Maharashtra local body elections 2026: अगले महीने 29 नगर निकायों में होने वाले चुनावों से पहले सामने आये आंकड़ों से साफ पता चलता है कि महाराष्ट्र की राजनीति में 'शहरों का किंग' सिर्फ भाजपा है।
महाराष्ट्र में नगर निगम चुनाव का बिगुल बजने के बाद राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है। मुंबई समेत 29 नगर निकायों के लिए वोटिंग 15 जनवरी को होगी और वोटों की गिनती 16 जनवरी को की जाएगी। इस बीच जो आंकड़े सामने आये हैं, उससे साफ पता चलता है कि महाराष्ट्र की शहरी राजनीति की तस्वीर तेजी से बदली है। हालांकि सभी दल अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहें हैं।
15 जनवरी 2026 को होने वाले 29 नगर निगमों के चुनावों से पहले जो चुनावी आंकड़े सामने आये है, वह विपक्षी दलों की नींद उड़ाने वाला है। इसके अनुसार, मुंबई, पुणे और नागपुर जैसे बड़े शहरो में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का ग्राफ जिस तेजी से बढ़ा है, उसके सामने कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी सभी पिछड़ते नजर आ रहे हैं।
पिछले दो महानगरपालिका (नगर निगम) चुनावों के आंकड़ों की तुलना करें तो भाजपा की शहरी पकड़ लगातार मजबूत होती दिखती है। फरवरी 2015 से दिसंबर 2018 के बीच हुए 26 नगर निगमों के चुनावों में भाजपा को करीब 1.20 करोड़ वोट मिले, जो कुल वोट शेयर का 31.30 प्रतिशत रहा। इससे पहले के महानगरपालिका चुनाव यानी फरवरी 2009 से दिसंबर 2013 के बीच यही आंकड़ा सिर्फ 0.24 करोड़ वोट और 11.59 प्रतिशत वोट शेयर तक सीमित था। यह 20% की छलांग बताती है कि शहरों में मतदाता अब 'कमल' को अपनी पहली पसंद बना चुका है।
दिलचस्प बात यह है कि हालिया विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 288 में से 132 सीटें जीतीं, जबकि उसका कुल वोट शेयर 26.96 प्रतिशत रहा। जो नगर निगम चुनावों के पिछले वोट शेयर (31.30%) से काफी कम हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि नगर निगम चुनाव पूरी तरह से शहरी क्षेत्रों में होते हैं और शहर बीजेपी का 'कोर बेस' बन चुके हैं। शहरों में भाजपा की संगठनात्मक पकड़ ज्यादा मजबूत और वोट बैंक ज्यादा एकजुट है।
शहरों में बीजेपी की मजबूती के तीन प्रमुख कारण है। जिसमें बूथ लेवल मैनेजमेंट बहुत अहम है। बीजेपी ने 2014 के बाद से जमीनी स्तर पर जबरदस्त काम किया है। इसके साथ ही केंद्र और राज्य में सत्ता होने के कारण स्थानीय विकास कार्यों पर पार्टी की मजबूत पकड़ रही है। हाइपरलोकल रणनीति भी भाजपा की हिट साबित रही है। विधानसभा में जहां राज्यव्यापी नैरेटिव चलता है, वहीं निकाय चुनावों में बीजेपी हर बूथ-वार्ड को मजबूत करने पर फोकस करती है।
इसके उलट, महाराष्ट्र के शहरी इलाकों में कभी मजबूत मानी जाने वाली पार्टियां जमीन बचाने के लिए जूझती नजर आ रही हैं। कांग्रेस ने वोटों की कुल संख्या में हल्का सुधार जरूर किया, लेकिन उसका वोट शेयर 20.45 प्रतिशत (0.42 करोड़ वोट) से घटकर 15.53 प्रतिशत पर आ गया। इसका सीधा मतलब है कि भाजपा की बढ़त के सामने कांग्रेस की रफ्तार थम सी गई।
वहीं, अविभाजित शिवसेना, जो कभी मुंबई और कई बड़े शहरों में सबसे ताकतवर मानी जाती थी, उसके वोट भी बढ़े लेकिन असर नहीं दिखा। वोट शेयर 14.31 प्रतिशत (0.30 करोड़ वोट) से बढ़कर 18.49 प्रतिशत (0.71 करोड़ वोट) जरूर हुआ, मगर यह भाजपा को टक्कर देने के लिए नाकाफी साबित हुआ। अविभाजित एनसीपी की हालत भी कुछ ऐसी ही रही, जहां वोटों की संख्या बढ़ी लेकिन वोट शेयर 16.39 प्रतिशत (0.34 करोड़ वोट) से घटकर 11.05 प्रतिशत (0.42 करोड़ वोट) रह गया।
दिलचस्प बात यह है कि शिवसेना और एनसीपी दोनों ही अब दो गुटों में बंट चुकी है और उनके एक-एक गुट सत्तारूढ़ गठबंधन यानी भाजपा के साथ खड़े हैं। इससे राज्य का सियासी मिजाज और बदल गया है। साथ ही विपक्ष के बिखराव का फायदा भी बीजेपी को आगामी चुनावों में मिल सकता है।