Supreme Court: इंडियाज गॉट लेटेंट शो मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया पर दिखाई जा रही अश्लीलता पर जल्द नई गाइडलाइन जारी करने का आदेश दिया है।
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने 'इंडियाज गॉट लेटेंट' विवाद और उन कॉमेडियन्स के खिलाफ सुनवाई की, जिन्होंने दिव्यांगों का मजाक उड़ाया था। इस सुनवाई से ओटीटी प्लेटफॉर्म्स और सोशल मीडिया कंटेंट को लेकर बड़ी बहस छिड़ गई है। सुनवाई के दौरान डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर सबकुछ बोलना और दिखाना सही है कि नहीं और कॉमेडी के नाम पर अपमान और मजाक की लिमिट तय करने जैसी बातों पर कोर्ट का विशेष फोकस रहा। दरअसल, गुरुवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जयमाल्या बागची की पीठ पॉडकास्टर रणवीर इलाहाबादिया और अन्य द्वारा 'इंडियाज गॉट लेटेंट' शो में अश्लील सामग्री से संबंधित एफआईआर को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।
इस दौरान रणवीर इलाहाबादिया और यूट्यूबर आशीष चंचलानी की अर्जी पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने कड़ी नाराजगी जताई। उन्होंने केंद्र सरकार की ओर पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि सरकार सोशल मीडिया के लिए वृहद कानून लाने के बारे में क्यों नहीं सोच रही? जो एससी-एसटी एक्ट की तरह हो, जिसमें दिव्यांगों को नीचा दिखाने पर सख्त सजा का प्रावधान भी हो। इसके जवाब में तुषार मेहता ने जल्द ही सोशल मीडिया कंटेंट के बारे में नई गाइडलाइन जारी होने की बात कही।
लाइव लॉ के अनुसार, CJI ने सुनवाई के दौरान साफ कहा कि भारत में अभिव्यक्ति की आजादी है, लेकिन यह आजादी किसी को भी दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का अधिकार नहीं देती है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि कंटेंट कुछ ही सेकंड में वायरल हो जाता है और फिर उसकी जवाबदेही तय करना मुश्किल हो जाता है। कोर्ट ने यह चिंता भी जताई कि स्ट्रीमिंग और सोशल मीडिया पर कई बार ऐसी भाषा और सीन होते हैं, जो परिवार समेत खासकर बच्चों के साथ देखने लायक नहीं होते। यह कंटेंट बिना वॉर्निंग और किसी फिल्टर के सोशल मीडिया मौजूद होते हैं।
जस्टिस बागची ने कहा, "अश्लीलता किताब में, पेंटिंग में भी हो सकती है। अगर नीलामी हो रही हो तो उस पर भी रोक लग सकती है। लेकिन जैसे ही आप फोन ऑन करते हैं और अचानक ऐसा कंटेंट दिख जाता है, जिसे आप नहीं देखना चाहते, तब क्या?" इस पर सीजेआई सूर्यकांत ने आश्चर्य व्यक्त किया कि ऐसे सामग्री निर्माताओं पर कोई नियंत्रण नहीं है। सीजेआई सूर्यकांत ने सुझाव दिया कि वार्निंग को कुछ सेकण्ड्स तक दिखाया जा सकता है और उसके बाद उम्र वेरिफिकेशन के लिए आधार का उपयोग किया जा सकता है। उन्होंने कहा "हमें एक जिम्मेदार समाज बनाना है और जब ऐसा होगा, तब ज्यादातर समस्याएं खुद ही खत्म हो जाएंगी।" सीजेआई ने कहा यह मुद्दा केवल 'अश्लीलता' तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उपयोगकर्ता द्वारा निर्मित सामग्री में 'विकृतियां' भी हैं, जिन्हें व्यक्ति अपने यूट्यूब चैनलों या अन्य प्लेटफार्मों पर प्रकाशित करते हैं।
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यूजर जनरेटेड कंटेंट के संबंध में उपाय जरूरी है, क्योंकि कोई व्यक्ति अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर जो चाहे वो नहीं कह सकता। इस पर सहमति जताते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने कहा "तो मैं अपना चैनल खुद बनाता हूं, मैं किसी के प्रति जवाबदेह नहीं हूं। किसी को तो जवाबदेह होना ही होगा। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक अमूल्य अधिकार है, लेकिन इससे विकृतियां नहीं आ सकतीं। अभिव्यक्ति के अधिकार का सम्मान किया जाना चाहिए, मान लीजिए कोई कार्यक्रम है, अगर उसमें एडल्ट सामग्री है तो पहले से कुछ चेतावनी दी जानी चाहिए।" सॉलिसिटर जनरल ने माना कि मौजूदा डिजिटल गाइडलाइन पर्याप्त नहीं हैं और इन्हें अपडेट करने की जरूरत है।
अदालत यूट्यूबर और पॉडकास्टर रणवीर इलाहाबादिया ने जो याचिका दायर की, उस पर सुनवाई कर रही थी। उन पर आरोप है कि उन्होंने समय रैना के शो ‘India’s Got Latent’ के एक एपिसोड में अश्लील टिप्पणियां कीं। इलाहाबादिया की याचिका के साथ Cure SMA India Foundation की याचिका भी शामिल थी। इस याचिका में समय रैना पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने Spinal Muscular Atrophy (SMA) जैसी गंभीर बीमारी के महंगे इलाज को लेकर संवेदनहीन और गलत टिप्पणियां की थी। इसके अलावा समय रैना पर यह भी आरोप है कि उन्होंने एक दिव्यांग व्यक्ति का मजाक उड़ाया। इस पूरे मामले में कुछ और कॉमेडियनों पर भी इसी तरह के आरोप लगाए गए हैं।