जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (JLF) 2025 में मशहूर फिल्म निर्देशक इम्तियाज अली ने शिरकत की।
Jaipur Literature Festival 2025: जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (JLF) 2025 में सोमवार को मशहूर फिल्म निर्देशक इम्तियाज अली ने शिरकत की और अपनी फिल्मों, सिनेमा के बदलते स्वरूप और अपने जीवन के अनुभवों पर खुलकर बात की। सेशन के दौरान उन्होंने अपनी फिल्म निर्माण की प्रक्रिया, बचपन के संघर्ष और सिनेमा के बदलते स्वरूप पर अपने विचार साझा किए।
सेशन की शुरुआत में जब लोगों ने उन्हें "इम्तियाज जी" कहा तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि मुझे बस इम्तियाज कहो। 'इम्तियाज जी' सुनकर ऐसा लगता है कि यह किसी और का नाम है। अगर किसी फिल्म मेकर की आलोचना होती है या उस पर पत्थर फेंके जाते हैं, तो वह उसी के नाम पर होना चाहिए।
इम्तियाज अली ने अपनी स्कूली शिक्षा के दिनों को याद करते हुए बताया कि 9वीं कक्षा में फेल होना उनकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट था। उन्होंने कहा कि इस असफलता ने मुझे सिखाया कि ज़िंदगी में ठोकरें खाकर ही आगे बढ़ा जाता है। इसी के चलते मैं अपने सपनों को पूरा करने की हिम्मत जुटा पाया।
उन्होंने अपने बचपन की यादें ताज़ा करते हुए कहा कि उनके घर के पास एक थिएटर था। कई बार थिएटर का दरवाजा आधा खुला रहता था, जिससे मैं स्क्रीन का सिर्फ़ एक हिस्सा देख पाता था। कभी अमिताभ बच्चन की नाक दिखती थी, तो कभी रेखा के कान। जब मैंने फिल्म निर्देशन शुरू किया, तो यह अनुभव भी मेरे काम आया।
इम्तियाज अली ने बताया कि उनका जयपुर से पुराना जुड़ाव है। मेरे थिएटर के पास 'जयपुर हेयर कटिंग सैलून' था, जहां लोग मिथुन की तरह बाल कटवाते थे। मैं उन्हें देखता था और इस तरह जयपुर से मेरा कनेक्शन बना।
सिनेमा और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को लेकर उन्होंने कहा कि आज का सिनेमा दर्शकों की पसंद के हिसाब से बन रहा है। यह डेमोक्रेसी है, जैसी फिल्में लोग देखेंगे, वैसी ही फिल्में बनेंगी। वहीं, बायोपिक बनाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि अभी बायोपिक बनाने में इंटरेस्टेड नहीं हूं, लेकिन अगर कभी बनाया तो अमीर खुसरो पर बनाऊंगा।
इम्तियाज अली से जब पूछा गया कि क्या वे ‘जब वी मेट’ का सीक्वल बनाएंगे, तो उन्होंने साफ़ कहा कि मैं फिल्मों के सीक्वल बनाने में विश्वास नहीं करता। लेकिन अगर कोई ऐसी कहानी आई, जिसे दर्शक भी देखना चाहें, तो इस पर जरूर सोचूंगा।
इम्तियाज अली ने कहा कि सिनेमा हर हिंदुस्तानी के जीवन का हिस्सा है। मैं लकी हूं कि मैंने वो दौर देखा जब सिनेमा हॉल का माहौल अलग ही होता था। लोग फिल्मों को लेकर बेहद एक्साइटेड होते थे। उन्होंने बताया कि उनके कुछ रिश्तेदारों के सिनेमा हॉल थे, जहां वे जाया करते थे। मुझे देखना अच्छा लगता था कि फिल्म चलाने के लिए रील्स कैसे लोड होती हैं और वे कैसे चलती हैं। शायद वहीं से फिल्मों के प्रति मेरा लगाव बढ़ता चला गया।
अपनी सफलता के बारे में बात करते हुए इम्तियाज अली ने कहा कि अगर व्यक्ति सच्चाई से काम करता है, तो उसे सफलता जरूर मिलती है। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल 2025 में इम्तियाज अली ने न केवल अपने फिल्मी सफर के अनुभव साझा किए, बल्कि यह भी बताया कि सिनेमा सिर्फ एक माध्यम नहीं, बल्कि एक कला है जो समय के साथ बदलती रहती है।