Delhi High Court: कोर्ट ने रेप पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट में उसके शरीर पर कई चोटों के निशान थे, जो विरोध और संघर्ष को दर्शाते हैं। ये निशान इस बात का स्पष्ट प्रमाण हैं कि उसने अपने साथ हुए यौन व्यवहार और हिंसा की सहमति नहीं दी थी।
Delhi High Court: दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महिला कर्मचारी से बलात्कार और उसकी हत्या के एक जघन्य मामले में आरोपी की जमानत याचिका खारिज करते हुए एक अत्यंत महत्वपूर्ण और कड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने इस घटना को "मानवीय क्रूरता का एक विचलित करने वाला मामला" बताया और कहा कि निर्भया कांड के बाद भी ऐसे अपराधों का जारी रहना समाज की अंतरात्मा को झकझोर रहा है। कोर्ट ने कहा कि पीड़िता दर्द से तड़पती रही, लेकिन हवस मिटने तक आरोपी का दिल नहीं पसीजा। इसके चलते उसकी मौत हो गई। यह मामला दिल्ली के एक अस्पताल से जुड़ा है, जहां एक महिला कर्मचारी को क्रूर शारीरिक और यौन हिंसा का शिकार बनाया गया।
कोर्ट ने कहा "यह मानवीय क्रूरता का एक विचलित करने वाला मामला है। एक युवती क्रूर शारीरिक और यौन हमले का शिकार हुई। इस हमले में वह दर्द से तड़पती रही, गंभीर रूप से घायल हो गई, उसका चेहरा क्षत-विक्षत हो गया और उसके शरीर पर हिंसा के स्पष्ट निशान थे। दिल्ली के एक अस्पताल के गेट के बाहर हुए अमानवीय अपराध के बोझ तले उसकी आत्मा कुचल गई।" कोर्ट ने आगे कहा "हालांकि पीड़िता को अस्पताल ले जाया गया था, लेकिन वह नाज़ुक हालत में भी अपने साथ हुई दरिंदगी को संक्षेप में बताने में कामयाब रही। चोटों के कारण उसकी मौत हो गई।"
दिल्ली हाईकोर्ट में मामले पर सुनवाई करते हुए जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने कहा कि पीड़िता पर इतना घातक हमला किया गया कि वह गंभीर रूप से घायल हो गई। उसका चेहरा बुरी तरह क्षत-विक्षत हो गया और उसके शरीर पर हिंसा के स्पष्ट निशान थे। यह दिल दहला देने वाला अपराध अस्पताल के एक सुनसान हिस्से में हुआ। कोर्ट ने कहा कि पीड़िता अस्पताल में बतौर आया तैनात पीड़िता के साथ एसी प्लांट रूम में यौन शोषण और शारीरिक हिंसा की घटना हुई। उसके शरीर पर मिले चोट के निशानों से यह स्पष्ट होता है कि पीड़िता ने अपने साथ हुए यौन व्यवहार की सहमति नहीं दी थी। इसलिए इस मामले में आवेदक के सभी तर्क निराधार मानते हुए जमानत याचिका को खारिज किया जाता है।
आरोपी ने जमानत के लिए यह दलील दी कि वह पीड़िता को जानता था और पीड़िता ने ही उसे कथित तौर पर अस्पताल बुलाया था। उसका तर्क था कि यह जबरन हमले का मामला नहीं हो सकता। हालांकि, जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने इस तर्क को पूरी तरह से खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि किसी पूर्व संबंध या जान-पहचान को सहमति का प्रमाण नहीं माना जा सकता है और न ही यह बाद में किए गए किसी भी हिंसक कृत्य को जायज ठहरा सकता है। कोर्ट ने पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि उसके शरीर पर कई चोटों के निशान थे, जो विरोध और संघर्ष को दर्शाते हैं। ये निशान इस बात का स्पष्ट प्रमाण हैं कि उसने अपने साथ हुई क्रूरता के लिए सहमति नहीं दी थी।
जस्टिस शर्मा ने कहा कि निर्भया मामले के बाद देशभर में जागरूकता और कानूनी सुधारों के बावजूद, क्रूर यौन हिंसा की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि केवल कानून ऐसे अपराधों को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं, जब तक कि उनका कड़ाई से पालन न किया जाए और अपराधों की रोकथाम के लिए प्रभावी कदम न उठाए जाएं। कोर्ट ने यह भी कहा कि यह मामला दिखाता है कि अस्पतालों में कार्यरत महिला कर्मचारी भी परिसर के भीतर यौन हिंसा की चपेट में हैं।
इस दुखद घटना के मद्देनजर, दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार को एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है। कोर्ट ने कहा कि अस्पताल भवनों के उन क्षेत्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए तत्काल कदम उठाए जाएं जो सुनसान या एकांत में हैं, और जिनका दुरुपयोग ऐसे अपराधों को अंजाम देने के लिए किया जा सकता है। यह आदेश विशेष रूप से महिला कर्मचारियों की सुरक्षा को लेकर एक चेतावनी है और सार्वजनिक स्थानों, विशेषकर अस्पतालों जैसे संवेदनशील परिसरों में सुरक्षा उपायों की आवश्यकता पर बल देता है। कोर्ट ने इस आदेश की एक प्रति दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव, विधि विभाग और अन्य संबंधित अधिकारियों को भेजने का भी निर्देश दिया है।