नोएडा में जमीन अधिग्रहण मुआवजे में हुई गड़बड़ी पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने एसआईटी से जांच तेज करने और दो महीने में रिपोर्ट देने का आदेश दिया। इस मामले में 12 से ज्यादा अधिकारी शक के घेरे में आ चुके हैं। जानिए इस घोटाले की पूरी कहानी।
नोएडा में जमीन अधिग्रहण मुआवजे में हुई गड़बड़ियों वाला मामला एक बार फिर सुर्खियों में है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इस मुद्दे पर सुनवाई करते हुए गंभीर रुख अपनाया और एसआईटी को जांच तेज करने और तय समय में रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है। इस केस की सुनवाई चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) सूर्यकांत, जस्टिस उज्जल भुइयां और एन. कोटिस्वर सिंह की बेंच ने की। सुनवाई के दौरान सीजेआई सूर्यकांत ने साफ किया कि यह जांच किसानों को परेशान करने के लिए नहीं की जा रही है। यह जांच उन अधिकारियों की भूमिका को जानने के लिए की जा रही है, जिन्होंने मुआवजा देने में घोटाला किया।
सुनवाई के दौरान नोएडा प्राधिकरण की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बेंच को बताया कि SIT की चल रही जांच की रिपोर्ट दे दी गई है और साथ ही एसआईटी ने इस जांच के लिए तीन महीने का और समय मांगा है, लेकिन इस पर सीजेआई सूर्यकांत ने कहा कि इस जांच के लिए पहले काफी समय दिया जा चुका है। कोर्ट ने एसआईटी को जांच तेज करने के आदेश देते हुए दो महीने का समय दे दिया।
इस मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने आदेश दिए कि नोएडा प्राधिकरण मे पिछले 10 से 15 सालों में जितने भी अधिकारी मुआवजा वितरण में शामिल रहे हैं, सबकी जांच की जाए। इसके चलते 12 से ज्यादा CEO, SEO और OSD जांच के घेरे में आ गए हैं। मामले की सुनवाई के दौरान सीजेआई ने कहा कि जिन भी किसानों को ज्यादा भुगतान किया गया है, उन्हें सजा नहीं मिलेगी। किसानों की ओर से वकील सिद्धार्थ दवे ने बेंच से किसानों की रक्षा की गुहार लगाते हुए बताया कि किसानों को एसआईटी से बयान दर्ज कराने के लिए नोटिस मिल रहे हैं। इस पर अदालत ने कहा कि जांच के दौरान किसानों को परेशान नहीं किया जाना चाहिए।
नोएडा विकास प्राधिकरण के अधिकारियों का कहना है कि किसानों ने उन्हें गलत जानकारी देकर ज्यादा मुआवजा लेने की कोशिश की। उन्होंने झूठे तथ्य सामने रखकर दावे किए कि उनका हाईकोर्ट में मामला लंबित है, जिसमें 297 रुपये प्रति वर्ग गज की दर से मुआवजे की मांग की गई है। हैरानी वाली बात ये है कि प्राधिकरण के अधिकारियों ने किसानों की इस जानकारी का क्रॉस वेरिफिकेशन नहीं किया और ज्यादा मुआवजे वाली फाइलों को मंजूरी देकर आगे भेज दिया।
यह जांच मुख्य रूप से गेझा तिलपताबाद, नंगला और भूड़ा गांवों से जुड़ी है, जहां अपात्र किसानों को लगभग 117 करोड़ रुपये तक का मुआवजा दे दिया गया था। पहले की एसआईटी रिपोर्ट पर कोर्ट ने यह टिप्पणी भी की थी कि इतनी बड़ी गड़बड़ी सिर्फ दो-तीन वर्कर्स से नहीं हो सकती। साथ ही उन्होंने एसआईटी के अभी तक के किए गए काम की तारीफ भी की। कोर्ट ने अब जांच का दायरा बढ़ा दिया है, जिसके बाद अब जांच में सीईओ के अलावा एसीईओ और सीएलए भी जांच के दायरे में आ गए हैं। जांच का दायरा बढ़ाने के पीछे कारण यह था कि अगर एक रुपये का भी मुआवजा देना होता है तो उस फाइल की सीईओ मंजूरी देता है। एसआईटी ने लगभग दो साल पहले इस मामले पर रिपोर्ट पेश की थी, जिसमें अदालत इस बात पर सहमत नहीं हो पाई थी कि इतनी बड़ी गड़बड़ी में सिर्फ दो या तीन अधिकारी ही शामिल हो सकते हैं।
गड़बड़ी का पहला खुलासा साल 2021 में हुआ था, जब प्राधिकरण की तत्कालीन सीईओ रितु माहेश्वरी ने जांच समिति बनाई। उस समय पता चला था कि अदालत के एक आदेश का फायदा उठाकर कई किसानों को गलत तरीके से ज्यादा मुआवजा दे दिया गया था। सबसे बड़ा मामला 2015 में सामने आया था, जब एक अपात्र किसान रामवती को 7 करोड़ रुपये से ज्यादा का मुआवजा दे दिया गया था। इसके बाद प्राधिकरण ने दो अधिकारियों और एक किसान के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कराई थी। उसके बाद विधि अधिकारी वीरेंद्र नागर को सस्पेंड कर दिया गया था। इसके बाद 11 और मामलों में गड़बड़ी सामने आई। इन मामलों को लेकर भी प्राधिकरण ने एफआईआर करवाई थी।
जांच में जिन नामों का जिक्र आता है, उनमें तत्कालीन सहायक विधि अधिकारी वीरेंद्र सिंह नागर, विधि अधिकारी दिनेश कुमार सिंह और विधि सलाहकार राजेश कुमार और मृतक कनिष्ठ सहायक मदनलाल मीना शामिल हैं। हालांकि अब सुप्रीम कोर्ट ने जांच का दायरा बढ़ाते हुए पिछले 10 से 15 सालों के बीच जितने भी अधिकारी नोएडा प्राधिकरण में तैनात रहे हैं, सबकी जांच करने का आदेश दिया है। इससे प्राधिकरण में मुआवजा निर्धारण से जुड़े अधिकारियों में खलबली मच गई है।