Delhi High Court: हाईकोर्ट ने कहा कि ‘छल और धोखे’ से प्राप्त सहमति को वैध नहीं माना जा सकता। जब कोई व्यक्ति वैवाहिक स्थिति को छिपाकर झूठ बोलता है और किसी महिला को यौन संबंधों के लिए राजी करता है तो यह सहमति दूषित मानी जाएगी।
Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (BSF) के एक जवान की बर्खास्तगी को बरकरार रखते हुए कहा है कि शादी का झूठा वादा करके अपने ही विभाग की एक विधवा महिला कर्मचारी को शारीरिक संबंध बनाने के लिए बहकाना वर्दीधारी बलों से अपेक्षित अनुशासन और सम्मान का घोर उल्लंघन है। अदालत ने स्पष्ट किया कि ऐसा अपराध सिर्फ महिला के सम्मान को ठेस नहीं पहुंचाता बल्कि फोर्स की साख पर भी गंभीर चोट करता है।
मामला साल 2019 का है, जब बीएसएफ की एक महिला कॉन्स्टेबल ने अपने ही विभाग के एक जवान पर गंभीर आरोप लगाए। पहले से विधवा महिला BSF जवान ने अपनी शिकायत में बताया कि उसके सहकर्मी BSF जवान ने नकली मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाकर यह विश्वास दिलाया कि उसकी पत्नी की मौत हो चुकी है और वह विधुर है। इसके बाद उसने महिला से शादी का झूठा वादा कर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए। महिला ने आगे आरोप लगाया कि संबंध बनने के बाद आरोपी जवान ने उसे ब्लैकमेल करना शुरू किया। उसने तस्वीरों के साथ छेड़छाड़ करने की धमकी दी और मानसिक उत्पीड़न किया।
शिकायत की जांच के बाद मामला जनरल सिक्योरिटी फोर्स कोर्ट (GSFC) में पहुंचा। अदालत ने जवान को दुष्कर्म और जालसाजी का दोषी करार देते हुए पहले दो साल की सजा और नौकरी से बर्खास्तगी सुनाई थी। हालांकि बाद में उसकी कैद की अवधि बढ़ाकर 10 साल कर दी गई। जवान ने इस फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी। उसका कहना था कि महिला से उसके संबंध आपसी सहमति से बने थे और मुकदमा प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ चलाया गया। उसने यह भी दलील दी कि सजा में बढ़ोतरी मनमाने तरीके से की गई।
केंद्र की ओर से पेश वकीलों ने जवान की याचिका का विरोध किया। सरकार ने कहा कि जीएसएफसी ने उसे पूरा मौका दिया था और महिला की सहमति धोखे से प्राप्त की गई थी। इसलिए यह तर्क कि संबंध आपसी सहमति से बने, तथ्यात्मक रूप से गलत है। जस्टिस सी. हरि शंकर और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने यह फैसला 25 जुलाई को सुनाया था, जिसकी कॉपी हाल में सार्वजनिक हुई। अदालत ने कहा कि बलात्कार और जालसाजी के दोषी पाए गए जवान को मिली बर्खास्तगी की सजा उसके आचरण के मुताबिक बिल्कुल उचित है।
हाईकोर्ट ने जवान की सभी दलीलों को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि ‘छल और धोखे’ से प्राप्त सहमति को वैध नहीं माना जा सकता। जब कोई व्यक्ति अपनी वैवाहिक स्थिति को छिपाकर झूठ बोलता है और उसके आधार पर महिला को शारीरिक संबंध के लिए राजी करता है तो यह सहमति दूषित मानी जाएगी। खंडपीठ ने कहा, “किसी मृत बल सदस्य की विधवा को झूठे वादे और जालसाजी से बहकाना बेहद निंदनीय है। यह कृत्य वर्दीधारी सेवाओं से अपेक्षित अनुशासन, निष्ठा और सम्मान के मानकों के प्रतिकूल है। इसलिए सजा की कठोरता में हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है।”
अदालत ने स्पष्ट किया कि जीएसएफसी का फैसला ठोस सबूतों पर आधारित है। दस्तावेजी रिकॉर्ड, गवाहों की मौखिक गवाही और स्वयं आरोपी की स्वीकारोक्ति से यह स्थापित हो गया कि महिला की सहमति छलपूर्वक ली गई थी। इसलिए हाईकोर्ट को निचली अदालत के निष्कर्ष पर कोई संदेह नहीं है। कानूनी जानकारों का मानना है कि यह फैसला न केवल वर्दीधारी बलों के अनुशासन पर बल देता है, बल्कि यह संदेश भी देता है कि शादी का झूठा वादा करके बनाए गए संबंध सहमति की श्रेणी में नहीं आते। अदालत का यह फैसला भविष्य में इस तरह के मामलों के लिए एक अहम नजीर साबित हो सकता है।