Maa Latiyal Temple: फलोदी की स्थापना विक्रम संवत 1515 में शारदीय नवरात्र की अष्टमी को हुई थी। तभी से मां लटियाल के मंदिर में प्रज्वलित अखण्ड ज्योति पीढ़ियों से लोगों की आस्था का प्रतीक बनी हुई है।
Maa Latiyal Temple: राजस्थान के फलोदी जिले के युग पुरुष सिद्धुजी कल्ला, जो जैसलमेर के राजा से नाराज होकर आसनी कोट से निकले थे, उन्हें एक दृष्टांत हुआ कि जहां मां का रथ रुकेगा, वहीं वे मां का मंदिर बनाकर नया गांव बसाएंगे। इसी संकल्प के साथ वे समर्थकों के साथ कई दिनों की यात्रा के बाद शारदीय नवरात्रि की अष्टमी को मां लटियाल का रथ खेजड़ी के नीचे रुक गया। वहीं उन्होंने नया नगर बसाया, जिसे अपनी पुत्री फलां के नाम से फलोदी कहा जाता है। पिछले 567 वर्षों से यहां कभी कोई बड़ा संकट नहीं आया। विपरीत परिस्थितियों में भी स्थानीय लोग मां लटियाल की कृपा को फलोदी की समृद्धि और सुरक्षा का कारण मानते हैं।
जानकारों के अनुसार, फलोदी की स्थापना विक्रम संवत 1515 में शारदीय नवरात्र की अष्टमी को हुई थी। तभी से मां लटियाल के मंदिर में प्रज्वलित अखण्ड ज्योति पीढ़ियों से लोगों की आस्था का प्रतीक बनी हुई है। स्थानीय मान्यता है कि मां की छत्रछाया में फलोदी हर विपदा से सुरक्षित रहा है, इसलिए नवरात्रि का पर्व यहां विशेष महत्व रखता है।
इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान के निशाने पर रहने के बावजूद फलोदी मां की कृपा से सुरक्षित रहा है। 1971 के युद्ध में पाकिस्तान की ओर से बरसाए गए गोले और हाल ही में जून माह के ऑपरेशन सिंदूर के दौरान मिसाइल हमलों के बावजूद फलोदी में कोई नुकसान नहीं हुआ। तत्कालीन जिला कलक्टर हरजीलाल अटल ने बताया कि पूरे प्रशासन को अलर्ट रखा गया था और मिसाइलें नष्ट कर दी गईं। फलोदी के लोग इसे ईश्वरीय चमत्कार मानते हैं।
बुजुर्गों का कहना है कि भारत-पाक युद्ध, भूकंप जैसी आपदाओं के बावजूद फलोदी सुरक्षित रहा। इसकी समृद्धि और सुरक्षा को मां लटियाल की कृपा का परिणाम माना जाता है। नवरात्रि के अवसर पर यहां श्रद्धा का सैलाब उमड़ता है। स्वतंत्रता पूर्व फलोदी जोधपुर रियासत का हिस्सा था। यहां के भामाशाहों ने विपदा के समय राजाओं की मदद की और टैक्स भी नहीं लिया गया। आज फलोदी राजस्थान के एक स्वतंत्र जिले के रूप में अपनी अलग पहचान बना चुका है, लेकिन इसकी आत्मा अब भी मां लटियाल के मंदिर और अखण्ड ज्योति से जुड़ी है।
फलोदी की स्थापना के समय मां लटियाल के मंदिर में प्रज्वलित अखण्ड ज्योति आज भी निरंतर जल रही है। इस ज्योति से उठने वाला धुआं कालिख जैसा नहीं, बल्कि केसरिया रंग का सुनहरा दिखाई देता है, जिसे श्रद्धालु मां का आशीर्वाद मानते हैं। फलोदी बसावट के समय मां का रथ खेजड़ी के पेड़ के पास रुका था, जो आज भी हरा-भरा है। लोग मानते हैं कि इस पेड़ में मां लटियाल का वास है। नवरात्रि के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आकर आशीर्वाद लेते हैं और सुख-शांति की कामना करते हैं।
शारदीय नवरात्रि के दौरान फलोदी के लोग मां लटियाल की छत्रछाया में संकटमुक्त रहने की आस्था के साथ अखण्ड ज्योति के दर्शन और मां के दरबार में पहुंचते हैं। यह पर्व यहां केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आस्था और सुरक्षा का प्रतीक बन चुका है।