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मानसून की विदाई संग शुरू होगी कड़ाके की ठंड, राजस्‍थान से वापसी, IMD ने दिल्ली के लिए बताई तारीख

Monsoon: मौसम विभाग का कहना है कि इस बार मानसून की विदाई के साथ ला नीना एक्टिव हो जाएगा। इसका असर मौसम की चाल पर पड़ेगा और भारत में सर्दियां सामान्य से अधिक कड़ी हो सकती हैं।

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Monsoon departs from Rajasthan severe cold predicted amid heavy rain warning imd La Nina Forecast

प्रतीकात्मक तस्वीर।

Monsoon: मौसम विभाग ने मानसून की विदाई के साथ ठंड को लेकर बड़ी भविष्यवाणी की है। दुनियाभर के मौसम विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि वर्ष के अंत तक ला नीना (La Niña) की स्थिति विकसित हो सकती है। इसका असर मौसम की चाल पर पड़ेगा और भारत में सर्दियां सामान्य से अधिक कड़ी हो सकती हैं। अमेरिका की नेशनल वेदर सर्विस के क्लाइमेट प्रेडिक्शन सेंटर ने 11 सितंबर को बताया कि अक्टूबर से दिसंबर 2025 के बीच ला नीना बनने की संभावना 71% है। हालांकि दिसंबर 2025 से फरवरी 2026 के दौरान यह संभावना घटकर लगभग 54% रह जाती है, लेकिन फिलहाल ला नीना वॉच जारी है। ला नीना दरअसल प्रशांत महासागर के भूमध्यरेखीय हिस्से में समुद्र सतह का तापमान सामान्य से ठंडा होने की स्थिति है, जो वैश्विक मौसम प्रणाली को प्रभावित करती है। भारत में यह प्रायः कड़ाके की ठंड का कारण बनती है।

पहले जानिए कब कहां से विदा होगा मानसून?

मौसम विभाग की ताजा भविष्यवाणी के अनुसार, रविवार से पश्चिमी राजस्थान के कुछ हिस्सों में दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की वापसी शुरू हो गई है। इसकी सामान्य तौर पर आधिकारिक तिथि 17 सितंबर मानी जाती है, लेकिन इस बार यह तीन दिन पहले विदाई की ओर बढ़ गया है। मौसम विभाग (IMD) के अनुसार, प्रायद्वीपीय भारत से मॉनसून की पूरी तरह विदाई आमतौर पर 15 अक्टूबर तक पूरी हो जाती है, लेकिन इस बार मानसून अपने तय समय से पहले आ गया था, ऐसे में विदाई भी समय से पहले हो रही है। राजस्‍थान में इसका असर शुरू हो गया है, जबकि दिल्ली दिल्ली में मॉनसून की वापसी की तय तिथि 25 सितंबर है।

मानसून की सबसे जल्दी वापसी

द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट बताती है कि इस बार मॉनसून की वापसी 2015 के बाद सबसे जल्दी हुई है। 2015 में यह प्रक्रिया 4 सितंबर से शुरू हुई थी। पहले (1901-1940 के आधार पर) वापसी की सामान्य तारीख 1 सितंबर मानी जाती थी, लेकिन 2020 से इसे नए आंकड़ों (1971-2019) के आधार पर 17 सितंबर कर दिया गया है। दिल्ली से मॉनसून की विदाई सामान्य रूप से 25 सितंबर से शुरू होती है। हालांकि मॉनसून के जल्दी आने या जल्दी लौटने का उसकी कुल स्थिति से सीधा संबंध नहीं होता, लेकिन यह कृषि, जल संसाधन और जल विद्युत प्रबंधन को जरूर प्रभावित करता है।

