नेताओं और अपराधियों का गठजोड़ अक्सर चर्चा में रहता है। इसके कई किस्से भी सामने आते रहते हैं। ऐसा ही एक किस्सा यूपी के कुख्यात अपराधी श्रीप्रकाश शुक्ला और राज्य के मंत्री रहे अमरमणि त्रिपाठी का है।
श्रीप्रकाश शुक्ला यूपी का वह डॉन था, जिससे नेता-अफसर-अपराधी सभी खौफ खाते थे। उसका एनकाउंटर करने वाले आईपीएस अफसर रहे राजेश पांडेय ने अपने संस्मरण में इससे जुड़े कई किस्से बयान किए हैं। उनके मुताबिक मंत्री अमरमणि त्रिपाठी डॉन श्री प्रकाश शुक्ला की कठपुतली जैसे थे।
एक बार पुलिस ने श्रीप्रकाश के बड़े भाई ओम प्रकाश को उठा लिया था। उसे किसी ने खबर दी कि कैंट थाने में उसके भैया को पुलिस ने बहुत पीटा है। यह सुन कर वह तमतमा गया। उसने मंत्री अमरमणि को आदेश दिया कि इंस्पेक्टर, सीओ और एसएसपी का तबादला करवाओ। मंत्री ने यकीन दिलाते हुए कहा- हो जाएगा।
अमरमणि ने तबादला करवाने का वादा करके तब तो पिंड छुड़ा लिया, लेकिन अंततः यह वादा उस पर बड़ा भारी पड़ा। जब वादा पूरा नहीं हुआ तो श्रीप्रकाश बेसब्र होने लगा। करीब एक महीना हो गया तो उसके सब्र का बांध टूट गया।
एक दिन गुस्से में श्रीप्रकाश ने अपना बैग उठाया और सीधे अमरमणि के कमरे में घुस गया। गार्ड ने रोकने की कोशिश की, लेकिन उसे धक्का देकर वह अंदर चला गया। कमरे में कांग्रेस नेता सिराज मेहंदी और सात-आठ लोग थे।
श्रीप्रकाश को देखते ही अमरमणि उठ खड़े हुए और कहने लगे, ‘अरे यहां कैसे! मुझे बोला होता, मैं चला आता।’
डॉन ने कहा – आज फाइनल हिसाब करने आया हूं। उसने सामने मेज पर बैग रखा और चेन खोल कर एके47 निकाल ली। कमरे में मौजूद लोग जिधर भाग पाए, भाग गए। सिराज मेहंदी को बाथरूम नजर आया तो उसी में घुस कर अंदर से दरवाजा बंद कर लिया।
श्रीप्रकाश ने एके47 दिखाते हुए अमरमणि से कहा- इसे पहचानते हो न। एक मिनट का काम है। गोल घर पर खड़ा होकर चलाऊंगा और 50 लोग मरेंगे तो तुरंत सब का तबादला हो जाएगा।
अमरमणि ने उसका गुस्सा शांत करने की कोशिश में फिर आश्वासन देना शुरू किया। वह उसे मनाते रहे, लेकिन श्रीप्रकाश गुस्से में ही वहां से चला गया।
अमरमणि त्रिपाठी उत्तर प्रदेश में बसपा और भाजपा की कई सरकारों में मंत्री थे। भाजपा शासन में कल्याण सिंह, राम प्रकाश गुप्ता और राजनाथ सिंह की सरकारों में 1997 से 2000 के दौरान वह मंत्री रहे। बाद में मायावती सरकार में वह कद्दावर मंत्री रहे। 2003 में हुए मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में उनका नाम आया। इसके बाद उन्हें जेल जाना पड़ा और उनका राजनीतिक जीवन खत्म हो गया।
मधुमिता हत्याकांड के समय राजेश पांडेय लखनऊ के एसपी (क्राइम) थे। उनके मुताबिक उत्तर प्रदेश के कई थानों में अमरमणि का नाम अपराधी के तौर पर दर्ज था। इस हत्याकांड के तुरंत बाद राजेश पांडेय का तबादला जालौन कर दिया गया था।
कहा गया कि हत्या के वक्त मधुमिता शुक्ला के गर्भ में बच्चा था और वह बच्चा अमरमणि का था। लेकिन, पोस्टमॉर्टम के बाद सैंपल नहीं लेने दिया गया था। पुलिस को यह पता चलने पर बाद में शव को वापस मंगवा कर डीएनए जांच के लिए नमूना लिया गया था। इस मामले में अमरमणि को उम्रकैद हुई। कुछ महीने पहले उन्हें समय से पहले रिहाई मिली है।
इसी तरह एक बार श्रीप्रकाश शुक्ला ने कल्याण सिंह सरकार के नगर विकास मंत्री लालजी टंडन को खुली धमकी दे दी। उसने उनसे भी किसी अफसर का तबादला करने के लिए कहा था। एक दिन उसने लालजी टंडन को फोन लगा दिया और कहा- मैं भाजपा का मऊ जिला अध्यक्ष बोल रहा हूं। फोन रिसीव करने वाले ने टंडन को सूचना दी। उन्होंने बात कराने के लिए कहा।
लालजी टंडन जैसे ही लाइन पर आए, श्रीप्रकाश ने कहा- दो लोगों के तबादले के लिए कहा था। नहीं हुआ है। तुम्हें महीने भर के अंदर मार दूंगा।
लालजी टंडन अपराध और अपराधियों से दूर ही रहते थे। श्रीप्रकाश की धमकी से वह बुरी तरह डर गए थे। उन्होंने केजीएमसी के प्राइवेट वार्ड में खुद को भर्ती करवा लिया और मरीज बन कर तीन महीने वहीं भर्ती रहे।
श्रीप्रकाश शुक्ला ने पूरे यूपी में अपना खौफ पैदा कर दिया था। वह अपने दुश्मनों को तड़पा कर मारा करता था। अक्सर कई गोलियां मारा करता था। एक प्रतिद्वंदी को ऐसा मारा कि पोस्टमॉर्टम में 126 गोलियों के घाव मिले। ऐसे ही उसने एक 'लॉटरी किंग' को अपने मुंहबोले बहनोई को एजेंसी दिलाने के लिए कहा था। उसने मना कर दिया। शुक्ला ने उसकी जिंदगी ही खत्म कर दी। उसके शरीर में 25-30 गोलियां धंसा डालीं।