बारिश के मौसम में सांप अक्सर दिखते है। इस मौसम में कई लोग सांप देखकर घबरा जाते है या उन्हें मारने लगते हैं, लेकिन जिस व्यक्ति की कहानी हम बता रहे है वो सांपों का दोस्त है। इसी वजह से उन्हें ‘स्नेकमैन’ के नाम से जाना जाता है।
World Snake Day 2025: आज 16 जुलाई को वर्ल्ड स्नेक डे (World Snake Day) मनाया जाता है। धरती इंसानों के साथ-साथ अन्य लाखों जीव-जंतुओं का भी घर है। सांप भी इसी में से एक है, जो सरीसृप श्रेणी के जीव में गिना जाता है। 'सरीसृप' का मतलब है, ऐसा जीव जो रेंगकर चलता हो।
सांप को लेकर लोगों के मन में डर होता है। सांपों को देखकर लोग अक्सर घबरा जाते हैं, लेकिन हर कोई ऐसा नहीं करता। कुछ लोग सांपों के दोस्त भी होते है। वर्ल्ड स्नेक डे के मौके पर आइए जानिए छत्तीसगढ़ में पाई जाने वाली सांपों की प्रजातियां और स्नैक मैन की कहानी।
'वर्ल्ड स्नेक डे' की शुरुआत साल 1970 से हुई. 1967 में टेक्सास में सांपों के लिए एक फर्म की शुरुआत हुई थी, जो धीरे-धीरे करके 1970 में काफी मशहूर हो गया। इस फर्म ने लोगों को सांपों के प्रति जागरूक करने का काम किया और 16 जुलाई को विशेष आयोजन किए जाते थे। बाद में अन्य एनजीओ ने भी लोगों के बीच सांपों को लेकर विशेष जागरूकता फैलानी शुरू कर दी। इस तरह सांपों के लिए एक दिन समर्पित किया गया।
सांप प्रकृति में खाद्य श्रृंखला का अहम हिस्सा हैं। ये चूहों, कीड़ों और छोटे जानवरों को खाकर उनकी आबादी को कंट्रोल करते हैं। इसके अलावा, सांप खुद भी दूसरे जानवरों का भोजन बनते हैं- जैसे शिकारी पक्षी और मांसाहारी जीव। उनकी मौजूदगी एक संतुलित और स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र की निशानी होती है।
प्रदेश के जशपुर, रायगढ़ और कोरबा जिलों में सांपों की संख्या सबसे ज्यादा है। जशपुर जिले के तपकरा ब्लॉक को सांपों की वैरायटी के चलते इसे “नागलोक” का नाम दिया गया है। साल 2018 से 2022 तक राज्य में 17 हजार से ज्यादा सांप के काटने के मामले दर्ज किए जा चुके हैं।
हमारे समाज में सांपों को लेकर अंधविश्वास और फिल्मी धारणाओं के कारण बहुत सी भ्रांतियाँ हैं—जैसे कि हर सांप बदला लेता है, या हर सांप जहरीला होता है. इन्हीं वजहों से अक्सर लोग उन्हें मारने की कोशिश करते हैं. 'वर्ल्ड स्नेक डे' का मकसद है लोगों को शिक्षित करना और डर के बजाय समझ पैदा करना.
