Paddy Price Crash: लखनऊ में धान खरीद की देरी ने किसानों की परेशानी बढ़ा दी है। सरकार ने समर्थन मूल्य 2369 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है, लेकिन बिचौलिए 1600 से 1800 रुपये में ही धान खरीद रहे हैं। सरकारी खरीद एक नवंबर से शुरू होगी, तब तक किसानों की हजारों क्विंटल उपज औने-पौने दामों में बिक चुकी है।
Paddy Price Crash Agriculture Crisis: धान की बंपर पैदावार के बावजूद किसानों के चेहरे मुरझाए हुए हैं। प्रदेश की राजधानी लखनऊ में इस बार सरकारी खरीद देरी से शुरू होने के कारण किसान औने-पौने दामों में अपनी उपज बेचने को मजबूर हैं। केंद्र सरकार ने धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 2369 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है, लेकिन बाजार में बिचौलियों ने अपना जाल ऐसा फैला रखा है कि किसानों से 1600 से 1800 रुपये प्रति क्विंटल में ही खरीदारी की जा रही है।
खरीफ विपणन वर्ष 2025-26 के तहत जहां हरदोई, लखीमपुर खीरी, सीतापुर जैसे पश्चिमी जिलों में सरकारी खरीद शुरू हो चुकी है, वहीं लखनऊ में एक नवंबर से ही खरीद प्रक्रिया शुरू होगी। देरी के चलते हजारों क्विंटल धान पहले ही निजी हाथों में जा चुका है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले एक महीने में केवल बख्शी का तालाब (बीकेटी) क्षेत्र से लगभग 3000 क्विंटल धान खुले बाजार में बिक चुका है। किसानों का कहना है कि जब सरकारी खरीद केंद्र नहीं खुले हैं, तो उनके पास बिचौलियों को बेचने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता।
लखनऊ की प्रमुख धान मंडियां इन दिनों लगभग सूनी पड़ी हैं। वहीं गांव-गांव घूमकर छोटे व्यापारी सीधे किसानों से धान खरीद रहे हैं। किसान बताते हैं कि व्यापारी नकद भुगतान का लालच देकर उन्हें कम दाम पर उपज बेचने को मजबूर करते हैं। बीकेटी, माल, मलिहाबाद और गोसाईगंज क्षेत्र में धान के ट्रक हर दिन बाहर के जिलों, बाराबंकी, रायबरेली, और यहां तक कि बिहार तक भेजे जा रहे हैं। कृषि विभाग के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि “धान खरीद केंद्रों की तैयारी देर से पूरी हुई है, जिसका फायदा बिचौलिए उठा रहे हैं।”
भौली गांव के किसान धीरेंद्र प्रताप सिंह बताते हैं,हमारा धान गोदाम में रखने की जगह नहीं है। सरकारी खरीद शुरू नहीं हुई, इसलिए मजबूरी में 1700 रुपये क्विंटल में ही बिचौलियों को बेचना पड़ा। इसी तरह, देवरी रुखारा के मकरंद सिंह यादव कहते हैं,सत्यापन और ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया इतनी जटिल है कि आधे किसानों को समझ ही नहीं आता कि आवेदन कैसे करें। इसलिए नकद देने वाले व्यापारी को बेचना ही आसान लगता है। कृषि विशेषज्ञ सत्येंद्र कुमार सिंह के अनुसार, किसानों को खरीफ के बाद रबी की फसल के लिए बीज, खाद, और कीटनाशक की तत्काल आवश्यकता होती है। सरकारी खरीद में देरी के कारण उन्हें मजबूरी में औने-पौने दाम पर धान बेचना पड़ता है। धान की लागत 2000 रुपये प्रति क्विंटल तक आती है, जबकि किसान 1600 रुपये में बेच रहे हैं, यानी प्रति क्विंटल 400 रुपये का नुकसान।”
धान की खरीद कम होने से सिर्फ किसान ही नहीं, बल्कि राइस मिलर भी संकट में हैं। डाली गंज के राइस मिलर घनश्याम अग्रवाल कहते हैं, पहले लेवी सिस्टम से सरकारी खरीद के साथ हम मिलर्स को भी पर्याप्त धान मिल जाता था। अब खरीद देरी से शुरू होती है तो हमको साल भर धान की कमी पड़ जाती है। चिनहट के राजेंद्र सिंह, जो एक पुरानी राइस मिल चलाते हैं, बताते हैं कि मिल चलाने में हर महीने 4 से 5 लाख रुपये खर्च होते हैं। अगर सरकारी खरीद जल्द शुरू न हुई तो कुटाई बंद करनी पड़ेगी। इससे मजदूरों की रोजी-रोटी भी प्रभावित होगी।”
धान खरीद की नोडल अधिकारी एवं एडीएम (नागरिक आपूर्ति) ज्योति गौतम का कहना है कि देरी तकनीकी कारणों से हुई है, पर इस बार किसान हित में कई बदलाव किए गए हैं। एक नवंबर से लखनऊ जिले में 30 केंद्रों पर खरीद शुरू की जाएगी। इस बार स्थानीय राइस मिलर्स को प्राथमिकता दी जाएगी ताकि खरीदा गया धान जल्द संसाधित हो सके और किसानों को भुगतान में देरी न हो। उन्होंने बताया कि जिले में 150 से अधिक खरीद केंद्रों का लक्ष्य रखा गया है, जिन्हें क्रमवार खोला जाएगा। विभाग ने लक्ष्य निर्धारित किया है कि किसानों को पंजीकरण के सात दिन के भीतर भुगतान सुनिश्चित कराया जाए।
भले ही प्रशासन खरीद केंद्र खोलने की बात कर रहा है, लेकिन जमीनी हालात अब भी पुराने हैं। पिछले साल की तरह इस बार भी कई केंद्रों पर तोले और नमी मापक यंत्र (Moisture Meter) नहीं पहुंचे हैं। इसके चलते किसानों की उपज नमी के बहाने अस्वीकृत कर दी जाती है। इसके अलावा, कई स्थानों पर पंजीकरण सर्वर की तकनीकी समस्या भी किसानों के धैर्य की परीक्षा ले रही है।
किसान संगठनों का कहना है कि जब तक सभी केंद्रों पर खरीद शुरू नहीं होती, तब तक “बिचौलिया मंडी” सक्रिय रहेगा। भारतीय किसान यूनियन (भानु गुट) के जिला अध्यक्ष रामनरेश यादव ने कहा कि सरकार को चाहिए कि खरीद तुरंत शुरू करे, और बिचौलियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो। नहीं तो किसानों का धान फिर औने-पौने दामों में बिक जाएगा और सरकार के MSP का कोई मतलब नहीं बचेगा।