Save Aravalli : कांग्रेस के दिग्गज नेता अशोक गहलोत Save Aravalli अभियान का हिस्सा बन गए हैं। अरावली की नई परिभाषा के विरोध में अशोक गहलोत अपनी प्रोफाइल पिक्चर (DP) बदल कर अभियान का हिस्सा बने। जानें उन्होंने क्या कहा?
Save Aravalli : कांग्रेस के दिग्गज नेता अशोक गहलोत ने Save Aravalli अभियान का हिस्सा बन गए हैं। अशोक गहलोत ने सोशल अकांउट X पर लिखा कि आज मैं अपनी प्रोफाइल पिक्चर (DP) बदलकर Save Aravalli अभियान का हिस्सा बन रहा हूं। यह सिर्फ एक फोटो नहीं, एक विरोध है उस नई परिभाषा के खिलाफ जिसके तहत 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को 'अरावली' मानने से इंकार किया जा रहा है। मेरा आपसे अनुरोध है कि अपनी प्रोफाइल पिक्चर बदलकर इस अभियान से जुड़ें।
अशोक गहलोत ने आगे लिखा कि अरावली के संरक्षण को लेकर आए इन बदलावों ने उत्तर भारत के भविष्य पर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। यह निर्णय हमारे अस्तित्व के लिए खतरनाक है क्योंकि:
अरावली कोई मामूली पहाड़ नहीं, बल्कि कुदरत की बनाई 'ग्रीन वॉल' (Green Wall) है। यह थार रेगिस्तान की रेत और गर्म हवाओं (लू) को दिल्ली, हरियाणा और यूपी के उपजाऊ मैदानों की ओर बढ़ने से रोकती है। अगर छोटी पहाड़ियां (Gaping Areas) खनन के लिए खुल गईं, तो रेगिस्तान हमारे दरवाज़े तक आ जाएगा और गर्म हवाएं तापमान को बढ़ा देंगी।
ये पहाड़ियाँ और यहाँ के जंगल NCR और आसपास के शहरों के 'फेफड़ों' (Lungs) की तरह काम करते हैं। ये धूल भरी आंधियों (Dust Storms) को रोकते हैं और जानलेवा प्रदूषण को कम करने में सबसे बड़ी भूमिका निभाते हैं। दिल्ली और आसपास के इलाके में अरावली के बावजूद इतनी गंभीर स्थिति है तो अरावली के बिना कैसी स्थिति होगी, उसकी कल्पना करना भी वीभत्स है।
अरावली हमारे लिए पानी का मुख्य रिचार्ज ज़ोन है। अरावली की चट्टानें बारिश के पानी को ज़मीन के भीतर भेजकर भूजल रिचार्ज करती हैं। अगर पहाड़ खत्म हुए, तो भविष्य में पीने के पानी की गंभीर कमी का सामना करना पड़ेगा,जिससे वन्यजीव लुप्त होने की कगार पर आ जाएंगे तथा इकोलॉजी को खतरा होगा।
अशोक गहलोत ने लिखा कि वैज्ञानिक सच यह है कि अरावली एक निरंतर शृंखला (Continuous Chain) है। इसकी छोटी पहाड़ियाँ भी उतनी ही अहम हैं जितनी बड़ी चोटियां। अगर दीवार में एक भी ईंट कम हुई, तो सुरक्षा टूट जाएगी।
अशोक गहलोत की अपील की कि हम केंद्र सरकार और माननीय सुप्रीम कोर्ट से विनम्र निवेदन करते हैं कि भावी पीढ़ियों के सुरक्षित भविष्य के लिए इस परिभाषा पर पुनर्विचार (Reconsider) करें। अरावली को 'फीते' या 'ऊंचाई' से नहीं, बल्कि इसके 'पर्यावरणीय योगदान' (Ecological Impact) से आंका जाए।
अरावली को राजस्थान की लाइफ लाइन कहा जाता है। पर यह लाइफ लाइन अब खतरे में है। पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट के बाद राजस्थान के लिए यह चिंता का विषय है। सुप्रीम कोर्ट ने नीलगिरी पर्वत को लेकर दिए अपने निर्णय में माना है कि अरावली पर्वत का क्षेत्र अब सिकुड़ता जा रहा है। अरावली का लगभग 90 फीसदी हिस्सा 100 मीटर से भी कम की ऊंचाई का रह गया है। ऐसी स्थिति में 100 मीटर से नीचे के भूभाग को अब अरावली को पहाड़ी नहीं माना जाएगा।