सांप के डसने पर स्वयं को शांत रखकर दिल के धड़कन को समान्य रखें, जिससे जहर शरीर में ज्यादा नहीं फैलेगा। डसने वाले स्थान से कपड़े हटा दें नहीं तो सूजन हो सकती है। रोगी को जितनी जल्दी हो सके अस्पताल ले जाएं, तो बचने की संभावना है। खून के रुकने के बाद साबुन और गुनगुने पानी से धोएं। बच्चे, वृद्ध और रोगियों में असर ज्यादा होता है।
लोग सांप के जहर से नहीं, समय पर इलाज न मिलने और अंधविश्वास के कारण मरते हैं। अगर पीड़ित को तुरंत अस्पताल पहुंचाया जाए तो अधिकांश मौतें टाली जा सकती हैं। झाड़फूंक से कोई भी ठीक नहीं हो सकता है। अतः तांत्रिक का सहारा ना लेकर डॉक्टर के पास पहुंचने का प्रयास करें।
जांजगीर-चांपा जिले में एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें लोग "स्नेकमैन" के नाम से जानते हैं। अनुराग शुक्ला उर्फ टिंकू पिछले 16 वर्षों से न केवल लोगों की, बल्कि सांपों की भी जान बचा रहे हैं। शहर या गांव में कहीं भी सांप निकलने की सूचना मिलते ही वे तुरंत मौके पर पहुंचते हैं और बिना किसी शुल्क के सांप को सुरक्षित पकड़कर जंगल में छोड़ देते हैं।
बारिश के इस मौसम में अब तक वे 70 से 80 जहरीले सांपों को पकड़ चुके हैं, जिनमें कोबरा, करैत और गेहुंआ जैसे खतरनाक प्रजातियां शामिल हैं। वे लगातार लोगों से अपील करते हैं कि सांपों को मारें नहीं, बल्कि उन्हें सूचना दें ताकि वे सुरक्षित तरीके से उसे जंगल में छोड़ा जा सके। अनुराग शुक्ला का यह कार्य केवल शौक नहीं, बल्कि जीवों के प्रति उनका प्रेम है।
बीते दो वर्षों में उन्होंने 150 से अधिक विषैले सांपों को रेस्क्यू किया है। जांजगीर ही नहीं, आसपास के गांवों से भी उन्हें सांप पकड़ने के लिए बुलाया जाता है। सांपों के इस मित्र ने अपने जुनून को सेवा का रूप दिया है और आज वे न केवल शहर में बल्कि पूरे जिले में "स्नेकमैन" के नाम से पहचाने जाते हैं।
छत्तीसगढ़ के अनुराग अब तक 2000 से अधिक सांपों को सुरक्षित पकड़कर जंगल में छोड़ चुके हैं। घायल सांपों का इलाज कराना भी उनकी प्राथमिकता है। हाल ही में उन्होंने एक घायल अजगर का इलाज कराकर उसे जंगल में छोड़ा। ‘स्नेकमैन’ के नाम से पहचाने जाने वाले अनुराग लोगों को सांपों से बचाव के उपाय भी बताते हैं, जैसे मच्छरदानी का उपयोग व ज़मीन पर न सोना। बावजूद इसके जागरूकता की कमी बनी हुई है।
शुरुआत में लोग सांप को देखते ही मार देते थे। जब टिंकू ने समझाया कि सांप को न मारें, तो लोगों ने कहा - "इतनी दया है तो तुम ही निकाल लो।" उन्होंने हिम्मत दिखाते हुए पहली बार 4-5 ज़हरीले सांप सुरक्षित निकाले। इसके बाद लोग उन्हें बुलाने लगे। यहीं से विचार आया कि लोगों और सांपों दोनों की सुरक्षा कैसे हो? अब टिंकू पिछले 16 सालों से नि:शुल्क सेवा कर रहे हैं। पहले अकेले थे, अब आशीष कहरा, भोला राठौर, धन्नू, सोनू राठौर और अन्य साथी भी अभियान में जुड़े हैं।
अनुराग पिछले 16 वर्षों से नि:शुल्क रूप से सांप पकड़ने और राहत कार्य कर रहे हैं। वे शहर सहित आस-पास के गांवों में भी रात में एक कॉल पर तुरंत पहुंच जाते हैं। हाल ही में कलेक्टोरेट कॉलोनी में एक अहिराज सांप ने किसी को काटा, लेकिन सौभाग्यवश वह बिना ज़हर का था। अनुराग (World Snake Day 2025) अब तक तीन बार जहरीले सांप के काटने का सामना कर चुके हैं, लेकिन अपने जुनून और सेवा-भाव से पीछे नहीं हटे।