मुंबई

सौतेले पिता ने 16 साल की बेटी का पांच बार किया यौन शोषण, बॉम्बे हाईकोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला

Bombay High Court: ठाणे में एक पिता ने अपनी 16 साल की सौतेली बेटी से पांच बार रेप किया। आरोपी ने जब छठी बार फिर से यौन संबंध बनाने का बेटी पर दबाव डाला तो उसने अपनी मां को पूरी बात बताई। इसके बाद मुकदमा दर्ज हुआ।

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Dec 13, 2025
बॉम्बे हाईकोर्ट ने सौतेली बेटी से रेप के आरोपी पिता की जमानत रद की।

Bombay High Court: बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक बेहद अहम और संवेदनशील मामले में कहा है कि किसी महिला का अपने पति से अलग होना साधारण वैवाहिक विवाद नहीं माना जा सकता। वो भी तब, जब उसने पति पर अपनी नाबालिग बेटी के साथ बलात्कार का आरोप लगाया हो। इस टिप्पणी के साथ बॉम्बे हाईकोर्ट ने ठाणे की एक अदालत द्वारा अभियुक्त को दी गई जमानत रद कर दी। कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को कानून और तथ्यों की गलत समझ पर आधारित बताया। यह मामला एक 47 साल के व्यक्ति पर अपनी सौतेली और नाबालिग बेटी के साथ रेप से जुड़ा है। पीड़िता की मां ने साल 2014 में आरोपी से दूसरी शादी की थी। एफआईआर के मुताबिक अप्रैल 2023 से लेकर 2025 तक आरोपी ने सौतेली बेटी से पांच बार बलात्कार किया। अप्रैल 2025 में छठी बार यौन शोषण की कोशिश के बाद लड़की ने साहस जुटाकर अपनी मां को पूरी घटना बताई। इसके तुरंत बाद मां अपनी बेटी को लेकर मायके चली गई और पुलिस में शिकायत दर्ज कराई।

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बॉम्बे हाई कोर्ट ने क्यों रद कर दी आरोपी की जमानत?

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, मुंबई उच्च न्यायालय में जस्टिस नीला गोखले की एकल पीठ ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने जमानत आदेश जारी करते समय बेहद सतही आधार अपनाया। अदालत केवल इस तर्क पर निर्भर दिखी कि आरोपी और उसकी पत्नी के बीच मतभेद थे, इसलिए इस विवाद के चलते झूठा मामला दर्ज कराया गया। लेकिन हाई कोर्ट ने साफ कहा कि एफआईआर की कॉपी पढ़ने पर मामला बिल्कुल अलग और गंभीर रूप से सामने आता है। कोर्ट ने कहा कि यदि किसी महिला को पता चलता है कि उसका पति उसकी नाबालिग बेटी का यौन शोषण कर रहा है तो उसका उससे दूर हो जाना पूरी तरह स्वाभाविक और मानवीय प्रतिक्रिया है। इसे कभी भी सामान्य वैवाहिक विवाद के रूप में नहीं देखा जा सकता।

ठाणे की अदालत ने किस आधार पर दी थी जमानत?

इस मामले में आरोपी ने ठाणे की ट्रायल कोर्ट में जमानत याचिका लगाई थी। इसके बाद जून 2025 में आरोपी को जमानत मिल गई। अपनी याचिका में अभियुक्त ने दावा किया था कि उसकी पत्नी विवाद के चलते उसपर झूठा आरोप लगा रही है और घटना की शिकायत में देरी मामले को संदिग्ध बनाती है। ट्रायल कोर्ट ने इन दलीलों को उचित मानते हुए जमानत दे दी। हाई कोर्ट ने इस वजह को खारिज करते हुए कहा कि देरी को संदिग्ध मानना गलत है। कई यौन उत्पीड़न मामलों में पीड़ित बच्चे डर, शर्म और दबाव के कारण तुरंत खुलासा नहीं कर पाते। इस बच्ची ने यौन उत्पीड़न कई बार चुपचाप सहा है। लेकिन जब हालात असहनीय हो गए तो उसने मां को जानकारी दी। इसलिए देरी यहां पूरी तरह प्राकृतिक है, न कि शिकायत को झूठा साबित करने का आधार।

पीड़िता ने हाई कोर्ट में जमानत रद करने की अपील की

16 साल की पीड़िता ने अपनी मां के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर कर आरोपी की जमानत रद करने की मांग की थी। याचिका में कहा गया था कि इतने गंभीर आरोपों वाले मामले में सिर्फ पति-पत्नी के मतभेद और शिकायत में देरी के आधार पर जमानत देना न्यायसंगत नहीं है। राज्य सरकार ने भी पीड़िता की दलीलों का समर्थन किया। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि अपराध की प्रकृति बेहद गंभीर और घृणित है। ऐसे मामलों में आरोपी को खुला छोड़ना ट्रायल को प्रभावित कर सकता है। पीड़िता और उसका परिवार डर और दबाव महसूस कर सकता है, जिससे वह गवाही देने में हिचकिचा सकते हैं।

आरोपी की तत्काल गिरफ्तारी के निर्देश

कोर्ट ने कहा कि न्याय प्रणाली की पारदर्शिता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आरोपी की गिरफ्तारी आवश्यक है। इसके अलावा कोर्ट ने यह भी नोट किया कि नोटिस भेजे जाने के बावजूद आरोपी या उसके वकील कोर्ट में उपस्थित नहीं हुए। यह भी उनके खिलाफ एक नकारात्मक संकेत था। अंत में हाई कोर्ट ने कहा कि ठाणे ट्रायल कोर्ट का आदेश कानून की गलत व्याख्या पर आधारित था और उसने एफआईआर की गंभीरता पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया। इसलिए जमानत आदेश रद किया जाता है और आरोपी को तत्काल हिरासत में लेने का निर्देश दिया जाता है। हाई कोर्ट के इस फैसले ने स्पष्ट किया कि नाबालिग से यौन अपराध को किसी भी हालत में वैवाहिक विवाद का हिस्सा मानना कानून के साथ अन्याय होगा।

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