जयपुर

राजस्थान: डिजिटल पढ़ाई पर भारी अफसरों का ‘खेल’, 359 करोड़ का काम कठघरे में, 3 हजार से अधिक लैब होनी है तैयार

राजस्थान के सरकारी स्कूलों में 3,213 आईसीटी लैब के लिए 359 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट पर सवाल खड़े हो गए हैं। तकनीकी बिड में शामिल सभी कंपनियों के दस्तावेजों में खामियां होने के बावजूद बिड निरस्त नहीं की गई।

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Dec 25, 2025
राजस्थान में डिजिटल पढ़ाई (पत्रिका फाइल फोटो)

जयपुर: बच्चों की तकनीकी दक्षता बढ़ाने और डिजिटल शिक्षा से जोड़ने के लिए प्रदेश के सरकारी स्कूलों में 3,213 आईसीटी लैब तैयार की जानी है। इस पर 359 करोड़ रुपए खर्च होंगे। शिक्षा विभाग में इस प्रोजेक्ट में पारदर्शिता की बजाय अफसरों की जिद और कमीशन का बड़ा खेल चलने की आशंका है।

विभाग ने टेंडर निकाला, जिसमें चार कंपनियां शामिल हुईं। तकनीकी बिड खुली तो सभी कंपनियों के दस्तावेजों में बड़ी खामियां निकलीं। इसके बावजूद अफसर तकनीकी बिड को निरस्त करने के बजाय फाइनेंशियल बिड खोलने की तैयारी कर रहे हैं।

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नियम-कायदों को ताक पर रखकर चहेती कंपनियों को उपकृत करने में जुटे उच्चाधिकारियों ने शिक्षा मंत्री के निर्देशों को भी दरकिनार कर दिया है। पहले भी तीन बार टेंडर हो चुके हैं, लेकिन मामला 'जम' नहीं पाया। किसी न किसी कारण से निरस्त करना पड़ा। इसमें अफसरों की मिलीभगत और गड़बड़ी से जुड़े दस्तावेज मुख्यमंत्री कार्यालय से लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंचे हैं।

दस्तावेजों में खामियों का पुलिंदा

एक्सट्रामार्कस एजुकेशन इंडिया- बैंक गारंटी 25 हजार रुपए के स्टांप पेपर पर होनी थी, लेकिन केवल 150 रुपए के स्टांप पर दी गई। कंपनी का कार्य अनुभव भी शर्तों के अनुरूप नहीं है। आईएफपीडी में दिखाया गया अनुभव, सबमिट किए गए कार्य पूर्णता प्रमाण-पत्र की तारीख से मेल नहीं खाता। इन गंभीर खामियों को नजरअंदाज किया जा रहा है।

हेलो मोबाइल्स- डेस्कटॉप मॉडल तकनीकी शर्तों के अनुसार नहीं है। एक ही आइटम के लिए दो कंपनियों के ऑथोराइजेशन सर्टिफिकेट लगाए गए, जो आरटीटीपी नियमों का उल्लंघन है।

हैरानी की बात यह है कि मौजूदा टेंडर की यह कंपनी और पुराने टेंडर की 'अनबॉक्स गैजेट्स' का स्थायी रजिस्टर्ड पता एक ही है, जिससे नाम बदलकर दोबारा टेंडर में आने का संदेह गहराया है। कई उपकरणों का कार्य अनुभव को-ऑपरेटिव बैंक का दिखाया गया है, जो अमान्य है।

केंद्रीय भंडार- पावर ऑफ अटॉर्नी और बोर्ड ऑफ रेजोल्यूशन के दस्तावेज नहीं लगाए गए। एसर थिन क्लाइंट में दिखाया गया कार्य अनुभव तय 1000 लोकेशन की शर्त से कम है। डेस्कटॉप के लिए भी दो कंपनियों के ऑथोराइजेशन सर्टिफिकेट लगाए गए, जबकि नियमों के अनुसार एक आइटम पर एक ही ऑथोराइजेशन मान्य है। यहां भी सरकारी संस्थान की बजाय को-ऑपरेटिव बैंक का अनुभव दर्शाया गया है।

एमआरआरसी इलेक्ट्रॉनिक्स- निविदा दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर तक नहीं हैं। मैन्युफैक्चरर ऑथोराइजेशन फॉर्म में जोड़ी गई शर्तों को भी अनदेखा कर दिया गया। एसर थिन क्लाइंट में 1000 लोकेशन की अनिवार्य शर्त पूरी नहीं होती। आईएफपीडी प्रोडक्ट में दिखाया गया कार्य अनुभव भी कार्य पूर्णता प्रमाण-पत्र की तारीख से मेल नहीं खाता।

जवाब मांगते सवाल

-तकनीकी खामियों के बावजूद बिड निरस्त क्यों नहीं कर रहे?
-आरटीटीपी उल्लंघन पर जिम्मेदार अफसरों पर कार्रवाई कब?
-मंत्री के निर्देशों की अनदेखी कर फाइनेंशियल बिड खोलने की जल्दबाजी क्यों?
-सीएमओ-पीएमओ तक मामला पहुंचने के बाद भी विस्तृत जांच क्यों नहीं?

चौथी बार टेंडर, फिर वही कहानी

यह टेंडर चौथी बार जारी किया गया है और हर बार तकनीकी खामियों के कारण सवाल उठते रहे हैं। इसके बावजूद जिम्मेदार अफसरों ने न तो पिछली गलतियों से सबक लिया और न ही पारदर्शिता दिखाई। विशेषज्ञों का कहना है कि इतने बड़े प्रोजेक्ट में तकनीकी शर्तों से समझौता छात्रों और सरकारी संसाधनों, दोनों के लिए नुकसानदेय होगा।

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Updated on:
25 Dec 2025 01:04 pm
Published on:
25 Dec 2025 01:03 pm
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