हादसे रोकने के लिए नए आपराधिक कानूनों में लापरवाही से वाहन चलाने पर पांच साल और सूचना नहीं देने पर 10 साल तक सजा का प्रावधान किया गया, लेकिन ट्रक चालकों के विरोध के बाद लागू नहीं हो पाया। नतीजा, सड़क हादसों में मौतों का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है।
जयपुर: केंद्र सरकार ने पिछले साल अपराधों में कमी लाने के लिए अंग्रेजी शासन के कानूनों को बदलकर तीन नए आपराधिक कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और साक्ष्य अधिनियम लागू किए। भारतीय न्याय संहिता में पहली बार हादसों में कमी लाने के लिए अलग से प्रावधान कर लापरवाही से वाहन चलाने वालों के लिए पांच साल तक सजा का प्रावधान किया।
इन हादसों में लोगों की जान बचाने के मकसद से यह भी प्रावधान किया कि दुर्घटना की सूचना नहीं देने वालों को 10 साल तक सजा हो सकती है। लेकिन, केंद्र सरकार ने ट्रक चालकों के आंदोलन के बाद इस प्रावधान को लागू करना टाल दिया। इससे जान बचाने के लिए किया गया प्रावधान कागजी बना हुआ है।
इसका परिणाम है कि साल दर साल हादसों की संख्या बढ़ने के साथ ही मौत का आंकड़ा भी बढ़ रहा है। जहां तक प्रदेश में सड़क हादसों में मौत का औसत देखा जाए तो हर दूसरा हादसा हम से किसी अपने को छीन रहा है। आधे से अधिक मामलों में सामने आया कि दूसरे वाहनों से आगे निकलने की जल्दबाजी ने जानें ली। उधर, पिछले 2 साल के सितंबर तक के आंकड़े बता रहे हैं कि इस साल सड़क हादसों में तो कमी आई, लेकिन मौत का आंकड़ा बढ़ना चिंता में डालने वाला है।
प्रदेश में सड़क हादसे और उनमें मौत का आंकड़ा कम करने के लिए घोषणाएं तो बढ़ रही हैं, लेकिन आंकड़ा कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है। सरकार ने इस दिशा में प्रभावी प्रयास के लिए सड़क सुरक्षा कोष भी बना रखा है, जिसके प्रबंधन और संचालन का जिम्मा परिवहन विभाग के सचिव या उससे ऊपर के अधिकारी के पास होता है। इतना ही नहीं उसके लिए आइएएस-आइपीएस सहित अन्य अधिकारियों की उच्च स्तरीय कमेटी भी बना रखी है, लेकिन जान बचाने के लिए सरकार के ये प्रयास भी काम नहीं आ रहे।
-लापरवाही से वाहन चलाने के कारण 9,571 हादसे हुए, जिनमें 4,357 लोगों की मौत हुई
-ओवरस्पीड के चलते 13,623 हादसे हुए, जिनमें 6,655 लोगों की मौत हुई
-नशे में ड्राइविंग करने के चलते 171 हादसे और 91 लोगों की मौत हुई