UP BJP New President : पंकज चौधरी को यूपी भाजपा की कमान मिली है। अभी वह केंद्र में मंत्री हैं और कुर्मी समाज से आते हैं। चौधरी से पहले उनकी जाति के तीन नेता यूपी भाजपा अध्यक्ष बन चुके हैं।
UP BJP New President : उत्तर प्रदेश में भाजपा ने अपना अध्यक्ष चुन लिया है। पंकज चौधरी को कमान मिली है। चौधरी राज्य के बड़े नेता हैं, अभी केंद्र सरकार में मंत्री हैं और कुर्मी जाति से आते हैं। जाति का जिक्र इसलिए, क्योंकि फैसले के पीछे एक फैक्टर यह भी काम करता है। पंकज चौधरी को भी अध्यक्ष बनाए जाने के पीछे एक फैक्टर जाति का है।
2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को कुर्मी-कोयरी मतदाताओं ने बड़ा झटका दिया है। 2019 के लोकसभा चुनाव की तुलना में एनडीए को इस समुदाय से मिले मतों में भारी गिरावट आई है। सीएसडीएस-लोकनीति के चुनाव बाद किए गए सर्वे का आंकड़ों में यह गिरावट करीब 13 फीसदी बताई गई है। एनडीए को मिला अन्य ओबीसी मतदाताओं का वोट प्रतिशत भी गिरा है।
2024 के चुनाव परिणामों का विश्लेषण करने पर बीजेपी को पता चला कि कुर्मियों के साथ नहीं देने से वाराणसी जैसी सीट में प्रधानमंत्री की जीत का अंतर कम रह गया था। प्रतापगढ़, प्रयागराज, कौशांबी सहित कई जिलों में यही हाल रहा। फूलपुर में बीजेपी के प्रवीण पटेल किसी तरह सांसदी तो बचा ले गए, लेकिन खुद के विधानसभा क्षेत्र में हार गए थे। ऐसी स्थिति में पार्टी को कुर्मी मतदाताओं को किसी भी हाल में साधना जरूरी लग रहा है।
यूपी में भाजपा ने ब्राह्मण के बाद सबसे ज्यादा अध्यक्ष कुर्मी जाति के नेताओं को ही बनाया है। चौधरी से पहले उनकी जाति के तीन नेता यूपी भाजपा अध्यक्ष बन चुके हैं। इसकी वजह यह है कि यूपी में ओबीसी वोट बैंक के लिहाज से यादवों के बाद सबसे ज्यादा महत्व कुर्मियों का ही है। यादवों को समाजवादी पार्टी का परंपरागत वोट बैंक माना जाता रहा है। इसलिए कुर्मी मतदाताओं पर भाजपा की नजर शुरू से रही है। राज्य में कुर्मियों की आबादी करीब आठ फीसदी है।
उत्तर प्रदेश में 2026 में पंचायत चुनाव और 2027 में विधानसभा चुनाव होने हैं। इन चुनावों में कुर्मी-कोयरी व अन्य ओबीसी मतदाताओं को रिझाना भाजपा के लिए बहुत जरूरी है।
2017 में 14 साल के वनवास के बाद भारी बहुमत से बीजेपी उत्तर प्रदेश की सत्ता में आई थी तो इसमें ओबीसी मतदाताओं का बड़ा रोल था। तब बीजेपी अध्यक्ष (केशव प्रसाद मौर्य) भी ओबीसी समुदाय से ही था।
अखिलेश यादव ने पीडीए के रूप में नए सामाजिक समीकरण का नारा दिया है। 2024 के लोकसभा चुनाव में उनका प्रदर्शन काफी अच्छा रहा। इसके बाद उन्होंने यह नारा और मजबूत किया है। भाजपा के लिए इसकी काट खोजना भी जरूरी है। कुर्मी प्रदेश अध्यक्ष की तैनाती इस दिशा में भी एक कदम माना जा रहा है।
यूपी बीजेपी के नए अध्यक्ष पंकज चौधरी का कुर्मी होना ही बतौर पार्टी मुखिया उनके लिए बड़ी परेशानी का सबब बन सकता है। कुर्मी-ओबीसी मतदाताओं को साधना, पार्टी के अंदर जातीय संतुलन को साधते हुए मतभेद खत्म करना, अखिलेश का पीडीए फार्मूला कमजोर करना...। उन्हें कई मोर्चों पर एक साथ जूझना होगा।
1980 से 2025 तक उत्तर प्रदेश में भाजपा की कमान अगड़ी जातियों, खास कर ब्राह्मणों के हाथों में रही। सबसे ज्यादा समय ब्राह्मण अध्यक्ष रहे। कलराज मिश्रा लगातार तीन बार भाजपा अध्यक्ष बनाए गए। 2016 से 2025 के बीच ब्राह्मण को एक ही मौका मिला। इस बीच मौर्या, कुर्मी और जाट नेताओं को कमान दी गई।
बीते कुछ सालों में पार्टी में ओबीसी नेताओं को महत्व मिला और ओबीसी मतदाताओं ने भी पार्टी पर अपना भरोसा बढ़ाया है। 2014 के लोकसभा चुनाव में सर्वाधिक सीटें जीतने और 2017 में बहुमत के साथ उत्तर प्रदेश की सत्ता में वापसी के पीछे इसका रोल भी अहम रहा था। 2019 लोकसभा चुनाव में भी स्थिति ठीक रही, लेकिन 2024 में खराब हो गई।
यूपी में बीजेपी अध्यक्ष की कुर्सी पर लोध, मौर्या, राजपूत, कुर्मी, भूमिहार और जाट बैठ चुके हैं।