इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को मैट्रिमोनियल साइट Shaadi.com के संस्थापक और CEO अनुपम मित्तल के खिलाफ दर्ज एक FIR को खारिज कर दिया। यह FIR धोखाधड़ी, जबरन वसूली और अश्लील सामग्री फैलाने जैसे गंभीर आरोपों पर आधारित थी।
लखनऊ : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को मैट्रिमोनियल साइट शादी.कॉम के संस्थापक और CEO अनुपम मित्तल के खिलाफ दर्ज एक FIR को खारिज कर दिया। यह FIR धोखाधड़ी, जबरन वसूली और अश्लील सामग्री फैलाने जैसे गंभीर आरोपों पर आधारित थी। अदालत ने स्पष्ट किया कि मित्तल व्यक्तिगत रूप से किसी अपराध के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराए जा सकते, क्योंकि वे केवल एक मध्यस्थ (इंटरमीडियरी) की भूमिका निभा रहे थे।
मामला एक वकील की शिकायत से शुरू हुआ, जिन्होंने शादी.कॉम की सेवाओं का उपयोग करने के लिए भुगतान किया था। उनका दावा था कि प्लेटफॉर्म पर मौजूद एक महिला प्रोफाइल, मोनिका गुप्ता, ने उनके साथ निजी बातचीत के दौरान अश्लील वीडियो रिकॉर्ड किए और बाद में उन्हें ब्लैकमेल करने लगी। वकील ने कंपनी की ग्राहक सेवा और सीईओ अनुपम मित्तल को कई बार शिकायत की, लेकिन कथित रूप से कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। नाराजगी में उन्होंने मित्तल के खिलाफ FIR दर्ज कराई, जिसमें भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 420 (धोखाधड़ी), 384 (जबरन वसूली), 507 (गुमनाम आपराधिक धमकी), 120-बी (आपराधिक साजिश) और सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम की धारा 67 (अश्लील सामग्री का प्रकाशन) के तहत आरोप लगाए गए।
शिकायतकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि मैचमेकिंग सेवाओं के नाम पर उनके साथ विश्वासघात किया गया, जिससे उनकी निजता का उल्लंघन हुआ।
मित्तल ने FIR को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया। जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस मदन पाल सिंह की बेंच ने सुनवाई के बाद FIR को रद्द कर दिया। अदालत ने तर्क दिया कि मित्तल पर व्यक्तिगत रूप से कोई अपराध साबित नहीं होता। शिकायतकर्ता को प्लेटफॉर्म पर परेशानी हुई, लेकिन मित्तल के व्यक्तिगत सोशल मीडिया या अन्य माध्यमों से कोई उत्पीड़न नहीं हुआ।
अदालत ने आगे कहा कि शिकायतकर्ता के पास प्लेटफॉर्म छोड़ने का विकल्प था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। साथ ही, जब भी शिकायतें मिलीं, तो कार्रवाई की गई—जिसमें संदिग्ध प्रोफाइलों को हटाना भी शामिल था। IT अधिनियम की धारा 79(1) और 79(2) के तहत मित्तल को मध्यस्थ के रूप में संरक्षण प्राप्त है। अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के 'गूगल इंडिया प्रा. लि. बनाम विसाका इंडस्ट्रीज' मामले का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि प्लेटफॉर्म तीसरे पक्ष की गतिविधियों के लिए आपराधिक रूप से उत्तरदायी नहीं हो सकते। कंपनी ने न तो अश्लीलता को बढ़ावा दिया और न ही धोखाधड़ी की।
इसलिए, अदालत ने माना कि FIR में कोई ठोस आधार नहीं है और जबरन वसूली या धोखाधड़ी का केस नहीं बनता। मित्तल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मनीष तिवारी, प्रणव तिवारी और अनुराग वाजपेयी ने पैरवी की। सभी पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने यह फैसला सुनाया, जिससे मित्तल को बड़ी राहत मिली।
यह विवाद मूल रूप से शादी.कॉम जैसी ऑनलाइन मैचमेकिंग सेवाओं की सीमाओं को उजागर करता है। शिकायतकर्ता का कहना था कि प्लेटफॉर्म ने उनकी निजी सामग्री के ब्लैकमेल की जानकारी होने के बावजूद समय पर कार्रवाई नहीं की। हालांकि, अदालत ने जांच के आधार पर जोर दिया कि ऐसी साइटें केवल सुविधा प्रदाता हैं और उपयोगकर्ताओं की गतिविधियों के लिए पूरी तरह जिम्मेदार नहीं ठहराई जा सकतीं।