लखनऊ

Love Jihad Case: धमकियों के आगे नहीं झुकी पीड़िता, KGMU लव जिहाद केस में महिला आयोग की त्वरित कार्रवाई

KGMU में कथित लव जिहाद रैकेट के मामले में पीड़िता ने धमकियों के बावजूद महिला आयोग पहुंचकर पूरी साजिश उजागर की। पिता के साथ मीडिया के सामने आकर उसने साहसपूर्वक अपनी बात रखी, जिस पर आयोग की उपाध्यक्ष अपर्णा यादव ने तत्काल एफआईआर और गिरफ्तारी के आदेश दिए।

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Dec 23, 2025
KGMU Love Jihad Case (फोटो सोर्स : WhatsApp News Group)

KGMU Love Jihad Case: किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (KGMU) में सामने आए कथित लव जिहाद रैकेट के मामले ने न केवल प्रदेश की कानून-व्यवस्था और शैक्षणिक संस्थानों की सुरक्षा पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि यह मामला उस सामाजिक और मानसिक संघर्ष को भी उजागर करता है, जिससे ऐसी परिस्थितियों में फंसी लड़कियों को गुजरना पड़ता है। इस पूरे घटनाक्रम में सबसे अहम बात यह रही कि तमाम धमकियों, दबाव और डर के बावजूद पीड़िता ने हिम्मत नहीं हारी और न्याय की राह चुनी।

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धमकियों के बावजूद महिला आयोग तक पहुंची पीड़िता

सूत्रों के अनुसार, पीड़िता को लगातार धमकियां मिल रही थीं। उसे चुप रहने, शिकायत न करने और मामला दबाने के लिए मानसिक दबाव डाला जा रहा था। इसके बावजूद उसने साहस दिखाया और उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग का दरवाजा खटखटाया। आयोग के समक्ष उसने बंद कमरे में पूरी साजिश को विस्तार से रखा और बताया कि किस तरह उसे भावनात्मक रूप से फंसाया गया, भरोसे का फायदा उठाया गया और धीरे-धीरे उसे एक ऐसे जाल में उलझा दिया गया, जिससे बाहर निकलना बेहद कठिन था।

मीडिया के सामने पिता-पुत्री ने रखी सच्चाई

महिला आयोग में बयान दर्ज कराने के बाद पीड़िता अपने पिता के साथ मीडिया के सामने आई। कैमरों के सामने बोलते हुए वह कई बार भावुक हुई, उसकी आंखों से आंसू छलक पड़े, लेकिन उसने अपनी बात मजबूती और स्पष्टता के साथ रखी। उसके पिता ने भी बेटी का साथ देते हुए कहा कि उनकी बेटी ने कोई गलती नहीं की है, बल्कि वह एक सोची-समझी साजिश का शिकार हुई है। मीडिया के सवाल कई बार असहज करने वाले थे, लेकिन इसके बावजूद पीड़िता ने संयम नहीं खोया। यह दृश्य समाज के लिए एक आईना था कि न्याय मांगने वाली लड़कियों को किस तरह की मानसिक परीक्षा से गुजरना पड़ता है।

महिला आयोग की त्वरित कार्रवाई

इस पूरे मामले में महिला आयोग की उपाध्यक्ष अपर्णा यादव की भूमिका निर्णायक रही। उन्होंने पीड़िता की बात गंभीरता से सुनी और बिना देरी किए संबंधित थाने में एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए। साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आरोपी की जल्द से जल्द गिरफ्तारी सुनिश्चित की जाए। महिला आयोग ने भरोसा दिलाया कि पीड़िता को हर स्तर पर कानूनी और मानसिक सहयोग दिया जाएगा और उसे किसी भी प्रकार की प्रताड़ना का सामना नहीं करने दिया जाएगा।

लव जिहाद का कथित इकोसिस्टम

इस मामले ने एक बार फिर उस कथित इको-सिस्टम की ओर ध्यान खींचा है, जिसे लेकर विशेषज्ञ और सामाजिक संगठन लंबे समय से चेतावनी देते रहे हैं। जानकारों का कहना है कि ऐसे मामलों में एक तय पैटर्न होता है,पहले दोस्ती, फिर भावनात्मक लगाव, उसके बाद धीरे-धीरे मानसिक निर्भरता और अंत में पहचान व आस्था से समझौता करने का दबाव। इस इको-सिस्टम में सवाल भी तय होते हैं और जवाब भी। पीड़िता को यह एहसास ही नहीं होने दिया जाता कि वह किस दिशा में जा रही है। जब तक उसे पूरी सच्चाई समझ आती है, तब तक वह मानसिक, भावनात्मक और कई बार सामाजिक रूप से इतनी उलझ चुकी होती है कि बाहर निकलना बेहद मुश्किल हो जाता है।

सोशल मीडिया पर पीड़िता को दोष देने की प्रवृत्ति

दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह भी है कि ऐसे मामलों में सोशल मीडिया और कमेंट सेक्शन में कई लोग पीड़िता को ही दोषी ठहराने लगते हैं। लड़की के चरित्र, उसके फैसलों और उसकी समझ पर सवाल उठाए जाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि लोग इस तरह की साजिशों के मनोवैज्ञानिक तरीकों को नहीं समझते। वास्तव में, यह केवल एक व्यक्तिगत संबंध नहीं होता, बल्कि एक सुनियोजित प्रक्रिया होती है, जिसमें भावनाओं का इस्तेमाल हथियार की तरह किया जाता है।

धर्म परिवर्तन पर ठिठकती हैं कई लड़कियां

इस पूरे विमर्श का एक अहम पहलू यह भी है कि जब बात धर्म परिवर्तन की आती है, तो कई लड़कियां वहीं ठिठक जाती हैं। यह दर्शाता है कि उनके लिए धर्म कोई साधारण पहचान नहीं, बल्कि गहरे आत्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों से जुड़ा विषय है। विशेषज्ञों का कहना है कि जिस उम्र में हार्मोन और भावनाएं सोचने-समझने की शक्ति पर हावी हो जाती हैं, उस उम्र में भी यदि कोई लड़की धर्म परिवर्तन से पीछे हटती है, तो यह उसके आत्मबोध और आस्था की गहराई को दर्शाता है।

धर्म कोई पहनावा नहीं, जीवन-मूल्य है

पीड़िता के बयान से यह स्पष्ट हुआ कि उसके लिए धर्म कोई ऐसा पहनावा नहीं था जिसे बदला जा सके। वह उसे अपनी पहचान, संस्कार और जीवन-मूल्यों का हिस्सा मानती थी। यही कारण है कि तमाम दबावों के बावजूद उसने पीछे हटने और अपने मूल में लौटने का फैसला किया। समाजशास्त्रियों का मानना है कि ऐसे फैसलों का सम्मान किया जाना चाहिए, न कि उन पर सवाल उठाए जाने चाहिए।

समाज से अपील: पीड़िताओं के साथ खड़े हों

इस पूरे मामले ने समाज के सामने एक बड़ा प्रश्न खड़ा किया है,क्या हम ऐसी लड़कियों के साथ खड़े होते हैं, या उन्हें अकेला छोड़ देते हैं? विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि आवश्यकता इस बात की है कि पीड़िताओं को दोष देने के बजाय उन्हें सुरक्षा, सहयोग और सम्मान दिया जाए। ऐसी बच्चियां जब हिम्मत दिखाकर सामने आती हैं, तो यह समाज की जिम्मेदारी बनती है कि वह उनके साथ खड़ा हो, उनकी मदद करे और उन्हें न्याय दिलाने में सहयोग करे।  

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