Indigenous Technology: रेल हादसों के तीन बड़े कारणों में पहला लोको या सहायक लोको पायलट की गलती, दूसरा ट्रैक की खराबी और तीसरा रेलवे ट्रैक पर कठोर वस्तु से ट्रेन का टकराना होता है।
मुकेश शर्मा
अब रेलवे ट्रैक की जांच अत्याधुनिक अल्ट्रा साउंड मशीनों से की जाएगी। दिल्ली-मुंबई रेलमार्ग पर इसका काम भी शुरू हो गया है। नई तकनीक से ट्रैक के फ्रेक्चर (क्रेक) से लेकर तमाम समस्याओं का आसानी से पता लगाया जा सकेगा।
अल्ट्रा साउंड मशीनों से जांच से रेलवे ट्रैक को लेकर होने वाले हादसों में 80 से 85 फीसदी कमी आएगी। यह मशीन वर्तमान मशीन से काफी अपडेट है। रेल हादसों के तीन बड़े कारणों में पहला लोको या सहायक लोको पायलट की गलती, दूसरा ट्रैक की खराबी और तीसरा रेलवे ट्रैक पर कठोर वस्तु से ट्रेन का टकराना होता है।
रेलवे ट्रैकों की निगरानी के लिए अत्याधुनिक मशीनें लगा रहा हैं तो रेल इंजनों में सुरक्षा के लिए कवच सिस्टम भी लगाए जा रहे हैं। लोको और सहायक लोको पायलट के पद भी भर्ती की जा रही है।
दिल्ली-मुंबई रेलमार्ग के अलावा, दिल्ली-कोलकाता, चेन्नई-मुंबई और चेन्नई -कोलकाता के बीच ये अल्ट्रा साउंड मशीनें लगाई जा रही हैं। यह मशीन देशभर में 70 हजार किमी रेल ट्रेकों पर लगाने की योजना है। रोहित मालवीय, सी. डीसीएम, कोटा मंडल
ये नई मशीन स्वदेशी तकनीक पर बनी है। इसे मैनुअल और मोटराइज्ड तरीके से चलाकर पटरियों का निरीक्षण किया जा सकता है। यह 20 किमी प्रति घंटे की गति से चलकर निरीक्षण करने में सक्षम है।
मल्टीपल बीम वाली नई मशीन में उन्नत नॉन-डिस्ट्रक्टिव टेस्टिंग तकनीक है। करीब छह लाख रुपए कीमत की अल्ट्रासोनिक मशीन को पटरियों पर रखकर चलाया जाता है। इससे पटरियों की जांच, वेल्डिंग की गुणवत्ता, जंग की स्थिति एवं अन्य दोषों का ध्वनि की गति और समय का आकलन करके आसानी से पता लगाया जा सकता है।