Meerut News: दिल्ली ब्लास्ट में मेरठ के मोहसिन की मौत के बाद उसका शव घर पहुंचा, लेकिन मां अंतिम दर्शन तक नहीं कर सकीं। बहू सुल्ताना शव दिल्ली ले गई, जिससे मां का दिल टूट गया। परिवार अब इंसाफ की मांग कर रहा है।
Mohsin delhi blast mother grief in Meerut: मेरठ की संजीदा का दर्द उस वक्त शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता, जब उन्होंने अपने 32 वर्षीय बेटे मोहसिन की मौत की खबर सुनी। मोहसिन की दिल्ली ब्लास्ट में मौत हो गई थी, लेकिन उससे भी बड़ा घाव मां को तब लगा जब बेटे की लाश उनके सामने से गुजर गई और उन्हें अंतिम दर्शन का हक तक नहीं मिला।
संजीदा रोती हुई कहती रहीं, “जिस बेटे को अपने हाथों से पाला, बड़ा किया, उसका चेहरा आखिरी बार देखना भी नसीब नहीं हुआ। घर की देहली से मेरे बेटे की लाश चली गई।” उनकी आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। बुजुर्ग मां की यही वेदना थी कि बहू ने बेटे की मिट्टी में दफनाने का हक भी उनसे छीन लिया।
संजीदा ने अपने दर्द में कहा, “धमाके ने मेरा बेटा छीन लिया, लेकिन बहू ने वह अधिकार भी छीन लिया जो एक मां को अपने बेटे पर होता है। कम से कम उसे अपने वतन, अपनी मिट्टी में तो सुला देती।” उन्होंने बताया कि मोहसिन की मौत के बाद उसका शव जब मेरठ पहुंचा, तो उन्होंने बहू से अनुरोध किया कि बेटे को यहीं दफनाया जाए, लेकिन सुल्ताना ने मना कर दिया। मां ने कहा, “मैंने कहा पैसे ले लेना, पर मेरे बेटे की मिट्टी मेरठ की होनी चाहिए, पर उसने नहीं माना।”
मोहसिन के पिता रफीक का रो-रोकर बुरा हाल है। वे कहते हैं, “कहने को नौ बेटे हैं, लेकिन किस्मत ऐसी कि दो बेटों को उनकी पत्नियां अपने मायके ले गईं। मोहसिन मुझे सबसे प्यारा था। अब तो बस उसकी यादें हैं। जिस बच्चे को अपने हाथों से पाला, उसका दफन भी नहीं कर सका।” उन्होंने बताया कि 15 दिन पहले ही बेटे से बात हुई थी। सबकुछ सामान्य था, किसी को अंदाजा भी नहीं था कि अगली मुलाकात एक खामोश लाश से होगी।
मोहसिन के चाचा सलीम ने बताया, “संजीदा रोती रहती है कि उसका बेटा चला गया और उसकी लाश भी उसे नसीब नहीं हुई। सारे परिवार की रजामंदी थी कि उसे मेरठ में दफनाया जाए, पर बहू ने सबकी मिन्नतें ठुकरा दीं।” उन्होंने बताया कि बहू ने किराए के मकान में जाकर लाश रखवा दी, जबकि उसका खुद का बड़ा घर खाली था। “घर की देहली से लाश को उठाकर ले गईं, हमें तो यह भी समझ नहीं आया कि आखिर वह चाहती क्या थी।”
परिवार का गुस्सा आतंकियों पर फूट पड़ा। मोहसिन के चाचा सलीम ने कहा, “दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए। ये लोग इंसानियत के दुश्मन हैं। बार-बार बेगुनाहों की जान जाती है और दोषी बच निकलते हैं। हमें न्याय चाहिए।” उन्होंने कहा कि उनका परिवार टूट चुका है, लेकिन वे चाहते हैं कि ऐसी घटनाएं फिर किसी के साथ न हों।
मोहसिन मेरठ के न्यू इस्लामनगर गली नंबर-28 का रहने वाला था। करीब दो साल पहले वह रोजी-रोटी की तलाश में दिल्ली चला गया था और ई-रिक्शा चलाने लगा था। उसकी पत्नी सुल्ताना और दो छोटे बच्चे, 10 साल की हिफजा और 8 साल का आहद भी वहीं रहते थे। सोमवार शाम मोहसिन लाल किले की ओर सवारियां लेकर गया था, तभी ब्लास्ट हुआ। उसी हादसे में उसकी मौत हो गई। मंगलवार सुबह जब शव मेरठ पहुंचा, तो घर में कोहराम मच गया।
शव मेरठ पहुंचने के तीन घंटे बाद बहू सुल्ताना वहां पहुंची। उसने मेरठ में दफनाने से इनकार कर दिया और शव दिल्ली ले जाने की जिद पर अड़ गई। सास संजीदा ने उसके पैर पकड़ लिए, लेकिन सुल्ताना भी रोते हुए बोली कि “मेरे शौहर का दफन दिल्ली में होगा।”
करीब छह घंटे तक विवाद चलता रहा, फिर परिवार ने भारी मन से दिल्ली में दफनाने पर सहमति दी। पर मोहसिन की मां का दिल आज भी वहीं अटका है, जहां उन्होंने बेटे के आखिरी दर्शन की आस लगाई थी।