Real Estate Projects: आंकड़े बताते हैं कि देश के पांच टियर-1 शहरों मुंबई, नोएडा, गुरुग्राम, ठाणे और ग्रेटर नोएडा में 1,636 प्रोजेक्ट्स में 4.3 लाख से ज्यादा घर अटके हुए हैं।
Real Estate Projects: भारत में अपना घर खरीदने का सपना अब लाखों लोगों के लिए एक डरावनी हकीकत बन गया है। वे उन घरों के लिए EMI भर रहे हैं, जो शायद कभी पूरे नहीं होंगे। रियल एस्टेट बाजार का यह संकट जहां बिल्डर अचानक गायब हो जाते हैं। बैंक अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं और सरकारी मदद बहुत देर से और कम मिलती है। लाखों मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए एक बड़ा दर्द बन गया है। आंकड़े बताते हैं कि देश के पांच टियर-1 शहरों मुंबई, नोएडा, गुरुग्राम, ठाणे और ग्रेटर नोएडा में 1,636 प्रोजेक्ट्स में 4.3 लाख से ज्यादा घर अटके हुए हैं। यानी अगर एक फ्लैट पर 25 लाख का होम लोन है तो चार लाख लोगों के एक लाख करोड़ से ज्यादा रुपये बिल्डरों के पास दबे हैं। इस मामले की सुनवाई के लिए ग्राहकों को दर-दर भटकना पड़ता है।
एक रेडिट यूजर ने अपनी पीड़ा शेयर की है। रेडिट यूजर की इस पीड़ा को सोशल मीडिया 'लिंक्डइन' अकाउंट पर सीए मीनल गोयल नाम की यूजर ने शेयर करते हुए लिखा "अपना खुद का घर खरीदना अब कोई सपना नहीं, बल्कि एक डरावना अनुभव बन गया है।" उन्होंने सबवेंशन स्कीमों की कमजोरियों का भी जिक्र किया, जो आकर्षक तो लगती हैं लेकिन खरीदारों को जोखिम में डाल देती हैं। इस स्कीम में खरीदार सिर्फ 10% डाउन पेमेंट करता है। जबकि बैंक लोन का 80% बिल्डर को दे देता है और बिल्डर दो से तीन साल तक EMI भरने का वादा करता है। लेकिन जब बिल्डर इस वादे को पूरा नहीं कर पाता तो इसका सारा बोझ खरीदार पर आ जाता है। यह सिर्फ एक अकेली कहानी नहीं है, बल्कि लाखों परिवारों की एक जैसी पीड़ा है।
मीनल गोयल ने अपनी एक दोस्त का उदाहरण दिया। जो इस सिस्टम की शिकार है। वह हर महीने 45,000 रुपये किराया और 32,000 रुपये EMI भर रही है। यह सब उस घर के लिए कर रही है जो उसे शायद कभी नहीं मिलेगा। सीएम मीनल गोयल कहती हैं “लोन खरीदार के नाम पर होता है, बिल्डर के नाम पर नहीं। अगर बिल्डर EMI नहीं भर पाता है तो बैंक आपसे ही पैसा वसूलने आएगा, भले ही आपको घर कभी न मिले। अगर आप EMI भरने से चूक गए तो आपका क्रेडिट स्कोर खराब हो जाएगा। यह सिर्फ रियल एस्टेट का संकट नहीं है, यह उस पूरे सिस्टम की नाकामी है जो प्रोजेक्ट को फंड देता है और उन पर निगरानी रखता है।” वे ‘पजेशन मिलने तक कोई EMI नहीं’ जैसी सबवेंशन स्कीमों में तुरंत सुधार की मांग करती हैं। ताकि खरीदारों को इस तरह के जाल से बचाया जा सके।
इंडस्ट्री के आंकड़ों के अनुसार, यह कोई छोटी-मोटी धोखाधड़ी नहीं, बल्कि एक व्यापक संकट है। भारत के 42 शहरों में 5.08 लाख हाउसिंग यूनिट्स अटकी पड़ी हैं। 2018 के बाद से यह संख्या 9% बढ़ी है। इसमें मुंबई, नोएडा, गुरुग्राम, ठाणे, और ग्रेटर नोएडा सबसे ज्यादा प्रभावित शहर हैं। इन पांच टियर-1 शहरों में ही 1,636 प्रोजेक्ट्स में 4.3 लाख से ज्यादा घर अटके हुए हैं। कई परिवार, जिन्होंने अपने बच्चों के स्कूल में होने पर फ्लैट बुक किए थे, वे अब उन्हें ग्रेजुएट होते देख रहे हैं, लेकिन उनके हाथ में अब भी घर की चाबी नहीं है।
आंकड़ों पर गौर करें तो सरकार ने भले ही SWAMIH फंड की शुरुआत की हो, जिसने अब तक करीब 50,000 यूनिट्स का काम पूरा कर दिया है और 2025 तक 40,000 और यूनिट्स को पूरा करने का लक्ष्य रखा है। यह कुल अटके हुए प्रोजेक्ट्स का 20% भी नहीं है। ज्यादातर खरीदारों के लिए, न कोई मुआवजा है, न कोई कानूनी राहत और न ही कोई प्रभावी रेगुलेटर। ऐसे में ग्राहक खुद को ठगा हुआ महसूस कर ईएमआई भर रहे हैं।