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Six-Pocket Syndrome: क्या होता है सिक्स पॉकेट सिंड्रोम, जानें कैसे परवरिश से जुड़ी है ये बीमारी

KBC शो में आए एक बच्चे ने सबका ध्यान खींच लिया। बच्चे के जवाब देने के तरीके से लोगों के बीच सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है। लोग इस व्यवहार को 'सिक्स-पॉकेट सिंड्रोम' से जोड़ते दिख रहे हैं।

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Oct 14, 2025
Six-Pocket Syndrome (Image Source: Gemini AI)

Six Pocket Syndrome Meaning: हाल ही में जब एक युवा प्रतियोगी कौन बनेगा करोड़पति में आया, तो उसके हाव-भाव नहीं, बल्कि उसके लहजे ने सबका ध्यान अपनी और खींचा। जैसे ही अमिताभ बच्चन ने नियम समझाना शुरू किया, उस लड़के ने आत्मविश्वास से बीच में ही कहा, "मुझे नियम पता हैं, आपको मुझे बताने की जरूरत नहीं है।" बच्चे की प्रतिक्रिया से सोशल मीडिया पर खलबली मच गई है। आइए जानते हैं इन सबके बीच 'सिक्स-पॉकेट सिंड्रोम' की चर्चा क्यों हो रही है।

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क्या होता है सिक्स-पॉकेट सिंड्रोम?

यह शब्द चीन में एक-बच्चा नीति के दौर में उभरा। परिवारों के आकार में कमी के साथ, हर बच्चे के पास प्रभावी रूप से छह वयस्क होना, दो माता-पिता और चार दादा-दादी। छह जेबें, जो एक नन्हे से जीवन में समाहित हो जाती थीं। साफ शब्दों में कहें तो इस ढांचे में बच्चा परिवार का केंद्र बन जाता है। सभी वयस्क सदस्य बच्चे की हर मांग को पूरा करने की कोशिश करते हैं। इसका नतीजा ये होता है कि बच्चे में धैर्य खत्म होता है और उसमें असंवेदनशीलता जैसी प्रवृत्तियां विकसित होने लगती हैं।मनोवैज्ञानिकों ने जल्द ही इसके दुष्परिणामों पर ध्यान दिया है। इन्हें चीन में ‘Little Emperor Syndrome’ यानी ‘छोटे सम्राट का सिंड्रोम’ भी कहा जाता है। ये एक ऐसी पीढ़ी है जो अपनी मनमानी करने की आदी हो चुकी है, इन्हें हर मांगी हुई चीज तुरंत चाहिए और इन्हें न सुनने की आदत नहीं होती है।

भारत में भी तेजी से बढ़ रहा है ये ट्रेंड

भारत में भले ही एक-बच्चा नीति न हो, लेकिन बढ़ती संपन्नता, छोटे परिवारों और महत्वाकांक्षी पालन-पोषण ने ऐसी ही स्थितियां पैदा कर दी हैं। आजकल एक या दो बच्चे होने पर दादा-दादी, नाना-नानी सारा दुलार एक बच्चे पर ही लुटा देते हैं।

परवरिश से कैसे जुड़ी है ये बीमारी

माता-पिता पांच साल की उम्र में ही उन्हें कोडिंग की कक्षाओं में दाखिला दिला देते हैं, "उन्हें आगे रखने" के लिए नए-नए गैजेट्स खरीद देते हैं, और अक्सर उन्हें किसी भी तरह की परेशानी से बचाते हैं। इसमें प्यार करने वाले दादा-दादी और घरेलू नौकरों को भी जोड़ लीजिए और आपके पास बिना शर्त समर्थन के छह स्रोत तैयार हो जाएंगे। जब हर इच्छा पूरी हो जाती है और हर गलती माफ कर दी जाती है, तो बच्चे अपने अंदर एक विकृत आत्म-धारणा विकसित करने लगते हैं, जहां वे हमेशा सही होते हैं, हमेशा खास होते हैं, हमेशा नियंत्रण में होते हैं।

बच्चों को क्या सिखाएं

  • आधुनिक पालन-पोषण एक जटिल करतब है। हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे आत्मविश्वासी हों, कमजोर नहीं। लेकिन, बच्चों को सिखाएं कि आत्मविश्वास का मतलब हमेशा सही होना नहीं है, बल्कि इसका मतलब है सीखने की इच्छा रखना।
  • उन्हें दिखाएं कि विनम्रता कमजोरी नहीं, बल्कि बुद्धिमत्ता है।
  • उन्हें खुलकर बोलने के लिए प्रोत्साहित करें, लेकिन साथ ही ध्यान से सुनने के लिए भी प्रोत्साहित करें।
  • स्कूलों को भी विकसित होना होगा। सिर्फ अकादमिक प्रतिभा अब दुनिया के लिए तैयारी का प्रतीक नहीं है। भावनात्मक बुद्धिमत्ता, लचीलापन और सहानुभूति को शिक्षण के मूल में होना चाहिए।

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