चौदह जिलों के ऑटोमेटिक मौसम स्टेशन बंद
कटनी. अब न समय पर चेतावनी मिल रही, न बारिश, पाला, तुषार का सटीक पूर्वानुमान, खेती पूरी तरह अनुमान के सहारे चल रही है और फसल नुकसान का खतरा कई गुना बढ़ गया है, वर्षों से जारी नाऊकास्ट और एडवाइजरी व्यवस्था एक झटके में बंद कर दी गई, मौसम की हर बड़ी जानकारी अब भोपाल तक सीमित होकर देरी से पहुंच रही है, किसान पूछ रहे जब मौसम ही अनिश्चित है, तो बिना मौसम सेवा खेती कैसे चलेगी…। किसानों को समय रहते मौसम की सटीक चेतावनी जानकारी देने वाली कृषि मौसम सेवा पिछले एक साल से ठप पड़ी है। कटनी सहित प्रदेश के 14 जिलों में संचालित जिला कृषि मौसम इकाइयों पर ताला लटक गया है, जिसके कारण किसानों को बारिश, कोहरा, पाला, तुषार, हवाओं की दिशा और द्रोणिका जैसी महत्वपूर्ण जानकारियां समय पर नहीं मिल पा रही हैं। खेती आधारित जिले होने के बावजूद यह सुविधा बंद कर दिए जाने से किसान बड़ी समस्या का सामना कर रहे हैं।
कृषि मौसम सेवा के माध्यम से किसानों को पांच दिन पहले ही बदलाव का पूर्वानुमान मिल जाता था। बारिश कब होगी, पाला या तुषार का खतरा, पश्चिम विक्षोभ बनेगा या द्रोणिका गुजरेगी, कब तक बारिश नहीं आने वाली इन सबकी जानकारी स्थानीय स्तर पर उपलब्ध होती थी, जिससे किसान बीज बोने, दवा छिडक़ाव, सिंचाई, कटाई और मंडी में फसल ले जाने जैसी गतिविधियों की रणनीति तय करते थे। लेकिन इकाइयों के बंद होते ही किसान पूरी तरह भोपाल मुख्यालय पर निर्भर हो गए, जहां से समय पर सूचना मिलना मुश्किल हो गया है।
प्रदेश में 2018 से चल रहीं कृषि मौसम इकाइयां केंद्र सरकार के 2014 के फैसले के बाद खोली गई थीं। प्रदेश में कुल 130 केंद्र संचालित थे। कटनी के साथ बालाघाट, दमोह, छतरपुर, सिंगरौली, रीवा, शहडोल, खंडवा, गुना, शिवपुरी, राजगढ़ सहित 14 केंद्र अब बंद कर दिए गए हैं। बंद होने से अब किसान तापमान, नमी, वर्षा, हवा की गति, दिशा, मिट्टी का तापमान जैसे महत्वपूर्ण आंकड़े नहीं जान पा रहे।
कृषि मौसम विज्ञान केंद्र के विशेषज्ञ पांच दिन का पूर्वानुमान 12 घंटे की नाऊकास्ट किसानों के लिए एडवाइजरी तैयार करते थे। केंद्र बंद होने से यह सुविधा पूरी तरह ठप है। ग्रामीण क्षेत्रों में किसान मौसम को लेकर अनुमान के आधार पर फैसले लेने को मजबूर हैं, जिससे फसल को नुकसान का खतरा कई गुना बढ़ गया है। भारत मौसम विज्ञान विभाग, नई दिल्ली द्वारा जारी निर्देश में स्पष्ट कहा गया है जिला कृषि मौसम इकाइयों को 2023-24 के बाद बंद किया जाए। 199 इकाइयों को पूरा भुगतान कर समाप्त किया जाए। आगे कोई वित्तीय सहायता उपलब्ध नहीं कराई जाएगी। यही कारण है कि कटनी सहित अनेक जिलों में इकाइयों में ताले लग गए हैं।
किसानों पुरषोत्तम सिंह ठाकुर, मनु नारला आदि का सवाल है कि ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन बंद रहने से किसान अब नहीं जान पा रहे। वास्तविक तापमान, वर्षा की मात्रा, हवा की दिशा व गति, मिट्टी का तापमान, नमी व आद्रता, प्रकाश अवधि इन्हीं जानकारियों के आधार पर किसान दवा, उर्वरक, सिंचाई व कटाई-गहाई का फैसला लेते थे। किसानों का कहना है कि सरकार डिजिटल इंडिया की बात करती है, पर सबसे जरूरी डिजिटल मौसम सेवा ही बंद कर दी गई। अब खेती अनुमान पर चलानी पड़ेगी।
किसानों का मानना है कि कृषि मौसम सेवा उनकी उत्पादन लागत घटाती थी और मौसम जनित नुकसान को काफी कम कर देती थी। लेकिन अब फसल नुकसान का खतरा बढ़ेगा, मौसम आधारित योजनाओं का लाभ कम मिलेगा, दवा-उर्वरक का गलत समय पर उपयोग बढ़ेगा, सिंचाई प्रबंधन प्रभावित होगा। किसान संगठनों ने मांग की है कि कृषि मौसम इकाइयों को पुन: चालू किया जाए और स्थानीय स्तर पर नाऊकास्ट व एडवाइजरी जारी करने की व्यवस्था बहाल हो। मौसम आधारित कृषि पर निर्भर किसानों के लिए केंद्रों की बंदी एक बड़ा झटका है। यदि जल्द व्यवस्था नहीं सुधारी गई तो इसका सीधा असर रबी और खरीफ दोनों फसलों पर देखने को मिल सकता है।
वर्जन
मैने एक साल पहले ही ज्वाइन किया है। एस समय ऑटोमेटिक स्टेशन की हालत गंभीर थी। 13 ऑटोमेडिक स्टेशन को रिवाइज किया है, सभी को शीघ्र चालू किया जाएगा। किसानों के हित में शीघ्र निर्णय लिए जाएंगे। हाल ही में पांच स्टेशनों को रिवाइज किए गए हैं।
डॉ. एके सिंह, आइएमडी भोपाल।