कि 24 साल से लगातार छोटी चौपड़ पर सामूहिक लक्ष्मी पूजन हो रही है।
पर्यटन विभाग के अनुसार दीपावली पर सप्ताह में औसतन रोजाना दो से ढाई लाख लोग परकोटे की रोशनी देखने आते हैं। खास तौर पर फ्रांस, जापान और अमरीका से आने वाले सैलानी दीवाली इन पिंकसिटी का अनुभव अपने कैमरों में कैद करते हैं। पुराने समय के दीयों और रंगोली की जगह अब लेजर लाइट, रंगीन बल्ब और 3डी इल्युमिनेशन ने ले ली है।
दिवाली के दूसरे दिन परकोटे में मार्गपाली का जुलूस निकलता था। यह जुलूस सिटी पैलेस से शुरू हो त्रिपोलिया बाजार होते हुए बड़ी चौपड़ पहुंचता। इसके बाद सिटी पैलेस आता था। जुलूस में महिमरतब निशान और हाथी के इन्द्र विमान शामिल होते थे। मिर्जा राजा जयसिंह को मुगल बादशाह जहांगीर ने सबसे पहले महिमरतब निशान दिया था। मार्गपाली जुलूस देखने त्रिपोलिया गेट के सामने बरामदे पर बैठक व्यवस्था की जाती थी, जहां वीआइपी लोगों को बैठने की अनुमति होती थी।