पंजाब और गुजरात से भी मानसून की वापसी के मिले संकेत

IMD का कहना है कि अगले 2-3 दिनों में राजस्थान, पंजाब और गुजरात के और हिस्सों से भी मॉनसून की वापसी के हालात बनेंगे। वहीं, पूर्वोत्तर राज्यों और महाराष्ट्र में अगले तीन दिनों तक भारी से बहुत भारी बारिश होने की संभावना है। इस बार पूर्वी और पूर्वोत्तर राज्यों को छोड़कर, जहां करीब 20% कम बारिश हुई है, देश के बाकी हिस्सों में सामान्य से ज्यादा वर्षा दर्ज की गई। मध्य भारत में यह औसत से 10.5% और दक्षिणी प्रायद्वीपीय क्षेत्र में 7.5% अधिक रही।

खेती-किसानी पर क्या होगा असर?

इस साल जल्दी मॉनसून की वजह से किसानों ने खरीफ (ग्रीष्मकालीन) फसलों की बुवाई समय से पहले शुरू कर दी। अच्छी बारिश ने कुल बुवाई क्षेत्र को 1,105 लाख हेक्टेयर तक पहुँचा दिया, जो पिछले साल (1,078 लाख हेक्टेयर) और सामान्य क्षेत्र (1,096 लाख हेक्टेयर) से अधिक है। मॉनसून की वापसी तीन दिन पहले शुरू होने से बुवाई पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा क्योंकि यह पहले ही पूरी हो चुकी है।

ठंड को लेकर IMD का क्या है पूर्वानुमान?

भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने अपने नवीनतम ईएनएसओ बुलेटिन में कहा कि अभी तटस्थ स्थिति बनी हुई है। न तो एल नीनो और न ही ला नीना सक्रिय है। विभाग का आकलन है कि मानसून के बाद ला नीना की संभावना बढ़ सकती है। एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, “हमारे मॉडल अक्टूबर-दिसंबर में ला नीना के बनने की 50% से अधिक संभावना दिखा रहे हैं। सामान्य तौर पर भारत में ला नीना सर्दियों को ज्यादा ठंडा बनाता है। हालांकि जलवायु परिवर्तन की वजह से बढ़ी गर्माहट इसके असर को कुछ हद तक कम कर सकती है, लेकिन ठंडी लहरों की तीव्रता बढ़ सकती है।”

निजी मौसम एजेंसी स्काइमेट वेदर ने क्या कहा?

निजी मौसम एजेंसी स्काइमेट वेदर के अध्यक्ष जीपी शर्मा का कहना है कि अल्पकालिक ला नीना की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। जीपी शर्मा के अनुसार “फिलहाल प्रशांत महासागर का तापमान सामान्य से नीचे है। यदि यह तीन तिमाहियों तक -0.5°C से कम बना रहता है, तो इसे औपचारिक रूप से ला नीना घोषित किया जाएगा। 2024 के अंत में भी ऐसी ही स्थिति बनी थी जब नवंबर से जनवरी तक अल्पकालिक ला नीना रहा था।” जीपी शर्मा ने आगे कहा कि चाहे औपचारिक घोषणा हो या न हो, प्रशांत महासागर का ठंडा होना विश्वभर के मौसम को प्रभावित करेगा।

क्या कहती है ला नीना की स्थिति पर रिसर्च?

जीपी शर्मा के मुताबिक “अमेरिका में सूखी सर्दियां पड़ सकती हैं, जबकि भारत में अधिक ठंड और हिमालयी इलाकों में भारी बर्फबारी संभव है।” इसके अलावा इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (IISER) मोहाली और ब्राजील के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस रिसर्च (NISR) के 2024 के एक संयुक्त अध्ययन में पाया गया कि ला नीना सालों के दौरान उत्तर भारत में शीत लहरें अधिक तीव्र और लंबे समय तक बनी रहती हैं। अध्ययन के अनुसार, “ला नीना के समय निचले स्तर की चक्रीय हवाएं उत्तरी क्षेत्रों से ठंडी हवा खींचकर भारत की ओर ले आती हैं।”