राजस्थान हाईकोर्ट ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर एक नाबालिग बालक की कस्टडी उसके दादा को सौंपने के निर्देश दिए हैं।
जोधपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर एक नाबालिग बालक की कस्टडी उसके दादा को सौंपने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने कहा कि नाबालिग की भलाई और भविष्य की दृष्टि से उसका हित सर्वोपरि है और अभिभावकत्व का निर्धारण तकनीकी आधार पर नहीं, बल्कि बच्चे के कल्याण को देखते हुए होना चाहिए।
न्यायाधीश मनोज कुमार गर्ग और न्यायाधीश रवि चिरानिया की खंडपीठ ने यह भी टिप्पणी की कि दादा बालक के भले और सुरक्षा के लिए पूरी तरह सक्षम हैं, इसलिए बच्चे को उनकी देखरेख में रहना चाहिए।
आदेश में यह भी कहा गया कि दादा बालक की शिक्षा, चिकित्सा और संपूर्ण परवरिश की जिम्मेदारी निभाएंगे और इसके लिए पंद्रह लाख रुपए की स्थायी जमा राशि बालक के नाम से कराई जाएगी, जो उसके वयस्क होने तक सुरक्षित रहेगी।
खंडपीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि पिता, जो विदेश में कार्यरत हैं, बालक को अठारह वर्ष की आयु तक भारत से बाहर नहीं ले जाएंगे और यदि कभी विदेश यात्रा आवश्यक हो तो दादा उसके साथ जाएंगे और उसकी सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करेंगे।
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