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Premanand Maharaj : किस्मत नहीं, कर्म बदलते हैं जीवन की दिशा, नाम और अंगूठी पर प्रेमानंद महाराज का बड़ा बयान

Saint Premanand Maharaj : आज के समय में लोग अपनी किस्मत बदलने के लिए नाम बदलने, अंगूठी और रत्न पहनने जैसे उपाय अपनाते हैं। लेकिन क्या ये सच में असर करते हैं? मथुरा-वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज ने इस विषय पर अंधविश्वास और सच्चे मार्ग के बीच का स्पष्ट अंतर बताया है।

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मथुरा

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Ritesh Singh

Dec 23, 2025

प्रेमानंद महाराज ने बताया सच (फोटो सोर्स : premanand Maharaj X)

प्रेमानंद महाराज ने बताया सच (फोटो सोर्स : premanand Maharaj X)

Premanand Maharaj Discourse:  लोग अपने जीवन में आने वाली परेशानियों, असफलताओं और बाधाओं से अक्सर चिंतित रहते हैं। नौकरी में तरक्की न मिलना, व्यापार में नुकसान, विवाह में देरी, पारिवारिक कलह या स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, इन सबके समाधान के लिए लोग तरह-तरह के उपाय अपनाते हैं। कोई ज्योतिषी के पास जाता है, कोई पंडित से सलाह लेता है, तो कोई तंत्र-मंत्र और टोटकों का सहारा लेता है। इन्हीं उपायों में सबसे अधिक प्रचलित हैं- नाम बदलना, नाम में अक्षर या नंबर जोड़ना और रत्न या अंगूठी पहनना। लेकिन क्या वाकई इन उपायों से किस्मत बदल जाती है? मथुरा-वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज ने इस विषय पर अपने विचार स्पष्ट रूप से रखे हैं। उनके विचार न केवल आध्यात्मिक हैं, बल्कि जीवन की वास्तविकता से भी जुड़े हुए हैं।

भक्त का प्रश्न और महाराज का उत्तर

एक सत्संग के दौरान एक भक्त ने प्रेमानंद महाराज से प्रश्न किया कि आजकल लोग ज्योतिषियों की सलाह पर नाम बदल रहे हैं, नाम में अक्षर जोड़ रहे हैं और तरह-तरह की अंगूठियां पहन रहे हैं। क्या सच में इन उपायों से भाग्य बदल जाता है?इस पर प्रेमानंद महाराज ने बहुत सरल लेकिन गहरे शब्दों में उत्तर दिया। उन्होंने कहा कि यदि केवल नाम बदलने या अंगूठी पहनने से ही किस्मत बदल जाती, तो आज संसार का हर व्यक्ति ऐसा कर चुका होता। कोई भी दुखी या असफल न होता।

नाम बदलना और अंगूठी पहनना-भ्रम या समाधान

प्रेमानंद महाराज के अनुसार, नाम बदलना, नंबर जोड़ना या किसी विशेष नग की अंगूठी पहनना भाग्य बदलने का साधन नहीं है। उन्होंने इसे एक प्रकार का भ्रम बताया। उनका कहना है कि लोग अपनी असफलताओं का कारण अपने कर्मों में ढूंढने के बजाय बाहरी उपायों में समाधान खोजते हैं। महाराज ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अंगूठी पहन लेने से या कोई छल्ला धारण कर लेने से न तो कर्म बदलते हैं और न ही भाग्य। यह सब मन को बहलाने वाले उपाय हैं।

जंतर-मंतर और टोटकों पर क्या बोले महाराज

आजकल बाजार में तरह-तरह के ताबीज, यंत्र, रुद्राक्ष और जंतर-मंतर आसानी से उपलब्ध हैं। कई लोग इन्हें पहनकर यह सोचते हैं कि अब उनके जीवन की सभी समस्याएं दूर हो जाएंगी। इस पर प्रेमानंद महाराज ने कहा कि इन टोटकों और जंतर-मंतरों में उलझना केवल समय और धन की बर्बादी है। इनसे न तो आत्मा का कल्याण होता है और न ही जीवन में स्थायी सुख मिलता है।

अगर किसी को लाभ होता दिखे तो

अक्सर लोग उदाहरण देते हैं कि “फलां व्यक्ति ने अंगूठी पहनी और उसका काम बन गया” या “नाम बदलते ही तरक्की हो गई। इस पर महाराज ने बड़ा संतुलित दृष्टिकोण रखा। उन्होंने कहा कि यदि किसी को ऐसा लगता है कि उपाय करने से लाभ हुआ है, तो वह संयोग हो सकता है या उसके पूर्व जन्मों अथवा वर्तमान जीवन के पुण्य कर्मों का फल हो सकता है। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि अंगूठी या नाम ने ही चमत्कार कर दिया।

भाग्य बदलने का वास्तविक उपाय क्या है

प्रेमानंद महाराज के अनुसार, भाग्य बदलने का एकमात्र मार्ग है,ईश्वर की शरण और अपने कर्मों में सुधार। उन्होंने कहा कि ईश्वर का नाम जप करें ,मन को शुद्ध रखें। ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का पालन करें। परिश्रम और संयम को जीवन का आधार बनाएं। महाराज ने जोर देकर कहा कि ईश्वर का स्मरण और कठोर परिश्रम मिलकर ही जीवन की दिशा बदल सकते हैं।

कर्म और भाग्य का संबंध

भारतीय दर्शन में कर्म और भाग्य का गहरा संबंध माना गया है। प्रेमानंद महाराज भी इसी सिद्धांत को दोहराते हैं। उनका कहना है कि आज जो हम भोग रहे हैं, वह हमारे पूर्व कर्मों का परिणाम है और आज जो कर्म हम कर रहे हैं, वही हमारे भविष्य का निर्माण करेंगे। इसलिए यदि हम चाहते हैं कि हमारा भाग्य सुधरे, तो हमें अपने विचार शुद्ध करने होंगे। बुरी आदतों को छोड़ना होगा। दूसरों के प्रति करुणा और सहानुभूति रखनी होगी।

बाहरी दिखावे से नहीं, आंतरिक शुद्धि से बदलेगा जीवन। महाराज ने यह भी कहा कि आज का मनुष्य बाहरी दिखावे पर अधिक ध्यान देता है। महंगी अंगूठियां, चमकदार रत्न और ताबीज पहनकर वह सोचता है कि अब सब ठीक हो जाएगा। लेकिन वास्तविक परिवर्तन भीतर से आता है। जब मन निर्मल होता है और कर्म सच्चे होते हैं, तभी जीवन में स्थायी सुख और सफलता आती है।

श्रद्धा रखें, लेकिन अंधविश्वास नहीं

प्रेमानंद महाराज श्रद्धा के विरोधी नहीं हैं। वे कहते हैं कि भगवान पर श्रद्धा रखें, लेकिन अंधविश्वास से दूर रहें। श्रद्धा हमें शक्ति देती है, जबकि अंधविश्वास हमें भ्रम में डालता है।