खरगोन

MP के 699 हेक्टेयर जंगल पर खतरा, संतों ने केंद्र के प्रोजेक्ट के खिलाफ कोर्ट में लगाई याचिका

MP High Court: बड़वाह वन मंडल में 699 हेक्टेयर जंगल कटने की तैयारी ने संत समाज और स्थानीय नागरिकों में भारी रोष पैदा कर दिया है। मामला हाईकोर्ट में जा चुका है।

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Nov 14, 2025
khargone forest mining controversy (फोटो- सोशल मीडिया)

Forest Mining Controversy:खरगोन के बड़वाह क्षेत्र का वन मंडल आम जंगल नहीं बल्कि च्यवनप्राश के जनक च्यवन ऋषि (Chyavan Rishi) की तपस्थली, ऋषि कश्यप का कोठवा आश्रम और जैन तीर्थ सिद्धवरकूट भी इसका हिस्सा है। राजगुरु पं. विवेक दुबे, महंत सुखदेवानंद ब्रह्मचारी, पं. शरद कुमार मिश्र, गुरु स्वामी राधाकांताचार्य महाराज ने अधिवक्ता अभिष्ट मिश्र के जरिए उच्च न्यायालय (MP High Court) खंडपीठ इंदौर में याचिका दायर की है। इसको लेकर आनंदेश्वर मंदिर परिसर में प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई, जिसमें याचिकाकर्ताओं ने क्षेत्रवासियों से इस आंदोलन में जुड़ने का आव्हान किया।

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साधु-संतो ने खटखटाया हाईकोर्ट का दरवाजा

अधिवक्ता मिश्र ने बताया कि याचिकाकर्ता पं. विवेक दुबे ने बताया कि केंद्र सरकार द्वारा सितंबर 2023 में जारी एक टेंडर के तहत महोदरी फास्फोराइड ब्लॉक (Mahodari Phosphoride Block) नाम से एक खनन परियोजना स्वीकृत की गई थी। इस परियोजना का उद्देश्य महोदरी क्षेत्र के लगभग 699 हेक्टर वन क्षेत्र में फास्फोराइट खनन करना बताया गया है। यह टेंडर गुरुग्राम की कमोडिटी हब कंपनी को प्रदान किया गया है। वन मंडल बड़वाह में खनिज उत्खनन के लिए 699 हेक्टेयर वन भूमि से बड़ी संया में पेड़ काटने की तैयारी है। इसके विरोध में संतों ने हिंदी में हाईकोर्ट में याचिका लगाई है।

तीर्थ स्थलों का ग्रंथों के साथ दिया उल्लेख

यह याचिका इसलिए भी अनूठी है कि संतों ने पूरे क्षेत्र के सभी तीर्थ स्थलों के साथ विभिन्न धर्म ग्रंथों में उस स्थान के उल्लेख को भी रेखांकित किया है। खनन क्षेत्र में महोदरी आश्रम, कोठावा आश्रम, च्यवन ऋषि आश्रम सहित नर्मदा परिक्रमा मार्ग का हिस्सा भी आता है। महंत सच्चितानंद चैतन्य महाराज ने कहा कि स्थानीय नागरिकों और संत समाज ने इस परियोजना को पर्यावरण और धार्मिक दृष्टि से अत्यंत खतरनाक बताया है।

वन क्षेत्र के नष्ट होने से यहां के जीव-जंतुओं और प्राकृतिक संतुलन पर गहरा संकट उत्पन्न हो सकता है। खनन क्षेत्र से निकलने वाला अपशिष्ट जल सीधे नर्मदा नदी में जाने की संभावना है, जिससे नदी प्रदूषित होगी और ओंकार पर्वत सहित आसपास का धार्मिक व प्राकृतिक परिवेश खतरे में पड़ सकता है।

केंद्र और राज्य सरकार से मांगा जवाब

मामले में एडवोकेट मिश्रा, तुषार दुबे और मयूर सिंह परिहार पैरवी कर रहे हैं। मिश्रा के अनुसार याचिका में केंद्र सरकार, राज्य सरकार, खनिज मंत्रालय, पर्यावरण मंत्रालय, वन मंडल बड़वाह और कलेक्टर को पक्षकार बनाया है। न्यायालय ने केंद्र व राज्य सरकार के साथ कंपनी को भी नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। यह जंगल समाप्त हुआ तो पर्यावरण, बल्कि नर्मदा माता और आने वाली पीढ़ियां भी संकट में पड़ जाएंगी। नर्मदा का प्रदूषण भविष्य में अनेक गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है।

जैन सिद्ध क्षेत्र सहित प्राचीन मंदिर है स्थापित

क्षेत्र महातपस्वी महर्षि भृगुनंदन च्यवन की तपोभूमि है। उनका उल्लेख महाभारत और स्कंदपुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। महर्षि च्यवन की समाधि स्थली पर च्यवनेश्वर महादेव शिवलिंग स्थापित है। माना जाता है महर्षि च्यवन ने इस वन क्षेत्र में भगवती बगलामुखी माता की साधना की थी। यहां हजारों की संया में बेलपत्र के वृक्ष मौजूद है। याचिका के अनुसार पूरे विश्व में एक ही स्थान पर इतने अधिक बेलपत्र के वृक्ष कहीं और नहीं है। नर्मदा परिक्रमा मार्ग, जयंती माता मंदिर कई मंदिर है।

40 तेंदुए, 105 प्रकार के पक्षी सहित वनस्पतियां मौजूद

वाइल्ड लाइफ वार्डन टोनी शर्मा ने बताया वन मंडल क्षेत्र में जैव विविधता से भरपूर है, जहां बाघ, लगभग 40 तेंदुए, रीछ, हनी बेजर, कोबरा, वाइपर, 105 प्रकार के पक्षियो, 75 प्रकार के जलीय जीव तथा अनेक दुर्लभ वनस्पतियां पाई जाती है। इस क्षेत्र का नाम मोदरी इसलिए पड़ा, क्योंकि यहां पर देवी भगवती अपने महोदरी स्वरूप में विराजमान हैं। लोक मान्यता के अनुसार महोदरी माता भीम की पत्नी हिडिंबा की कुलदेवी थी।

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Published on:
14 Nov 2025 08:05 am
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