जयपुर

Rajasthan By-Election: राजस्थान की सात सीटों पर कांग्रेस ने किसे और क्यों दिया टिकट? पढ़ें इनसाइड स्टोरी

Rajasthan Bypoll 2024: टिकट वितरण के जरिए कांग्रेस ने परंपरागत वोट बैंक को साधने का प्रयास किया है। जानिए किसे कौनसी सीट से दिया टिकट?

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Oct 24, 2024

जयपुर। राजस्थान में 7 सीटों पर हो रहे विधानसभा उप चुनाव के लिए कांग्रेस ने देर रात प्रत्याशियों की घोषणा कर दी। सभी उम्मीदवार पहली बार चुनाव मैदान में उतरेंगे। रामगढ़ और झुंझुनू में परिवारवाद पर दांव खेला है। रामगढ़ से पूर्व विधायक जुबेर खान के पुत्र आर्यन जुबेर और झुंझुनूं से ब्रजेंद्र ओला के पुत्र अमित ओला को टिकट दिया है। दौसा सामान्य सीट पर दीन दयाल बैरवा को टिकट दिया गया है। जिनका मुकाबला भाजपा के जगमोहन मीणा से होगा।

देवली उनियारा में कस्तूर चंद (केसी) मीना, चौरासी में महेश रोत को टिकट दिया गया है, तो वहीं सलूम्बर में रेशमा मीना को टिकट दिया है। रेशमा अभी प्रधान भी हैं। इसके अलावा खींवसर सीट पर रतन चौधरी को टिकट दिया गया है। रतन पूर्व आईपीएस सवाई सिंह की पत्नी है।

परंपरागत वोट बैंक को साधने का प्रयास

टिकट वितरण के जरिए कांग्रेस ने परंपरागत वोट बैंक को साधने का प्रयास किया है। देवली उनियारा सलूम्बर और चौरासी में एसटी वर्ग, झुंझुनू और खींवसर में जाट, रामगढ़ में अल्पसंख्यक और दौसा में एससी वर्ग को प्रतिनिधित्व दिया गया है।

कांग्रेस ने चुनावी रण में उतारे ये सात प्रत्याशी

1. देवली उनियारा: कांग्रेस ने देवली-उनियारा सीट पर प्रत्याशी के रूप में कस्तूर चंद मीना की घोषणा की है। इससे पहले वे हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड में अधिकारी पद पर थे। वे पहली बार विधायक प्रत्याशी बनाए गए हैं। जबकि उनके सामने राजेन्द्र गुर्जर भाजपा प्रत्याशी पहले ही घोषित हो चुके हैं। राजेन्द्र गुर्जर देवली-उनियारा सीट पर 2013 से 2018 तक विधायक थे। इसके बाद 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हरीश मीना से हार गए थे। गत विधानसभा चुनाव में भाजपा ने राजेन्द्र को टिकट नहीं दिया था और विजय बैंसला को प्रत्याशी बनाया था। लेकिन हरीश मीना ने बैंसला को भी हरा दिया था। गत लोकसभा चुनाव में हरीश मीना जीतकर सांसद बन गए। ऐसे में देवली-उनियारा सीट रिक्त हो गई थी। इसके बाद अब उपचुनाव हो रहे हैं।

2. दौसा: दीनदयाल बैरवा दौसा के पूर्व प्रधान रह चुके हैं। वर्तमान में उनकी पत्नी बीना बैरवा लवाण की प्रधान हैं। दीनदयाल के पिता किशनलाल बैरवा 1980 और 1983 में दौसा विधानसभा चुनाव कांग्रेस से लड़कर हार झेल चुके हैं। दीनदयाल पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे। सचिन पायलट और मुरारीलाल मीना के नजदीकी हैं।

3. खींवसर: डाॅ. रतन चौधरी सेवानिवृत्त डीआईजी सवाईसिंह चौधरी की पत्नी है। सवाईसिंह ने 2018 के विधानसभा चुनाव में खींवसर से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था, लेकिन हनुमान बेनीवाल के सामने हार गए थे। रतन चौधरी ने 2013 के चुनाव में भाजपा से टिकट मांगा था, लेकिन मिला नहीं। सवाई सिंह नागौर के सिणोद गांव के रहने वाले हैं।

4. झुंझुनूं: कांग्रेस ने झुंझुनूं से अमित ओला को प्रत्याशी बनाया है। उनके दादा शीशराम ओला पांच बार सांसद व आठ बार विधायक रह चुके हैं। पिता बृजेन्द्र ओला झुंझुनूं से लगातार चार बार विधायक व दो बार मंत्री रह चुके। अब बृजेन्द्र ओला के सांसद बनने से यह सीट खाली हुई है। विधानसभा चुनाव के लिए ओला परिवार की तीसरी पीढ़ी मैदान में है। अडतालीस वर्ष के अमित ओला ने इलैक्ट्रॉनिक्स में इंजीनियिरिंग कर रखी है। वर्तमान में चिड़ावा पंचायत समिति के सदस्य हैं। उनका मुकाबला अब भाजपा के राजेन्द्र भाम्बू से होगा। भाम्बू पहले अमित के पिता से दो बार चुनाव हार चुके।

5. रामगढ़: दिवंगत विधायक जुबेर खान के छोटे पुत्र है आर्यन जुबेर खान। अपनी मां साफिया जुबेर खान के साथ क्षेत्र में सक्रिय रहे हैं। बीते 4 दशक से रामगढ़ की कांग्रेस की राजनीति में इस परिवार का दबदबा है। साल 1990 में खुद जुबेर खान रामगढ़ में कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर आए थे।

6. चौरासी: चौरासी सीट से महेश रोत को युवा चेहरे के तौर पर मौका दिया गया है। महेश रोत छात्र नेता रहे हैं, पहले NSUI और फिर यूथ कांग्रेस में रहे। महेश रोत सांसरपुर पंचायत से सरपंच हैं। 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने ताराचंद भगोरा को प्रत्याशी बनाया था। लेकिन, वे हार गए थे। इस बार भी भगोरा परिवार से टिकट मांग रहे थे। लेकिन, कांग्रेस ने भगोरा परिवार का टिकट काटकर नए युवा चेहरे पर भरोसा जताया है।

7. सलूंबर: सलूंबर से 2018 में बागी होकर चुनाव लड़ी रेशमा मीणा को इस बार उम्मीदवार बनाया है, वे प्रधान भी रह चुकी हैं। रेशमा मीणा को सलूंबर विधानसभा से विधायक का टिकट नहीं मिलने पर कांग्रेस के बागी के रूप में निर्दलीय विधानसभा चुनाव लड़ा, जिसमें उनकी हार हुई थी। वो 2005 से 2010 तक महिला आरक्षित पद से प्रधान और 2010 से 2015 तक सामान्य सीट से प्रधान रही।

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