IMD New Prediction: ला नीना वास्तव में एल नीनो-दक्षिणी दोलन (ENSO) का ठंडा चरण है। इसमें भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर की सतह का तापमान सामान्य से नीचे चला जाता है। यह ठंडक वैश्विक वायुमंडलीय परिसंचरण को बदल देती है।
IMD New Prediction: दिल्ली, गुड़गांव, नोएडा, गाज़ियाबाद और फ़रीदाबाद समेत पूरे उत्तरी भारत में इस बार की सर्दी बेहद कठिन हो सकती है। मौसम वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 2025-26 में वैश्विक जलवायु घटना ला नीना भारत में दशकों की सबसे सर्द सर्दी लेकर आ सकती है। अमेरिकी जलवायु पूर्वानुमान केंद्र (CPC) और भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) दोनों ने चेतावनी दी है कि आने वाले महीनों में प्रशांत महासागर के ठंडा होने के संकेत लगातार मज़बूत हो रहे हैं।
ला नीना वास्तव में एल नीनो-दक्षिणी दोलन (ENSO) का ठंडा चरण है। इसमें भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर की सतह का तापमान सामान्य से नीचे चला जाता है। यह ठंडक वैश्विक वायुमंडलीय परिसंचरण को बदल देती है, जिससे पूरी दुनिया में मौसम का पैटर्न प्रभावित होता है। भारत में इसके असर के तहत उत्तरी हवाएं और तेज़ हो जाती हैं, जिसके चलते कड़ाके की ठंड, लंबी शीत लहरें और हिमालयी क्षेत्र में भारी बर्फबारी हो सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि कमज़ोर ला नीना भी शीत लहरों को और तीव्र कर सकता है। इसका असर फसलों, स्वास्थ्य और ऊर्जा मांग तक पर पड़ सकता है।
11 सितंबर 2025 को अमेरिकी CPC ने ला नीना वॉच जारी करते हुए अनुमान लगाया कि अक्टूबर से दिसंबर के बीच ला नीना के बनने की 71% संभावना है। दिसंबर 2025 से फरवरी 2026 के बीच यह संभावना 54% तक बनी रहेगी। यह संकेत है कि वैश्विक जलवायु प्रणाली में बड़ा बदलाव हो सकता है। IMD ने भी अपने ताज़ा ENSO बुलेटिन में कहा कि वर्तमान में प्रशांत महासागर में तटस्थ स्थिति है, यानी न एल नीनो और न ला नीना सक्रिय है।
लेकिन मानसून मिशन क्लाइमेट फोरकास्ट सिस्टम (MM-CFS) और अन्य वैश्विक मॉडल बताते हैं कि मानसून के बाद के महीनों में ला नीना उभर सकता है। IMD के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने कहा, “हमारे मॉडल अक्टूबर-दिसंबर के बीच ला नीना के विकसित होने की संभावना 50% से ज़्यादा दिखा रहे हैं। आमतौर पर ला नीना भारत में ठंडी सर्दियों से जुड़ा होता है। हालांकि जलवायु परिवर्तन इसका कुछ असर कम कर सकता है, लेकिन यह सर्दी सामान्य से ज़्यादा ठंडी रहने के आसार हैं।”
2024 में IISER मोहाली और ब्राज़ील के राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान ने संयुक्त अध्ययन में पाया कि ला नीना के दौरान उत्तर भारत में शीत लहरें लंबी और अधिक तीव्र होती हैं। कारण यह कि ला नीना के समय एक विशेष चक्रवाती पैटर्न उच्च अक्षांशों से ठंडी हवाओं को भारत की ओर धकेल देता है। इसीलिए विशेषज्ञों का मानना है कि 2025-26 में दिल्ली-एनसीआर ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तरी भारत को भीषण ठंड झेलनी पड़ सकती है।
स्काईमेट वेदर के अध्यक्ष जीपी शर्मा ने TOI को बताया कि प्रशांत महासागर पहले से ही औसत से ठंडा है, हालांकि यह तीन अतिव्यापी तिमाहियों में जारी -0.5°C विसंगतियों की ला नीना सीमा को पार नहीं कर पाया है। 2024 के अंत में, नवंबर और जनवरी के बीच, परिस्थितियां तटस्थ होने से पहले, एक अल्पकालिक ला नीना प्रकरण दर्ज किया गया था। तकनीकी मानदंडों को पूरा किए बिना भी, चल रही ठंड वैश्विक जलवायु प्रणालियों को प्रभावित कर सकती है।
जीपी शर्मा ने आगे कहा "यदि ला नीना आता है तो अमेरिका पहले से ही शुष्क सर्दियों की तैयारी कर रहा है। भारत के लिए, प्रशांत महासागर के ठंडे पानी का मतलब आमतौर पर कठोर सर्दियां और उत्तर तथा हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी में वृद्धि होती है।" यह दृष्टिकोण अनिश्चितता को रेखांकित करता है, लेकिन स्थिति की गंभीरता को भी दर्शाता है। एक कमज़ोर या अल्पकालिक ला नीना भी भारत की सर्दियों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकता है।
अगर ला नीना पूरी तरह विकसित होता है तो मैदानी इलाकों में शीत लहरें लंबी चलेंगी। पाले से सरसों, सब्जियों और गेहूं जैसी फसलों को नुकसान हो सकता है हिमालय में बर्फबारी बढ़ेगी। जल स्रोतों के लिए फायदेमंद होगी, लेकिन परिवहन और पर्यटन पर असर पड़ेगा। ऊर्जा और स्वास्थ्य पर दबाव बढ़ेगा। लंबे समय तक ठंड रहने से हीटिंग उपकरणों की मांग बढ़ेगी और बुज़ुर्गों, बच्चों को बीमारियों का ख़तरा बढ़ेगा। विशेषज्ञ कहते हैं कि यह सर्दी “दो धार वाली तलवार” साबित हो सकती है। एक ओर ठंड गेहूं की पैदावार के लिए मददगार होगी, वहीं दूसरी ओर पाला और शीत लहरें किसानों और आम लोगों के लिए चुनौती बनेंगी।
स्काईमेट वेदर के अध्यक्ष जी.पी. शर्मा के मुताबिक, प्रशांत महासागर पहले ही ठंडा हो रहा है। भले ही यह तकनीकी रूप से अभी ला नीना की सीमा तक न पहुँचा हो, लेकिन इसके शुरुआती संकेत भारत में ठंडक बढ़ाने के लिए काफ़ी हैं। उन्होंने कहा, “कमज़ोर या अल्पकालिक ला नीना भी भारत की सर्दियों को बहुत प्रभावित कर सकता है।”
मौसम विभाग और विशेषज्ञ फिलहाल लोगों को आगाह कर रहे हैं कि आने वाले महीनों में सामान्य से लंबी और कड़ी सर्दी के लिए तैयार रहें। ऊर्जा, स्वास्थ्य सेवाओं और कृषि क्षेत्र को भी पहले से योजनाएं बनाने की ज़रूरत है ताकि ठंड का असर कम किया जा सके। कुल मिलाकर, दिल्ली-एनसीआर समेत पूरे उत्तर भारत को इस बार ऐसी सर्दी का सामना करना पड़ सकता है जो पिछले कई दशकों की तुलना में कहीं ज़्यादा ठंडी, लंबी और कठिन हो।