Kota News: राजस्थान सरकार की आरजीएचएस योजना के तहत चिकित्सकीय प्रिस्क्रिप्शन में हो रही त्रुटियों के कारण प्रदेशभर के मेडिकल स्टोर्स और मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
Govt Hold RGHS Scheme Amount: राजस्थान सरकार की आरजीएचएस योजना के तहत चिकित्सकीय प्रिस्क्रिप्शन में हो रही लगातार त्रुटियों का खामियाजा प्रदेशभर के मेडिकल स्टोर्स संचालकों और मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। प्रिस्क्रिप्शन में चिकित्सकों की ओर से अनिवार्य विवरण नहीं भरने, हस्ताक्षर अधूरे होने, ओवरराइटिंग और इलाज संबंधी जरूरी जानकारी का अभाव होने से दवा प्रदाय व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हो गई है। मरीजों को दवा नहीं मिल पा रही और मेडिकल स्टोर्स करोड़ों की देनदारी अटकने से आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं।
जानकारी के अनुसार बीते 4 वर्षों में प्रदेश के करीब 4,800 अधिकृत मेडिकल स्टोर्स का लगभग 80 करोड़ रुपए का भुगतान सरकार ने रोक दिया है। इसका कारण प्रिस्क्रिप्शन में हुई त्रुटियां है। इनके सुधार की जिम्मेदारी चिकित्सकों की थी, लेकिन कार्रवाई किसी पर नहीं हुई।
मेडिकल स्टोर संचालकों का आरोप है कि चिकित्सकों को प्रिस्क्रिप्शन संबंधी मानकों और डिजिटल सिस्टम के बारे में समय पर प्रशिक्षण नहीं दिया गया। संबंधित चिकित्सकों पर किसी प्रकार की जवाबदेही तय नहीं की गई। इसके उलट, दवा वितरण करने वाले मेडिकल स्टोर्स पर ही कार्रवाई का असर पड़ा और उनका भुगतान रोक दिया गया जबकि वे सिर्फ डॉक्टरी प्रिस्क्रिप्शन के आधार पर दवा दे रहे हैं। मेडिकल स्टोर संगठन की मांग है कि सरकार प्रिस्क्रिप्शन त्रुटियों की जिम्मेदारी संबंधित चिकित्सकों पर तय करें।
इस स्थिति ने मरीजों को भी मुश्किल में डाल दिया है। कई जगह मेडिकल स्टोर्स ने भुगतान रुके होने और स्टॉक खत्म होने के चलते आरजीएचएस के तहत दवा देना बंद कर दिया है। ऐसे में मरीजों को निजी दुकानों से ऊंचे दाम पर दवाएं खरीदनी पड़ रही हैं। इससे न केवल परेशानी हो रही है बल्कि जेब भी कट रही है।
जानकारी अनुसार के आरजीएचएस लाभार्थी का प्रिस्क्रिप्शन जैसे ही मेडिकल स्टोर संचालक पोर्टल पर अपलोड करता है, उसके आधार पर बिल जनरेट हो जाता है और स्टोर मरीज को दवा उपलब्ध करा देता है, लेकिन कई बार चिकित्सक पर्चे पर डायग्नोसिस लिखना भूल जाते हैं या उसे अधूरा छोड़ देते हैं। कहीं दवा का स्वरूप, उपचार अवधि नहीं लिखी जाती।
पोर्टल पर भले ही दवा मौजूद हो, लेकिन यदि वह योजना में शामिल नहीं है तो भी पर्चा मान्य नहीं माना जाता। ऐसे सभी मामलों में इंश्योरेंस कंपनी के पीपीए की ओर से पर्चे अधूरे या नियम विरुद्ध पाए जाते हैं और मेडिकल स्टोर द्वारा पहले ही दवा दे दिए जाने के बावजूद बिल का भुगतान रोक दिया जाता है।
राज्य सरकार के स्तर पर ही गड़बड़ी है। आरजीएचएस को लेकर मेडिकल स्टोर संचालकों व डॉक्टर्स के लिए अलग-अलग गाइड लाइन जारी की हुई है। चिकित्सक ओपीडी में रहता है। उस समय मरीजों का भार रहता है। ऐसे में वह प्रिस्क्रिप्शन में पूरा डायग्नोसिस नहीं लिख पाता। सरकार के स्तर पर ही ऑनलाइन व ऑफलाइन दोनों तरह से चिकित्सक व मेडिकल स्टोर संचालकों की एक वर्कशॉप होनी चाहिए, ताकि उनको प्रशिक्षण मिल सके।
डॉ. अशोक शारदा, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, आईएमए
इस मामले में हम सरकार से भी मिले। उन्होंने क्लेम रिव्यू कमेटी भी बनाई, लेकिन समाधान अब तक नहीं हुआ है। इस मामले में उचित कार्रवाई होनी चाहिए और रोका भुगतान सरकार जारी करें। साथ ही आरजीएचएस पोर्टल पर कई भुगतान योग्य नहीं होने वाले प्रोडक्ट भी चढ़ा रखे हैं, उन्हें भी हटाया जाए। जिससे किसी प्रकार का संशय नहीं हो रहे।
विवेक विजय, प्रदेश अध्यक्ष, प्रादेशिक दवा विक्रेता समिति