Kanpur DSP Rishikant Shukla कानपुर में अखिलेश दुबे मामले की जांच कर रही है। एसआईटी टीम की जांच रिपोर्ट में डीएसपी ऋषिकांत शुक्ला का नाम आने के बाद निलंबित कर दिया गया है और उसके खिलाफ विजिलेंस जांच बैठाई गई है।
Akhilesh Dubey and DSP Rishikant Shukla of Kanpur कानपुर के अखिलेश दुबे मामले की जांच कर रही एसआईटी टीम की जांच रिपोर्ट में डीएसपी ऋषिकांत शुक्ला का नाम भी आया है। इसके बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया है। उनके खिलाफ विजिलेंस जांच के आदेश दिए गए हैं। एसआईटी ने 100 करोड़ रुपए से अधिक की बेनामी संपत्ति होने का दावा किया है। एसआईटी के अनुसार डीएसपी ऋषिकांत शुक्ला के नाम कुल 12 संपत्तियां हैं। जिनकी कुल कीमत 92 करोड़ बताई जाती है। तीन संपत्तियों के कागज नहीं मिले हैं। लेकिन ऋषिकांत शुक्ला के पैन कार्ड से ये संपत्तियां जुड़ी पाई गई हैं। अखिलेश दुबे से जुड़े सभी मामलों की जांच एसआईटी कर रही है।
उत्तर प्रदेश के कानपुर की एसआईटी रिपोर्ट के अनुसार ऋषिकांत शुक्ला कानपुर नगर में 1998 से 2009 के बीच 11 साल तैनात रहे। जिनकी अखिलेश दुबे और उसके गिरोह से करीबी बताई गई है। अखिलेश दुबे कानपुर का चर्चित नाम है। जिसके खिलाफ जबरन वसूली, जमीन कब्जा करने और फर्जी मुकदमे दर्ज करने का आरोप लगाया गया है
एसआईटी की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि संतोष सिंह, प्रकाश पांडे, ऋषिकांत शुक्ला और अखिलेश दुबे ने एक कंस्ट्रक्शन कंपनी बनाई है। जिसमें संदीप पांडे का भाई प्रदीप कुमार पांडे, ऋषिकांत शुक्ला की पत्नी प्रभात शुक्ला, संतोष सिंह का रिश्तेदार अशोक कुमार सिंह, अखिलेश दुबे का बेटा अखिल और उसका भतीजा सात्विक के नाम पर कंपनी है। जिसमें पुलिस अधिकारियों की काली कमाई इन्वेस्ट की गई है। दूसरे जिलों में ट्रांसफर होने के बाद भी कंस्ट्रक्शन का काम बड़े पैमाने पर चलता रहा।
ऋषिकांत शुक्ला ने अपने ऊपर लगे आरोपों को गलत बताया है। उन्होंने कहा कि 1998 से 2006 के बीच एएसआई के पद पर तैनात थे, जबकि प्रमोशन के बाद 2006 से 2009 के बीच इंस्पेक्टर रहे। इसके बाद उनका प्रमोशन डीएसपी के पद पर हुआ और उन्नाव में तैनाती मिली।
वैसे तो अखिलेश दुबे वकील के रूप में कार्य कर रहा था। लेकिन चर्चा है कि उसने कभी कोर्ट में खड़े होकर वकालत नहीं की, बहस नहीं की। जिसके घर पर ही दरबार लगता था और खुद ही फैसला सुनाता था। अपने कार्यालय में बैठकर जांच की रिपोर्ट की लिखा पड़ी कर पुलिस अफसर को देता था। इनमें बड़े-बड़े मामले भी शामिल होते थे। मुकदमा से किसका नाम हटाना है और जोड़ना है। यह अखिलेश दुबे को मिलने वाली वसूली से तय होता था।
अपने बचाव के लिए अखिलेश दुबे ने एक न्यूज़ चैनल भी लॉन्च किया। वकीलों का एक सिंडिकेट भी बनाया। इसमें पुलिस के कई बड़े अफसरों को भी शामिल किया। धीरे-धीरे पूरे कानपुर में अखिलेश दुबे का वर्चस्व बढ़ता गया स्कूल गेस्ट हाउस, शॉपिंग मॉल, और जमीन के व्यापार से बड़े-बड़े कारोबारी जुड़ते गए। स्थिति यह थी कि कानपुर विकास प्राधिकरण भी अखिलेश दुबे के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करता था।